Ghatshila : बहरागोड़ा के अंतर प्रांतीय बस पड़ाव पर पुटूश और अमोरी फूलों की माला पहने तथा झोला – झक्कड़ लिए जमुरे एक कोने में बैठा किसी यात्री बस के आने का इंतजार कर रहा था. …और तभी उस्ताद की नजर उस पर पड़ी. उस्ताद बोले- जमुरे आज तुम्हारा मन इतना उदास काहे है? कहीं जाने की तैयारी है क्या? जमुरे बोला- गुरु आप बिल्कुल ही सही पकड़े हैं. हम काम की तलाश में बंगाल जा रहा हूं. काहे कि पंचायत चुनाव समाप्त हो गया है. रोजी रोटी का जुगाड़ तो करना ही होगा. उस्ताद बोले- रत्नगर्भा तोरा झारखंड में रोजगार के कवनो कमी है क्या? जमुरे बोला- गुरु कमी ही नहीं घोर कमी है. यहां काम करने पर उचित मजदूरी भी नहीं मिलती है. इसलिए तो हजारों बेरोजगार युवा बंगाल समेत अन्य राज्यों में पलायन करते हैं. गुरु आपने देखा नहीं था. जब मुंबई जैसे बड़े शहरों में कोरोना का प्रकोप बढ़ा था तब यहां के हजारों मजदूर कितना कष्ट झेलकर लौटे थे. जमुरे बोला गुरु. यहां का हाल तो गजबे है. जो खेवनहार हैं, वे अपना पेट भरने में ही मस्त हैं. गरीब-गुरबा का ख्याल किसी को नहीं है. गुरु आपने सुना नहीं रांची में पूजा की कैसी धूम मची है. नोट गिनते-गिनते मशीनवों टें-टें बोलने लगी. अब तनी सोचिए गुरु, क्या हाल है रत्नगर्भा झारखंड का? गरीब लोग का कल्याण कैसे होगा? इसलिए तो यहां से हर साल हजारों बेरोजगार पलायन करते हैं. सरकार आती रहीं और जाती रहीं. हम दूसरे राज्यों में पलायन करते रहे. यह कह कर जमुरे ” चल मिनी आसाम जाबो, देशे बड़ो दुख रे… चा बागान… हरिया, साहेब बोले काम-काम, मुंशी बोले लिबो पीठेर चाम… पाठाली आसाम” झुमूर गीत गाकर रोने लगा. उस्ताद बोले ठीक है जमुरे. परदेस में आपन ख्याल रखना. (समाप्त)
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