Deepak Ambastha
असम के दरांग जिले के सिपाझार में 23 सितंबर की हिंसा ने बांग्लादेशी घुसपैठ की समस्या को फिर से एक बार चर्चा में ला दिया है. असम सरकार कह रही है कि सिपाझार में पुलिस अतिक्रमण हटाने गई थी और लोगों ने संगठित तौर पर पुलिस पर हमला किया आत्मरक्षा में पुलिस ने गोली चलाई जिसमें 2 लोग मारे गये. बात बहुत सामान्य सी लगती है लेकिन जितनी सामान्य लगती है मामला उससे कहीं बहुत गंभीर है. ध्यान रखना होगा कि देश की राजधानी दिल्ली में एनआरसी और सीएए के विरोध में लंबी लड़ाई लड़ी गई थी. शाहीन बाग किसी को अभी भूला नहीं है, इसी दौरान हिंसा हुई अनेक लोगों की जानें गई.
असम भारत का चिकन नेक (मुर्गे की गर्दन) है
इन सबके बीच बिहार के जहानाबाद जिले का निवासी और जेएनयू का स्कॉलर शरजिल इमाम ने एक संदेश दिया था, मुसलमानों को चाहिए कि वे असम को भारत से अलग कर दें, शरजिल ने कहा था, असम भारत का चिकन नेक (मुर्गे की गर्दन) है, मुसलमानों को चाहिए कि वे इसे काट दें. शरजिल इमाम के बयान को माना गया कि वह शाहीनबाग आंदोलन की लपटें असम में भी फैलाना चाहता है इसके पीछे उसका उद्देश्य और उसके साथ खड़े लोगों का उद्देश्य देश को अशांत करना है.
दशकों तक केंद्र की सरकारें बेफिक्र क्यों रहीं
बहरहाल शरजिल का उद्देश्य जो भी रहा हो लेकिन असम में घटने वाली हिंसक घटनाओं को उसी परिप्रेक्ष्य में देखा जाना उचित होगा, फिर कहा जा सकता है कि इन चीजों को जिसे चाहे जैसे चाहे वह देखे लेकिन तब पूछना जरूरी है कि दशकों लंबी समस्या को लेकर केंद्र की सरकारें बेफिक्र क्यों रहीं ? एक विचार यह है कि केंद्र और असम राज्य की कांग्रेस सरकारें तो चाहती ही थीं कि अवैध घुसपैठ हो क्योंकि वह इसे अपना वोट बैंक मान रही थी इस आरोप में अगर पूर्ण नहीं तो कुछ सच्चाई से इनकार भी नहीं किया जा सकता है.
अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर भाजपा की सरकार ने क्या किया है ?
अब बात रही कि 2014 से केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है और असम में लगातार यह दूसरी सरकार है जो भाजपा की है तो 2014 से 2021, तक केंद्र ने क्या किया राज्य सरकार ने कौन से ठोस कदम उठाए, उसने समस्या समाधान के लिए क्या-क्या किया. कहा जा सकता है कि एनआरसी और सी ए ए के माध्यम से उसने कोशिश शुरू की है लेकिन क्या इससे घुसपैठ रुकेगी ? अंतर्राष्ट्रीय सीमा केंद्र सरकार का विषय है ,यह क्यों नहीं पूछा जाना चाहिए कि असम से लगने वाली बांग्लादेश की सीमा को घेरने वहां अवरोध खड़े करने की दिशा में भाजपा की सरकार ने क्या किया है ?
यह भी एक राजनीतिक तमाशा ही है
अगर घुसपैठ जारी रही तो जितने लोग एनआरसी और सीएए के नाम पर हटाए जाएंगे उससे अधिक फिर कुछ समय में आ जाएंगे तो क्या अभी जितनी बातें कही सुनी जा रही हैं यह भी एक राजनीतिक तमाशा ही है, सिर्फ और सिर्फ लाभ लेने का प्रयास है और विपक्ष अगर यह मुद्दा उठाता है तो यह कहा जा सकता है कि वह यथास्थिति बनाकर ही लाभ की हालत में हो सकता है, यह सब देखते हुए बहुत स्पष्ट होता है कि समस्या के स्थाई समाधान में ना तो कांग्रेस की रुचि थी और ना भाजपा की है.
सिपाझार हिंसा एक झलक भर है
सिपाझार हिंसा एक झलक भर है असम की हिमंता बिस्वा सरमा सरकार कह रही है कि दरांग जिले में हजारों एकड़ जमीन पर अवैध कब्जा है जिसमें 5000 साल पुराने शिव मंदिर की जमीन का कब्जा भी शामिल है, सरकार का कहना है कि ऐसे बहुत से धार्मिक स्थल हैं जिन पर अवैध कब्जा कर लिया गया है, सरकार ने अतिक्रमण हटाना शुरू किया है और यह जारी रहेगा.मुख्यमंत्री कहते हैं कि दरांग में 27000 एकड़ जमीन जिसमें कि अधिकांश भूमि पर अवैध कब्जा है उसका उपयोग सरकार को उत्पादकता के लिए करना है इस पर कोई समझौता नहीं होगा.
यह इलाका देश विरोधी गतिविधियों का केंद्र बना हुआ है
बिस्वा कहते हैं कि कांग्रेस के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ बैठक में तय हुआ था कि जो भूमिहीन हैं उन्हें सरकार जमीन आवंटित करेगी लेकिन बिना आधार सैकड़ों, हजारों एकड़ जमीन किसी को आवंटित नहीं की जा सकती है.सरकार का कहना है कि दरांग का अधिकतर इलाका घुसपैठियों से आबाद है और वर्ष 1983 के बाद से यह इलाका हत्याओं ,हिंसा और देश विरोधी गतिविधियों का केंद्र बना हुआ है यह स्थिति कायम रहने नहीं दी जा सकती है.
लब्बोलुआब यह कि राजनीति अपनी जगह पर, हकीकत और देशहित अपनी जगह ,असम की घटनाओं को राजनीतिक चश्मे से ना देखा जाए इसे देशहित के चश्मे से देखा जाना उचित होगा फिर भाजपा हो, कांग्रेस हो या असम की क्षेत्रीय पार्टियां सभी से यही अपेक्षा होनी चाहिए कि राजनीति देशहित से बड़ी ना हो जाए.