Satya Sharan Mishra
Ranchi : झारखंड के साहबों को राजनीतिक का पुराना चस्का है. एमपी-एमएलए का रुतबा नौकरशाहों को खूब आकर्षित करता है. जब कुछ ब्यूरोक्रेट्स के लिए राज्य की सियासी जमीन उपजाऊ साबित हुई, तब ब्यूरोक्रेट् में नौकरी छोड़ राजनीति की फसल काटने की होड़ लग गयी. पिछले दो दशक में दर्जन भर आईएएस और आईपीएस ने सरकारी नौकरी से वीआरएस लेकर या रिटायरमेंट के बाद राजनीति में किस्मत आजमायी. लेकिन इनका यह भ्रम (राजनीति आसान होती है) तब टूट गया, जब या तो जनता ने या फिर पार्टी ने उन्हें नकार दिया. राजनीति की रपटीली राहों ने कईयों के सपने पर पानी फेर दिया. ऐसे लोग अभी भी राजनीति में खुद को स्थापित करने के लिए स्ट्रगल कर रहे हैं. पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा, झारखंड के मंत्री और कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष डॉ रामेश्वर उरांव और पलामू के सांसद विष्णु दयाल राम को झारखंड की राजनीति रास आयी, लेकिन लक्ष्मण प्रसाद सिंह, डीके पांडेय, राजीव कुमार, रेजी डुंगडुंग, डॉ अजय कुमार, जेबी तुबिद, अमिताभ चौधरी, विमल कीर्ति सिंह, डॉ अरूण उरांव, आरपी सिन्हा और सुचित्रा सिन्हा अबतक खुद को पार्टी और राजनीति में स्थापित नहीं कर पाये हैं.
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इन नेताओं को रास आयी राजनीति, खेली लंबी पारी
टीएमसी नेता यशवंत सिन्हा ने ब्यूरोक्रेसी को छोड़ राजनीति में लंबी पारी खेली. 1960 में भारतीय प्रशासनिक सेवा में शामिल हुए यशवंत सिन्हा ने बॉन, जर्मनी के भारतीय दूतावास में प्रथम सचिव के रूप में काम किया. कई मंत्रालयों में महत्वपूर्ण पदों पर रहने के बाद राजनीति ने उन्हें आकर्षित किया. 1984 में इस्तीफा देकर चंद्रशेखर से जुड़े. 1988 में राज्यसभा सांसद बने. चंद्रशेखर की सरकार में वित्त मंत्री बने. बाद में भाजपा से जुड़ गये. अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में भी वित्त मंत्री रहे. विदेश मंत्री का भी दायित्व संभाला. झारखंड से केंद्रीय कैबिनेट में सबसे ज्यादा पकड़ रखने वाले यशवंत सिन्हा ही रहे. बाद में भाजपा ने उन्हें किनारे लगा दिया. कई साल तक सक्रिय राजनीति से दूर रहने के बाद 13 मार्च 2021 से वे टीएमसी से जुड़ गये हैं.
आडवाणी को गिरफ्तार करने वाले एसपी बने केंद्रीय मंत्री
1972 बैच के आईपीएस अधिकारी डॉ रामेश्वर उरांव रोहतास समेत बिहार के कई जिलों में एसपी के रूप में पोस्टेड रहे. बेहतर कार्यशैली के कारण इन्हें पुलिस सेवा सम्मान से भी सम्मानित किया गया. अयोध्या आंदोलन के दौरान रथ यात्रा निकालने पर लाल कृष्ण आडवाणी को इन्होंने 23 नवंबर 1990 को गिरफ्तार किया था. रामेश्वर उरांव ने 2004 में वीआरएस लेकर कांग्रेस ज्वाइन किया. लोहरदगा से लोकसभा का टिकट मिला. जीतने के बाद केंद्र में मंत्री बनाये गये. 2009 में चुनाव हारने के बाद भी इन्हें नेशनल एसटी-एससी आयोग का चेयरमैन बनाया गया. 2019 के विधानसभा चुनाव से पहले डॉ रामेश्वर उरांव को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया. विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने वापसी की और राज्य में वित्त और खाद्य आपूर्ति मंत्री का पद संभाल रहे हैं.
