Ranchi: राज्यभर के प्राइवेट स्कूलों में नामांकन चल रहा है. नामांकन के नाम पर अभिभावकों से मोटी रकम एनुअल फीस के नाम पर ली जा रही है. मंथली ट्यूशन फीस और स्कूल फीस भी बढ़ा दी गई है. बच्चों को स्कूलों से ही किताब-कॉपी खरीदने की बाध्यता भी है. स्कूल ड्रेस की खरीदारी से लेकर किताब-कॉपी की खरीदारी को लेकर अभिभावक परेशान हैं. हर साल किताब व ड्रेस बदल दी जा रही है, इससे भी अभिभावकों की परेशानी बढ़ रही है. अभिभावकों का कहना है कि सरकार को प्राइवेट स्कूलों की फीस पर अंकुश लगाने की जरूरत है. शुभम संदेश की टीम इस विषय पर अभिभावकों और संबंधित लोगों की राय जानी. प्रस्तुत है एक रिपोर्ट :
- नामांकन के नाम पर अभिभावकों से एनुअल फीस बताकर ली जा रही मोटी रकम
- न सार्थक पहल न दलील और न ही कोई अपील
- हर साल नई किताब-ड्रेस खरीदने की झेल रहे मार
- अभिभावकों की परेशानी सुनने वाला कोई नहीं
- वे आखिर कहां करें शिकायत
- सरकार से सख्त कानून बनाने की मांग कर रहे अभिभावक
जमशेदपुर
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फीस बढ़ने से अभिभावकों पर हर साल आर्थिक बोझ बढ़ जाता है
रश्मि कहती हैं कि स्कूलों में फीस वृद्धि कोई नई समस्या नहीं है. हर साल किताबें भी बदल दी जाती हैं. इससे अभिभावकों पर हर साल आर्थिक बोझ बढ़ता ही जाता है. हो सकता है स्कूलों की भी अपनी मजबूरी हो लेकिन उन्हें अभिभावकों की परेशानी का भी ध्यान रखना चाहिए. फीस वृद्धि हो या किताबें बदलने का मामला, स्कूलों को अभिभावकों के साथ भी विचार विमर्श कर लेना चाहिए.
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निजी स्कूलों में हर चीज में कमीशन का खुला खेल चलता है
धर्मेंद्र कुमार ने कहा कि किताबों की खरीदारी हो या स्कूल ड्रेस की, सब में स्कूल का कमीशन बना होता है. इस वजह से स्कूल किसी निश्चित दुकान या एजेंसी से ही खरीदारी करने को कहते हैं. इस पर रोक लगनी चाहिए. सरकार और प्रशासन को इसके प्रतिशत होना होगा और अभिभावकों को भी एकजुटता का परिचय देना होगा. अभिभावकों को अब आवाज बुलंद करनी ही पड़ेगी.
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फीस बढ़ोतरी की जानकारी अभिभावकों को जरूर दें
अनिता कुमारी ने कहा कि हर साल फीस वृद्धि पर रोक लगनी चाहिए. हर साल फीस वृद्धि करने के बजाय स्कूलों को कम से कम 2 या 3 साल के अंतराल पर फीस वृद्धि करनी चाहिए. इससे पूर्व अभिभावकों को भी इसकी जानकारी दी जानी चाहिए, ताकि मैं तैयार रहें. हर साल की तरह बदल दिए जाने के कारण नई व महंगी किताबें खरीदनी पड़ती हैं. इसे भी अभिभावकों पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है.
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निजी स्कूलों की मनमानी पर अंकुश लगाया जाना चाहिए
रीता कुमारी ने कहा कि प्राइवेट हमेशा अपनी मनमानी करते हैं. फीस वृद्धि हो या किताबें बदलनी हो, मैं अपने मन के मुताबिक ही निर्णय लेते हैं. इसमें अभिभावकों कीर्ति का ध्यान नहीं रखा जाता है. कम से कम जिला स्तर से इसकी मॉनिटरिंग होनी चाहिए और स्कूलों की मनमानी पर अंकुश लगाया जाना चाहिए. सरकार इस पर जल्द एक्शन ले.
