Baghmara : बाघमारा (Baghmara) वैसे तो धनबाद को कोयला की राजधानी कहा जाता है, मगर एक जमाना था, जब यहां से काजू का निर्यात होता था. लोग दूर-दूर से यहां काजू बागान देखने आते थे. आस-पास के ग्रामीणों को प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से रोजगार मिलता था. परंतु बदलते समय के साथ काजू बागान उजड़ गया. बागान को लकड़ी माफिया की बुरी की नजर ने ग्रस लिया है.
होता था लाखों का व्यापार, लोगों को मिला था रोजगार
हालत यह है कि बागान के नब्बे प्रतिशत से अधिक पेड़ कट चुके हैं. जो बचे हैं उसे भी देखने वाला कोई नहीं. वन विभाग पूरी तरह उदासीन बना हुआ है. एनएच टू पर बरवाअड्डा से तोपचांची के बीच स्थित काजू बागान अब उजड़ते चमन की तरह दिखता है. जिला मुख्यालय से लगभग 18 किमी एवं जीटी रोड से सात किमी दूर गोविंदपुर अंचल की आसनबनी एक पंचायत स्थित काजू बागान लगभग 52 वर्ष पुराना है. गांव के बुजुर्गों के अनुसार वर्ष 1955 में बिहार सरकार ने यहां काजू के पेड़ लगवाये थे. उस वर्ष जबरदस्त अकाल पड़ा था. लगभग 26 एकड़ क्षेत्र में लगे इस बागान में सात हजार से अधिक काजू के पेड़ थे. बागान से उत्पादित काजू का ऑक्शन होता था. यहां के व्यापारी दूसरे राज्य में भी काजू भेजते थे. आस-पास के गांव के लोगों को काजू तोड़ने व रखवाली का काम मिलता था.
बच्चे तोड़ ले जाते हैं फल, लकड़ी से होती है अंत्येष्टि
कालांतर में वन विभाग ने बागान के रख-रखाव पर ध्यान देना छोड़ दिया. माफियाओं ने पेड़ को काट कर बेचना शुरू कर दिया. अब मुश्किल से यहां छह-सात सौ काजू के पेड़ ही बचे हैं. इन पेड़ों में काजू नहीं के बराबर ही फल रहा है. पास ही एक श्मशान घाट है, जहां अंतिम संस्कार के लिए भी लोग कभी-कभी काजू पेड़ ही काट लेते हैं. वृक्षों का रखरखाव भी नहीं होता है. काजू के फल गांव के बच्चे तोड़ कर घर ले जाते हैं और तवे पर भून कर खाते हैं. कुछ बर्बाद भी कर देते हैं. उनके लिए यह काजू मात्र खिलौना है.
ग्रामीण कहते हैं-अनाथ हो गया काजू बागान
जबकि सच्चाई यह है कि सरकार या वन विभाग ठोस व्यवस्था करें तो यह पर्यटन स्थल भी बन सकता है. ग्रामीण गणेश महतो कहते हैं कि अभी यह बागान लगभग 20 एकड़ में फैला हुआ है, जबकि पहले डेढ़ सौ एकड़ में काजू के पेड़ मचल मचल कर लोगों को आकर्षित करते थे. यह डेढ़ सौ एकड़ जमीन वन विभाग की है. ग्रामीण आजाद अंसारी का कहना है कि आज यह काजू बागान पूरी तरह अनाथ हो चुका है. इसे देखने वाला कोई नहीं है. नए पौधे भी नहीं लगाए जा रहे हैं. पुराने का रखरखाव भी नहीं होता है. सरकार या वन विभाग चाहे तो इसका कायाकल्प हो सकता है.
वन विभाग के अधिकारी कहते हैं-दे रहे हैं ध्यान
वन विभाग के अधिकारी काजू बागान के अगल-बगल जंगली वृक्ष लगा देते हैं, जिन्हें बाद में गांव वाले काट कर ले जाते हैं. लोगों की मांग थी कि काजू के पौधे ही लगाए जाएं. लेकिन वन विभाग ने कभी ध्यान दिया ही नहीं. राजगंज वन विभाग के अधिकारी ने बताया कि वृक्षों की कटाई न हो इसके लिए लगातार ध्यान दिया जा रहा है. काजू बगान को बचाने के लिए निरंतर प्रयास किया जा रहा है.
यह भी पढ़ें: धनबाद: ऑनलाइन शॉपिंग से घबराये व्यवसायी लगा रहे गुहार, कुछ तो करो सरकार