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पूर्व डीजीपी वीडी राम लगातार दूसरी बार सांसद
विष्णु दयाल राम 2005 से 2011 तक झारखंड के डीजीपी रहे. इससे पहले एसपी के रूप में भी कई जिलों में सेवाएं दे चुके हैं. 1979 से 1980 के बीच जब बिहार के भागलपुर में अंखफोड़वा कांड चल रहा था, उस वक्त बीडी राम वहां एसपी के रूप में पदस्थापित थे. 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले वीडी राम बीजेपी में शामिल होकर सक्रिय राजनीति में आये. 2014 में पलामू लोकसभा सीट से पार्टी ने टिकट दिया और चुनाव जीत गये. 2019 में भी टिकट मिला और चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे.
जानिए उन ब्यूरोक्रेट्स को जिन्हें राजनीति नहीं आयी रास
1990 के दशक के तेजतर्रार IPS डॉ अजय कुमार जब झारखंड की राजनीति में आये तो छा गये थे. उस वक्त बाबूलाल मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा ने उन्हें जमशेदपुर लोकसभा सीट से उपचुनाव में टिकट दिया. चुनाव जीतकर जमेशदपुर के सांसद बने, लेकिन दूसरी बार जनता ने नकार दिया. इसके बाद वे कांग्रेस में चले गये. वहां प्रदेश अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी मिली, लेकिन कांग्रेस में भी अंदरुनी कलह के बाद पार्टी छोड़ दी और आम आदमी पार्टी में चले गये, लेकिन फिर वहां से कांग्रेस में चले आये. फिलहाल वे झारखंड की राजनीति से दूर हैं.
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वीआरएस लेने वाले लक्ष्मण दो बार हार चुके हैं चुनाव
आइपीएस लक्ष्मण प्रसाद सिंह ने 2014 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले वीआरएस लिया और बीजेपी में शामिल हो गये. लक्ष्मण धनबाद से चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन पीएन सिंह के दबाव के कारण उन्हें धनबाद के बजाय राजधनवार से टिकट मिला, लेकिन 2014 का चुनाव वे हार गये. चुनाव में तीसरे नंबर पर रहे. इसके बाद 2019 के चुनाव में भी पार्टी ने एक बार फिर उनपर भरोसा दिखाया और बाबूलाल मरांडी के खिलाफ उन्हें धनवार से उतारा. इस बार वे दूसरे नंबर पर रहे. पार्टी में फिलहाल उनकी बहुत ज्यादा सक्रियता नहीं दिख रही है.
IPS रेजी डुंगडुंग वीआरएस लेकर लड़े थे चुनाव, जनता ने नकार दिया
1987 बैच के आइपीएस अफसर रेजी डुंगडुंग को भी राजनीति के ग्लैमर ने अपनी तरफ खींचा. झारखंड विधानसभा चुनाव से पहले 16 अक्टूबर 2019 को उन्होंने एडीजी की नौकरी से वीआरएस ले लिया और एनोस एक्का की झारखंड पार्टी में शामिल हुए. सिमडेगा से चुनाव भी लड़ा, लेकिन जनता ने नकार दिया. चुनाव हारने के बाद 6 महीने में वे झारखंड पार्टी में नहीं टिके और यह कहते हुए इस्तीफा दे दिया कि वे सिद्धांत और स्वार्थ के बीच समझौता नहीं कर पा रहे हैं.
