Dr Santosh Manav
केस एक : कोडरमा जिले के झुमरीतिलैया शहर के सीएच हाई स्कूल मैदान में मोदी सरकार की राज्यमंत्री अन्नपूर्णा देवी यादव ने 27 सितंबर की शाम फुटबाल टूर्नामेंट का उद्घाटन किया. नाम है स्व. रमेश प्रसाद यादव फुटबाल टूर्नामेंट. उद्घाटन के कुछ घंटे बाद ही वह राज्य की राजघानी रवाना हो गईं. वहां से कुछ घंटे बाद यानी जब आप यह पढ़ रहे होंगे, वह देश की राजघानी रवाना हो चुकी होगी.
केस दो: 2019 में चतरा लोकसभा से राजद के प्रत्याशी रहे, लालू प्रसाद यादव के प्रियपात्र सुभाष यादव ने 28 सितंबर को कोडरमा जिले के डोमचांच शहर के सीएम हाई स्कूल मैदान में फुटबाल टूर्नामेंट का उद्घाटन किया. नाम है कोडरमा सुपरलीग नाकआउट फुटबाल टूर्नामेंट.
अब आप इसे महज संयोग नहीं समझिए. इसके पीछे राजनीति का शह-मात है. अन्नपूर्णा बीजेपी की सीएम फेस हो सकती है, इस खबर ने शह-मात की गति और तेज कर दी है. अन्नपूर्णा देवी का विजय रथ रोकने के लिए तेजस्वी झारखंड आए हैं, तो सारथी बने हैं सुभाष यादव. सच यह है कि मोदी सरकार में राज्य मंत्री अन्नापूर्णा देवी यादव के मुख्यमंत्री बनने की राह में पांच बड़े कांटे हैं. उनका पथ अग्निपथ से कम नहीं है.
कांटा नंबर एक : सुभाष यादव बिहार के दानापुर के धनबली नेता हैं. कारोबार अनेक हैं, लेकिन बालू कारोबारी कहे जाते हैं. 2019 में अचानक चतरा से लोकसभा चुनाव लड़ने आ गए. मुक्तहस्त से धन वितरण के लिए ख्यात हुए. बावजूद इसके चुनाव हार गए. उस समय एक हिंदी दैनिक की खबर थी-बोरो में भरकर नोट लाए हैं सुभाष. लोकसभा हारने के बाद सुभाष यादव कोडरमा में प्रकट हुए. आए थे विधानसभा चुनाव लड़ने, लेकिन झारखंड के मतदाता नहीं थे. विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए उस राज्य विशेष का मतदाता होना आवश्यक होता है. पर्चा खारिज होता, इसके पहले ही राजद ने सुभाष यादव को बदलकर अमिताभ चौधरी यादव को उम्मीदवार बना दिया.
अमिताभ पढ़े-लिखे, संस्कारित परिवार से आते हैं. इनकी मां उर्मिला चौधरी जिले की ख्यात डाक्टर हैं. अमिताभ भी दिल्ली से पढ़े-लिखे, मृदुभाषी, मिलनसार हैं. पेशे से कांट्रेक्टर हैं. उन्होंने बीजेपी की उम्मीदवार नीरा यादव को कड़ी टक्कर दी. कमजोर संगठन और 15 दिनों के राजनीतिक जीवन के बावजूद अमिताभ महज सतरह सौ वोटों से हारे. विश्लेषक कहते हैं कि अन्नपूर्णा अंतिम दो दिन मैदान में न उतरती, अगर सुभाष यादव का नाम लेकर डोर टू डोर बीजेपी का कैंपेन नहीं चलता तो अमिताभ चुनाव जीत गए थे. चुनाव प्रचार के अंतिम दो दिन बीजेपी का एक ही मंत्र था-सुभाष यादव बिहार का गुंडा है.
राजद जीता तो सरेआम गुंडागर्दी होगी. अपहरण, छिनतई, लूटमार होगा. मंत्र काम कर गया. बीजेपी जीत गई. सुभाष अब भी कोडरमा आते रहते हैं. लोगों से मिलते हैं. कार्यक्रमों में शामिल होते हैं. अब तक गुंडई के कोई संकेत नहीं मिले हैं, तो क्या बीजेपी ने सुभाष यादव को बदनाम किया? यह तय-सा है कि राजद की ओर से सुभाष यादव कोडरमा लोकसभा या विधानसभा के उम्मीदवार होंगे. गठबंधन के तहत लोकसभा कांग्रेस लड़ती रही है, इसलिए मानकर चलना चाहिए कि सुभाष विधानसभा के उम्मीदवार ही होंगे. यानी अन्नपूर्णा देवी को चुनौती. बढ़ते रथ की राह में बड़ा कांटा.
कहा जाता है कि अन्नपूर्णा देवी के राजद छोड़ने के अनेक कारण में से एक बड़ा कारण सुभाष यादव थे. सुभाष के सामने अन्नपूर्णा की चलती नहीं थी. जब वह राजद से अलग हुईं थीं, पार्टी की प्रदेश प्रमुख थीं. जब से बीजेपी में आई हैं. लालूजी का पारा गरम है. सुभाष उनका पारा और गरम करते रहते हैं.