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हर साल किताबों को बदलना भी स्कूलों की मजबूरी
विवेकानंद इंटरनेशनल स्कूल की प्राचार्य डॉ निधि श्रीवास्तव बताती हैं कि हर साल सिलेबस में कुछ न कुछ अपडेट किए जाने के कारण किताबों को बदलना स्कूलों की मजबूरी होती है. बढ़ती महंगाई और क्वालिटी एजुकेशन को लेकर अच्छे शिक्षक भी जरूरी हैं. इसलिए फीस वृद्धि की जाती है, हालांकि यह कहना कि हर साल फीस वृद्धि की जाती है या ड्रेस बदलाव होता है या किताबें बदली जाती हैं, यह सही नहीं है.
लातेहार :
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हर साल निजी स्कूलों मे भारी-भरकम फीस बढ़ाई जाती है
लातेहार के स्टेशन रोड के विरेंद्र प्रसाद ने कहा कि आज बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाना बहुत ही कठिन हो गया है. प्रति वर्ष स्कूलों की फीस बढ़ा दी जाती है. फीस भी कम नहीं भारी भरकम बढ़ाई जाती है, जिसे भरना भी मुश्किल हो जाता है. अगर किसी के घर में दो तीन बच्चे हैं तो उनकी पढ़ाई में ही आधी कमाई निकल जाती है. प्राइवेट स्कूलों को नियंत्रित करने की दरकार है.
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वर्तमान युग में शिक्षा का व्यावसायीकरण हो गया है
बाइपास रोड के मंजीत कुमार ने कहा कि आज शिक्षा का व्यावसायीकरण हो गया है. नामी गिरामी प्राइवेट स्कूल तो जूता, मोजे व ड्रेस से लेकर सब बेचने लगे हैं. अगर विद्यालय से इन चीजों को खरीदा नहीं जाये तो प्रबंधन नोटिस थमा देता है. उस पर हर साल स्कूल व ट्यूशन फीस के नाम पर मोटी वसूली की जाती है. इस पर लगाम लगनी चाहिए. सरकार जरूर ध्यान दे.
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स्कूलों की मनमानी से सब त्रस्त हैं, अब सरकार ही कुछ करे
इंडिगो सिक्यूरिटी फोर्स के एचएच चिश्ती ने कहा कि प्राइवेट स्कूलों की मनमानी से सब त्रस्त हैं. इस पर सरकार को ध्यान देने की जरूरत है. अगर सरकारी स्कूलों में ही बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले तो बच्चे प्राइवेट स्कूलों में नहीं जाएंगे. सरकार को सरकारी स्कूलों मे संसाधन मुहैया कराने की दरकार है. सरकारी स्कूलों के शिक्षकों की जवाबदेही तय होनी चाहिए कि अगर स्कूल का रिजल्ट अच्छा नहीं हुआ तो वे दोषी होंगे.
कोडरमा :
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स्कूल फीस को बढ़ाना हमारी मजबूरी है
कोडरमा से विवेकानंद कॉन्वेंट स्कूल के निदेशक अनिल साव ने बताया कि महंगाई बढ़ती जा रही है. उस हिसाब से स्कूल के खर्चे व मेंटेनेंस के लिए फीस को बढ़ाना मजबूरी है. हां, कुछ-कुछ स्कूल ज्यादा बढ़ाते हैं. मेरे स्कूल में नाममात्र का नार्मल बढ़ाया जाता है, जो कि इस वर्ष नहीं बढ़ाया जाएगा. रही एडमिशन फीस की बात तो बिना किसी शुल्क नए छात्रों का एडमिशन लिया जा रहा है.
