सुप्रियो ने अप्रत्यक्ष रूप से बाबूलाल और सुदेश पर साधा निशाना, कहा- भाजपा से आने वाले आदिवासी समाज के एक नेता मीरजाफर तो पिछड़े वर्ग से आने वाले आजसू के एक नेता जयचंद
Ranchi: झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) ने भाजपा से आने वाले आदिवासी समाज के एक नेता (संकेत- बाबूलाल मरांडी) को मीरजाफर और पिछड़े वर्ग से आने वाले आजसू पार्टी के एक नेता (संकेत- सुदेश महतो) को जयचंद कहा है. पार्टी नेता सुप्रियो भट्टाचार्य ने पिछड़े दिनों कैबिनेट से पास हुए 1932 की स्थानीय नीति और 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण के प्रस्ताव पर खुशी व्यक्त करते हुए भाजपा और आजसू पर हमला बोला है. पार्टी मुख्यालय में शुक्रवार को प्रेस वार्ता कर सुप्रियो ने कहा, दोनों प्रस्ताव को लेकर भाजपा नेता का बयान आता है कि हम इसे नहीं होने देंगे. भाजपा नेता ऐसा बयान इसलिए दे रहे हैं कि क्योंकि वे जानते हैं कि संसद में उनका बहुमत है. ऐसे में अगर हम राजभवन और न्यायपालिका से संरक्षण की उम्मीद नहीं करेंगे तो किससे करेंगे. अगर हमें संरक्षण नहीं मिलता हो तो न देश बचेगा न ही लोकतंत्र. इस दौरान झामुमो नेता ने भाजपा का नया नाम विधायक जोड़ो पार्टी दिया.
22 साल के संघर्ष के बाद विगत दो दिन पहले ही हमें मिली है अपनी पहचान
झामुमो नेता ने कहा, 22 साल के संघर्ष के बाद हमें विगत दो दिन पहले अपनी पहचान मिली है. राज्य गठन के बाद जब बाबूलाल मरांडी मुख्यमंत्री थे, तब उनके कैबिनेट में आजसू प्रमुख सुदेश महतो मंत्री थे. उस दौरान पिछड़े वर्ग के 27 प्रतिशत आरक्षण को कम करके 14 प्रतिशत किया गया. 2002 में समाज को विश्वास में लिए बिना ही बाबूलाल ने डोमिसाइल नीति बनायी, जिससे पूरा राज्य दहक उठा. इसके पीछे भाजपा की साजिश थी. उसी तरह रघुवर दास कैबिनेट में आजसू के वर्तमान सांसद चंद्रप्रकाश चौधरी मंत्री थे. उस समय 1985 की स्थानीय नीति बनी. यह भी भाजपा की साजिश थी. ऐसे में हम कह सकते हैं कि आदिवासी समाज से आने वाले भाजपा के नेता मीरजाफर हैं, तो पिछड़े वर्ग से आने वाले आजसू के नेता जयचंद्र.
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राजभवन अपना मंतव्य की कॉपी मुख्यमंत्री कों दे, ताकि जब कोई प्रतिकूल स्थिति बनती है, तो हम न्यायिक प्रक्रिया अपना पायें.
सुप्रियो ने एक बार फिर से मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के विधानसभा सदस्यता मामले में चुनाव आयोग के आए मंतव्य को सार्वजनिक करने की मांग की. उन्होंने कहा, 18 अगस्त को चुनाव आयोग ने अपना फैसला सुरक्षित रखा. उसके बाद आज एक माह का समय बीत चुका है, लेकिन रिपोर्ट में मंतव्य क्या है, इसे सार्वजनिक नहीं किया गया. हमारी मांग है कि बिना देरी किये राज्यपाल अपना मंतव्य चुनाव आयोग को भेजें. साथ ही चुनाव आयोग से जो मंतव्य आया है, उसे मुख्यमंत्री को दें, ताकि आगे किसी भी तरह की कोई प्रतिकूल स्थिति बनती है, तो हम न्यायिक प्रक्रिया को अपना सकें और भाजपा अपनी साजिश में सफल नहीं हो पाये.