Dhanbad : धनबाद (Dhanbad) धनबाद के बाजार में दीपावली पर कोलकाता में बनी लक्ष्मी गणेश की मूर्तियों के लिए लोग कतार लगाकर खड़े मिलते हैं. पूजन के लिए मिट्टी की मूर्तियों का बाजार सज गया है. आकर्षक मूर्तियां लोगों को लुभा भी रही हैं. परंतु गंगा नदी की मिट्टी से बनी मूर्तियों की तो बात ही कुछ और है. मूर्तियां फैंसी व खूबसूरत होती हैं, जो लोगों को पसंद आ रही हैं. गंगा नदी की मिट्टी से बनी इन लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियों की कीमत 70 प्रतिशत अधिक है. लोकल मूर्ति 40 से 200 रुपये में बिक रही है, तो गंगा की मिट्टी से निर्मित मूर्तियों की कीमत 200 से 1700 रुपये तक है.
लोकल की अपेक्षा ज्यादा महंगी होती हैं मूर्तियां
कारोबारी राजा मुख़र्जी बताते हैं कि गंगा मिट्टी की मूर्ति को ग्राहक अधिक पसंद कर रहे हैं. लोकल की अपेक्षा की ये मूर्तियां कई गुना महंगी होती हैं. लोकल मूर्तियां सस्ती तथा कोलकाता की मूर्तियां महंगी होती हैं. डिमांड के अनुसार कोलकाता की मूर्तियों की खरीदारी करते हैं. महंगी होने के बावजूद मूर्तियां हाथों हाथ बिक भी जाती हैं.
धनबाद में होती है फिनिशिंग
स्थानीय मूर्तिकार बताते है कि धनबाद में लक्ष्मी, गणेश की मूर्तियां नहीं के बराबर बनती हैं. यहां के कारखानों में अर्धनिर्मित मूर्तियां पश्चिम बंगाल ( कोलकाता ) से मंगाई जाती हैं. लोकल कारीगरों द्वारा मूर्तियों की रंगाई पुताई के साथ ओरिजनल कपड़े तथा मुकुट व साज सज्जा के साथ छोटे दुकानदारों को बेच दिया जाता है.
मिट्टी की महंगाई व ट्रांसपोर्टिंग के कारण बढ़े दाम
जितेंद्र पंडित बताते है कि गंगा मिट्टी की कीमत बढ़ने के कारण कोलकाता से ही अर्धनिर्मित मूर्तियां महंगी मिलती हैं. इसके बाद ट्रांसपोर्टिंग, कपड़े, मुकुट के साथ श्रृंगार तथा लोकल कारीगरों का खर्च जोड़ने पर मूर्तियाँ काफी महंगी हो जाती हैं. वह बताते हैं कि मनईटांड़ कुम्हार पाड़ा में प्रतिवर्ष कोलकाता से एक लाख से अधिक लक्ष्मी गणेश की मूर्तियां मंगाई जाती हैं. अर्धनिर्मित मूर्तियों को लगभग 20 से 25 लोकल मूर्तिकार 90 दिनों के भीतर रंग रोगन व श्रृंगार कर बाज़ारों में बेचते हैं.
क्या कहते हैं ग्राहक
ग्राहकों का कहना है कि लोकल मूर्तियों की अपेक्षा कोलकाता में बनी मूर्तियों की खूबसूरती देखते ही बनती है. हालांकि कोलकाता की मूर्तियां अपेक्षाकृत काफी महंगी होती हैं. परंतु खूबसूरती के कारण महंगाई को अनदेखा किया जा सकता है.
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