Ranchi : राजधानी रांची में रविवार को आदिवासी बुद्धिजीवी महासमागम का आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम में झारखंड के विभिन्न जिलों से आये हुए बुद्धिजीवी आदिवासियों ने भाग लिया. कार्यक्रम को संबोधित करते हुए बंधु तिर्की ने कहा कि आदिवासियों को अपनी भाषा- संस्कृति के लिए लड़ना पड़ेगा. मुख्यमंत्री व राज्यपाल को ज्ञापन सौंपने से कुछ नहीं होने वाला. ज्ञापन देकर हम सिर्फ खानापूर्ति करते हैं. हम अपने इतिहास की चीजों को लिपिबद्ध करके नई पीढ़ी को सौंपने का काम करें. उन्होंने कहा कि कई चुनाव होंगे, कई पार्टियां बदलेंगी, मगर हम सड़क पर ही लड़ते रह जायेंगे. परिणाम नहीं आयेगा. इसलिए हम आदिवासियों को अपने विकास के लिए मंथन करना जरूरी है.
हमारा आदिवासी समाज भी स्वार्थवादी हो गया है
बंधु तिर्की ने कहा कि हमारा आदिवासी समाज भी स्वार्थवादी हो गया है. आदिवासी भी अब अपनी व्यक्तिगत भलाई के बारे में सोचने लगे हैं. समाज को भूलते जा रहे हैं, जो कि हमारे समाज के लिए अभिशाप है. आज समाज के पढ़े-लिखे युवा गांव- कस्बों में स्कूल चला रहे हैं. खपड़ा के स्कूल में डेस्क- बेंच तक नहीं है. अगर मदरसा को अनुदान मिल सकता है, तो इन स्कूलों के लिए भी सरकार को अनुदान देना चाहिए. मैं सरकार से इन स्कूलों के लिए भवन निर्माण की मांग करता हूं.
टीआरआई की स्थिति बदतर
वहीं कार्यक्रम में मीनाक्षी मुंडा ने कहा कि आदिवासियों के लिए टीआरआई एक संस्थान है, जो आदिवासियों के लिए रिसर्च करने का काम करती है. आज टीआरआई की स्थिति बदतर है. टीआरआई में शोधकर्ता नहीं हैं. हमारी नई पीढ़ी टीआरआई के बारे में जानती तक नहीं है. कार्यक्रम में मुख्य रूप से बंधु तिर्की, अमूल्य नीरज खलखो, मीनाक्षी मुंडा, हरिनारायण महतो, जीता उरांव आदि मौजूद रहे.
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