Sanni Sharma
Jharia : इरादे अगर बुलंद हों, तो कुछ भी असंभव नहीं है. इसे झरिया के किसानों ने साबित कर दिखाया है. अग्नि प्रभावित, भू-धंसान व बंजर जमीन पर जज्बे का हल चलाकर अपनी तकदीर बदली है. कोयले की चादर लपेटे झरिया की चर्चा मात्र से ही लोगों के जेहन में हवा में गैस की दुर्गंध, रिसती गैस और धुंआ, दहकती जमीन और जलता कोयला जैसी तश्वीरें उभरती हैं. लेकिन यहां के कुछ किसानों ने कड़ी मेहनत की बदौलत कंकड़-पत्थरवाली जमीन पर सब्जी की फसल उगाकर क्षेत्र की एक अलग तस्वीर पेश की है. झरिया शहर को लोदना, जयरामपुर व आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों को जोड़ने वाली सड़क के किनारे खेतों में लहलहाती सब्जी की फसल अलग नजारा पेश कर रही है. यहां की करीब दो हजार आबादी सब्जी की खेती पर निर्भर है.
काफी पहले यह पूरा क्षेत्र वीरान था. अग्नि प्रभावित, भू-धंसान और सुनसान होने के कारण यह क्षेत्र लूटपाट के लिए भी जाना जाता था. लेकिन स्थानीय लोगों ने अपनी मेहनत से इसे हराभरा बना दिया है. यहां के खेतों में पैदा होनी वाली गोभी, लौकी, मूली, भिंडी, बैगन, करैला, साग, धनिया व अन्य सब्जियों की आपूर्ति झरिया के अलावा धनबाद व आसपास के शहरों में हो रही है. धान व अन्य फसलों की अपेक्षा सब्जी में अधिक आमदनी देख किसानों ने इसकी खेती करने की ठानी और आज उसकी बिक्री से अच्छी आमदनी कर रहे हैं.
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किसानों का दर्द : कभी नहीं मिली सरकारी मदद
किसान मनोज साह कहते हैं कि जिस खेत में आप सब्जियां देख रहे हैं, वर्षों पहले तक यह कंकड़, बालू व पत्थरों से भरी जमीन थी. मुनाफे की बात तो दूर इस पर खेती करना सपने के समान था. रिकेश साह ने बताया कि काफी मेहनत से जमीन को उपजाऊ बनाया. वर्ष 1990 से वह यहां खेती-बाड़ी कर रहे हैं. हर मौसम की सब्जियां उगा रहे हैं. लेकिन इस बंजर इलाके में सब्जी की खेतो बढ़ावा देने के लिए सरकार की ओर से कभी कोई मदद नहीं मिली. अगर प्राकृतिक आपदा से फसल बर्बाद हो जाए, तो किसी तरह का मुआवजा तक नहीं मिलता. राजेश ठाकुर ने बताया कि दूसरे अंचल के किसानों को सरकारी योजनाओं का लाभ मिल रहा है, लेकिन झरिया के किसानों के साथ सौतेला व्यवहार किया जा रहा. सब्जी की बेहतर पैदावार के लिए सरकार किसानों को प्रशिक्षण के साथ सुविधाएं उपलब्ध कराती है, पर झरिया के किसानों को अब तक इसका लाभ नहीं मिला है.
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