IAS जेबी तुबिद चुनाव हारे, अब संगठन में भी किनारे
झारखंड के गृह सचिव, कैबिनेट सचिव, आईटी सेक्रेटरी और टीएसी के पूर्व मेंबर रह चुके जेबी तुबिद ने 2014 के विधानसभा चुनाव से पहले वीआरएस ले लिया था. बीजेपी से उन्होंने अपनी राजनीतिक पारी शुरू की. पार्टी ने चाईबासा से उन्हें टिकट भी दिया, लेकिन जनता ने नकार दिया. इसके बाद पार्टी ने उन्हें प्रदेश प्रवक्ता की जिम्मेदारी सौंपी. फिलहाल वे बीजेपी के जिला संगठन प्रभारी के पद पर हैं.
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चुनाव लड़ने के लिए IG ने लिया वीआरएस, लेकिन टिकट ही नहीं मिला
2014 के विधानसभा चुनाव से पहले आईजी मुख्यालय के पद पर पदस्थापित शीतल उरांव ने भी चुनाव लड़ने के लिए वीआरएस ले लिया था. नौकरी छोड़ने के बाद बीजेपी की सदस्यता ले ली. लक्ष्मण सिंह और शीतल उरांव ने एक साथ वीआरएस लिया था, लक्ष्मण सिंह पर तो बीजेपी ने दो बार भरोसा कर उन्हें टिकट दिया, लेकिन शीतल उरांव को टिकट नहीं मिला. संगठन में उनकी सक्रियता नहीं दिख रही है.
टिकट की आस में दल बदलते रहे वीआरएस लेने वाले डॉ अरुण उरांव
पंजाब कैडर के IPS डॉ अरुण उरांव ने 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले वीआरएस ले लिया था. चुनाव लड़ने की उम्मीद लिये बीजेपी में शामिल हो गये, लेकिन बीजेपी ने टिकट नहीं दिया. विधानसभा चुनाव में भी टिकट कट गया. इससे नाराज होकर वे कांग्रेस में शामिल हो गये. वहां भी उनकी महत्वाकांक्षा पूरी नहीं हो पाई. इसके बाद 2019 के विधानसभा चुनाव से पहले वे फिर बीजेपी आ गए. इस बार भी उन्हें टिकट नहीं मिला.
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पूर्व डीजीपी राजीव कुमार को टिकट देकर कांग्रेस ने काट दिया
2019 के लोकसभा चुनाव से पहले झारखंड के डीजीपी रहे राजीव कुमार ने कांग्रेस ज्वाइन कर लिया. तय हुआ कि वे पलामू संसदीय सीट से चुनाव लड़ेंगे, लेकिन गठबंधन के तहत यह सीट आरजेडी के खाते में चली गयी. इसके बाद उन्हें कांके सीट से टिकट दे दिया गया, कार्यकर्ताओं ने टिकट देने का जोरदार विरोध कर दिया. विरोध के स्वर दिल्ली तक पहुंचे और आखिरकार चुनाव से पहले पार्टी ने प्रत्याशी बदल दिया और राजीव कुमार का टिकट कट गया.
वीआरएस लेने वाले IPS अमिताभ चौधरी को भी जनता ने नकारा
IPS अमिताभ चौधरी ने भी राजनीति करने के लिए नौकरी छोड़ दी थी. 2014 में वे बीजेपी में शामिल हुए. टिकट नहीं मिला तो JVM का प्रत्याशी बन रांची लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े, लेकिन जनता ने नकार दिया.
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वीआरएस लेकर राजनीति में कूदे विमल, लेकिन टिकट मिला ही नहीं
बोकारो के डीसी रह चुके भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी विमल कीर्ति सिंह ने 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले टिकट की आस में नौकरी छोड़ दी. वह धनबाद से भाजपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन टिकट नहीं मिला.
टिकट की आस में आयी सुचिता सिन्हा को नहीं मिला टिकट
पूर्व आईएएस सुचिता सिन्हा भी 2019 के विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी में शामिल हुई थीं, लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिल सका. टिकट नहीं मिलने के बाद से वे बीजेपी में सक्रिय नहीं दिख रही हैं.
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