बेरमो : बोकारो जिले के ललपनिया में संथाल आदिवासी समुदाय के लुगू बुरू दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सरना धर्म महासम्मेलन में कोरोना की वजह से पिछले साल की तरह इस बार भी सिर्फ पूजा-पाठ हो रहा है, मेला नहीं लग रहा है. महासम्मेलन में हर साल लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती थी. संथाल आदिवासी समुदाय के लिए यह महासम्मेलन अहम है, क्योंकि मेले में ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर चर्चा होती थी. कार्तिक पूर्णिमा से एक दिन पहले इस दो दिवसीय धर्म महासम्मेलन का आयोजन किया जाता है. संथाल आदिवासी प्रकृति पूजक रहे हैं. लुगू बुरू आदिवासियों के इष्ट देवता हैं. मान्यता है कि इन्हीं की अध्यक्षता में बारह दिनों तक बैठक कर संथाल आदिवासियों में सामाजिक और सांस्कृतिक परंपरा की शुरूआत हुई थी. लुगू का अर्थ होता है आदिवासी समाज के देवता और बुरू का मतलब पहाड़ होता है. मान्यता है कि लुगु बुरू की अध्यक्षता में संथाल आदिवासियों की बैठक धिरी चटान पर 12 वर्षों तक चली थी. उस बैठक में आदिवासियों की जीवन पद्धति सहित जीवन से लेकर मरण तक पर चर्चा की गई थी. बैठक में लुगू बुरू के बताए रास्ते पर आज भी संथाल आदिवासी चलते हैं. इस स्थल के दर्शन करने देश के विभिन्न राज्यों एवं पड़ोसी देशों से भी आदिवासी समुदाय के लोग आते हैं तथा अपने पूर्वज की धरती को नमन कर गौरवान्वित महसूस करते हैं. संथाल आदिवासियों के अमूमन हर पर्व त्योहारों के अवसर पर गाए जाने वाले लोक गीतों में लुगू बुरू की चर्चा है. आदिवासियों का विश्वास है कि संकट काल में लुगू बुरू रक्षा करते हैं. एक गीत इस प्रकार है-
लुगू बुरू नेस दोये आकाल केदा, पंची पाड़हाड़ मैना.
बालाङ किरञ लुगू बुरू लुम़ङ होंचों ब़ाकीन तोल लेन.
मराङ बुरू माराक होंचो, ब़ाकीन पिञच़र लेन.
इसका अर्थ है कि इस साल सूखा पड़ा है. साड़ी-धोती भी नहीं खरीदेंगे. लुगू पहाड़ में रेशम के कीड़े ने भी रेशम नहीं बनाए. बड़े पहाड़ के मोर को पंख भी नहीं हुए हैं. संथाल आदिवासियों के और भी कई गीत हैं, जिसके माध्यम वे लोग अपनी खुशी व अपनी पीड़ा को एक दूसरे से साझा करते हैं. संथाल आदिवासी सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से काफी समृद्ध रहा है. पारंपरिक त्योहारों को वे पूरी श्रद्धा व भक्ति से मनाते हैं तथा पशुपालन व कृषि विवादों का निपटारा सामूहिक सहमति से करते हैं. विश्वास है कि लुगू बूरू संथाल समाज को संकट के समय भी रोजगार के साधन उपलब्ध कराते हैं. वनों से ढ़के लुगू पहाड़ संथाल पंरपरा को आगे बढ़ाने में आदिकाल से सराहनीय भूमिका निभाते आ रहे हैं. सरकार इस रमणीक जगह को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करे तो यह झारखंड के प्रमुख पर्यटन स्थलों में एक होगा. संथाल आदिवासी के बारे में लोग और ज्यादा जान पाएंगे.
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