शहरी क्षेत्र में बिल जेनरेट करने और बिजली आपूर्ति समेत अन्य डाटा रखने के लिए बने सेंटर अब किसी काम के नहीं
केंद्र सरकार ने दिया था 160 करोड़ का ग्रांट, 2011 में एचसीएल को मिला संचालन का काम
Ranchi : झारखंड बिजली वितरण निगम के सभी डाटा सेंटर पिछले दस साल से लगभग बेकार पड़े हैं. राजधानी रांची समेत अन्य सभी जिलों में स्थापित इन डाटा सेंटर के निर्माण में 225 करोड़ रुपये की भारी-भरकम लागत आयी थी. केंद्र की आरएडीआरपी योजना से बने इन डाटा सेंटर को बनाने का उद्देश्य उपभोक्ताओं का बिजली बिल जेनरेट करने के साथ बिजली आपूर्ति समेत अन्य आंकड़ों को एक ही जगह स्टोर करना था.
केंद्र सरकार ने इसके लिए 160 करोड़ का ग्रांट दिया था. लेकिन फिलहाल इन डाटा सेंटर से उपभोक्ताओं को बिल जेनरेट नहीं किया जा रहा है. रांची के केंद्र पूरे राज्य के डाटा सेंटरों का मुख्यालय है. यहां सिर्फ राज्यभर के 30 लाख शहरी उपभोक्ताओं के आंकड़े के अलावा कोई डाटा उपलब्ध नहीं है. राजधानी रांची के मुख्य डाटा सेंटर में लगभग 30 कंप्यूटर लगे हैं.
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केंद्र की आरएडीआरपी योजना से शहरी क्षेत्रों में होता है काम
केंद्र सरकार की 2008 में लागू की गयी आरएडीआरपी योजना शहरी क्षेत्र के लिए है. योजना के तहत शहरी क्षेत्र में डिजिटल माध्यम से बिजली बिल जेनरेट किया जाता है. इसके बाद इन बिलों को क्षेत्रवार वितरित किया जाता है. 2011 में झारखंड में बने डाटा सेंटर के संचालन का काम एचसीएल को दिया गया था. 2013 में राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने रांची के मुख्य डाटा सेंटर का उद्घाटन किया था. इस योजना के तहत राज्य भर में लगभग 200 कंप्यूटर लगाये गये.
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डाटा सेंटर होते हुए भी बिजली बिल जेनरेट करने के लिए रखी गयी हैं एजेंसियां
केंद्र सरकार की ओर से इस योजना पर बड़ी राशि खर्च की गयी. पिछले दस साल में कई बार राज्य के अलग-अलग जिलों में डाटा सेंटर कई बार फेल हुआ. कई बार इसके डाटा के नष्ट होने की आंशका जतायी गयी. इसके बावजूद जेबीवीएनएल की ओर से इस पर ध्यान नहीं दिया गया. इस डाटा सेंटर के होते हुए भी निगम ने शहरी और ग्रामीण क्षेत्र में बिलिंग करने के लिए एजेंसियां बहाल की हैं. जबकि अगर इन डाटा सेंटरों का सही उपयोग किया जाये, तो करोड़ों की राशि बचायी जा सकती है.
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ग्रांट लोन में न बदल जाये इसलिए रिपोर्ट भेजने की औपचारिकता
जानकारी के अनुसार केंद्र सरकार अब भी इस योजना की मॉनिटरिंग करती है. डाटा सेंटर चल रहा है, यह बताने के लिए कभी-कभार इन सेंटरों से बिल जेनरेट किया जाता है और रिपोर्ट केंद्र सरकार को भेजी जाती है. जानकार बताते हैं कि इन सेंटरों की स्थापना के लिए केंद्र सरकार ने झारखंड को ग्रांट दिया था. रिपोर्ट नहीं भेजने से केंद्र सरकार इस ग्रांट को लोन में तब्दील कर सकती है. इसीलिए केंद्र को रिपोर्ट भेजने की औपचारिकता पूरी कर दी जाती है.
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