कांटा नंबर दो : राज्य में राजद का कारवां बढ़ा, तो अन्नपूर्णा देवी का रथ ठहरेगा. लालू के राजकुमार तेजस्वी ने झारखंड में राजद को गति देने की ठानी है. वे 18-19 सितंबर को रांची में थे. अब 23 अक्टूबर को छतरपुर में रहेंगे. वहां घर-घर जाएंगे. इसके बाद कोडरमा की बारी है. यानी घर में ही अन्नपूर्णा को सीधी चुनौती.
तीसरा कांटा: बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व के आशीर्वाद, तमाम अनुकूलताओं के बावजूद राज्य के नेता तो कांटा बोएंगे ही. रघुवर दास हैं, अर्जुन मुंडा हैं, बाबूलाल मरांडी की हसरतें भी जवां हैं. और माना यह भी जा रहा है कि आज न कल सरयू राय की घरवापसी होगी ही. यानी पार्टी के राज्य नेता भी अन्नपूर्णा देवी की राह में फूल नहीं ही बरसाएंगे.
चौथा कांटा: कोडरमा जिले में दूसरे तरह की खिसियाहट है. पार्टी के नेता पार्टी अनुशासन, लोकलाज, सामाजिक संस्कार के कारण सार्वजनिक रूप से नहीं बोलते. लेकिन, वन टू वन में उनका दर्द फूट पड़ता है. सांसद, जिले के दोनों विधायक, जिला परिषद के अधिकतर सदस्य, नगर पंचायत — सब जगह एक ही समाज के लोग. क्या हम हिंदू नहीं हैं? और भी कई तरह की बातें. वे अन्नपूर्णा देवी के नजदीकियों पर भी सवाल उठाते हैं. कहते हैं कि सत्ता की सारी मलाई ‘राजकुमारों ‘ तक ही है. हम तक छीटें भी नहीं आते. इस रोष को पाटना भी अन्नपूर्णा के लिए चुनौती है. कह सकते हैं कि यह राह का बड़ा कांटा है.
पांचवा कांटा : जिले की राजनीति में जिला परिषद की प्रधान शालिनी गुप्ता अन्नपूर्णा के समानांतर उभर रही हैं. वह बीजेपी में थी. टिकट नहीं मिलने पर बागी हो गईं. विधानसभा का चुनाव आजसू की टिकट पर लड़ी. बीजेपी, राजद के बाद तीसरे स्थान पर रही. जिले की राजनीति में उन्होंने जगह बना ली है. जहां अन्नपूर्णा के खिलाफ मामला जाता हो, वह तनकर खड़ी हो जाती है. जिले में उन्हें बायलेंसिंग फोर्स कहा जा रहा है. बरही- कोडरमा फोर लेन की जद में अन्नपूर्णा देवी के पति रमेश यादव की समाधि आ रही थी. ठेकेदार कंपनी रामकृपाल कंस्ट्रक्शन ने समाधि बचाते हुए उसके सामने यानी सड़क के दूसरी ओर स्थित छठ तालाब को भरना शुरू किया. गांव वाले इसके खिलाफ अड़ गए.
शालिनी गुप्ता का साथ मिला.शालिनी ने जिला प्रशासन पर दबाव डालकर तालाब से मिट्टी निकलवा दी. असर यह हुआ कि समाधि और सड़क का फासला मिट गया. कहा जा रहा है कि अगर अन्नपूर्णा देवी सड़क परिवहन मंत्री नीतिन गडकरी को मैनेज नहीं करती तो बात समाधि तक पहुंच जाती. इस घटना के बाद शालिनी गुप्ता चर्चा के केंद्र में हैं. वह भी जिले की राजनीति में अन्नपूर्णा के लिए कांटा बिछा रही है. वह भी लोकसभा के लिए उम्मीदवार हो सकती है. भाग्य की बली कोडरमा की विधायक नीरा यादव टकराहट की जगह, समन्वय की राजनीति करती हैं. इसलिए उन्हें चुनौती नहीं माना जाता.
अन्नपूर्णा की तैयारी : अन्नपूर्णा देवी भी फूंक-फूंककर कदम रख रही हैं. वह जिले की दूसरी विधानसभा सीट बरकट्ठा से निर्दलीय जीते अमित यादव को बीजेपी के निकट ले आईं हैं. जनआशीर्वाद यात्रा में अमित यादव अन्नपूर्णा के रथ पर सवार थे. कभी भी उनके बीजेपी प्रवेश की घोषणा हो सकती है. अमित पहले बीजेपी में थे. टिकट नहीं मिलने पर निर्दलीय मैदान में उतरे थे. उनके स्व. पिता चितरंजन यादव भी बीजेपी के विधायक थे.
अमित के अन्नपूर्णा के निकट आने का असर यह है कि बरकट्ठा से बीजेपी के पराजित उम्मीदवार जानकी यादव झामुमो में जाने की तैयारी में हैं.अन्नपूर्णा और उनके स्व. पति रमेश यादव को हमेशा चुनौती देने वाले रमेश सिंह को उन्होंने साध लिया है. रमेश सिंह अब अन्नपूर्णा देवी के प्रियपात्र कहे जा रहे हैं. अन्नपूर्णा सर्वसमावेशी दिखने की भी कोशिश कर रही हैं. राज्य के बड़े नेताओं से समन्वय बनाकर चल रही हैं. अब देखना होगा कि अब तक भाग्य की बली रही अन्नपूर्णा देवी आगे रह पाती है या नहीं ? सीएम बन पाती हैं या रथ राज्य मंत्री पर ही रूकेगा ?