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सीबीएसई मैनुअल को हिसाब से सारा कार्य होता है
कोडरमा से बीआर इंटरनेशनल स्कूल के शिक्षक सुनील रजक ने बताया कि शिक्षा के स्तर को मेंटेन रखने के लिए स्कूल में फीस वृद्धि और एडमिशन की विधि अनिवार्य लगती है, मगर मेरे स्कूल में छात्रों के लिए एडमिशन बिल्कुल मुफ्त है. जबकि स्कूल फीस मात्र 10% बढ़ाया गया है, जो कि न्यूनतम है स्कूल में सीबीएसई मैनुअल को हिसाब से सारा कार्य किया जाता है.
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राज्य सरकार को अब कड़ा कानून बनाना चाहिए
कोडरमा के डोमचांच स्थित महेश्वरी एकेडमी के प्रिंसिपल महेश प्रसाद ने बताया कि निजी स्कूलों को काफी मेहनत करनी पड़ती है और फीस नहीं बढ़ाने से स्कूल के मेंटेनेंस का कार्य काफी परेशानी भरा होता है. सरकार को चाहिए कि इस पर कोई कड़ा कानून बनाकर सारे स्कूलों को एक साथ ही सिस्टम लागू करें. हमारे स्कूल में कोई फीस वृद्धि नहीं की गई है .
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स्कूलों में हर साल किताब और ड्रेस चेंज नहीं होनी चाहिए
कोडरमा के आदर्श मध्य विद्यालय के प्राचार्य अश्वनी तिवारी ने बताया कि सरकारी स्कूलों में जहां पढ़ाई बिल्कुल मुफ्त है, वहीं निजी स्कूलों में पुरजोर दोहन छात्रों का किया जाता है. वहीं, निजी स्कूलों के लिए अभिभावकों को भी अन्य संसाधनों पर भी खर्च करना पड़ता है. स्कूल ड्रेस हर साल चेंज करना और किताबों को चेंज करना सब निजी स्कूलों की मनमानी पर रोक लगनी लगनी चाहिए.
रांची
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हर साल फीस बढ़ने से मिडिल क्लास पर बढ़ता है बोझ
रांची विश्वविद्यालय के सहायक प्राध्यापक डॉ. त्रिभुवन शाही ने कहा कि प्राइवेट स्कूलों में मनमानी फीस बढ़ने से मिडिल क्लास के लोगों पर बोझ बढ़ता है. एक मिडिल क्लास परिवार का आधा समय और आधी कमाई खत्म हो जाती है. शिक्षा सभी के लिए कम से कम पैसों में मिलनी चाहिए, ताकि गरीबों को भी अच्छे स्कूलों में शिक्षा मिल सके. सरकार को इसके लिए कोई कानून बनाकर इसपर रोक लगानी चाहिए.
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निजी स्कूलों को गैरजरूरी चीजों को वैकल्पिक करना चाहिए
रांची विश्वविद्यालय के सहाय प्राध्यापक डॉ. आराधना तिवारी ने कहा कि प्राइवेट स्कूलों में कहीं से फंड नहीं मिलता है. उनके सारे कामों के लिए खुद से खर्च करना पढ़ता है. इसके लिए फीस बढ़ती है. प्राइवेट स्कूल यह तो जरूर कर सकते हैं कि घुड़सवारी, स्वीमिंग या अन्य गैर जरूरी चीजों को वैकल्पिक रखें, ताकि बच्चों के अभिभावक को फीस के बोझ से छुटकारा मिल सके. निजी स्कूल इसका खास ध्यान रखें.
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सरकारी स्कूलों को बेहतर करे सरकार, मनमानी खत्म होगी
डोरंडा कॉलेज के वोकेशनल सहायक प्राध्यापक अवधेश ठाकुर ने कहा कि सरकारी स्कूलों में बढ़ती फीस सरकार की विफलता है. झारखंड के सरकारी स्कूलों को सरकार इतना बेहतर बना दे कि कोई भी प्राइवेट स्कूल में जाये ही नहीं. ऐसा नहीं करके तो सरकार ही प्राइवेट स्कूलों को फीस बढ़ाने का बढ़ावा दे रही है. जबतक सरकारी तंत्र मजबूत नहीं होगा, तबतक ऐसी मनमानी पर रोक लगना काफी मुश्किल है.
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सरकारी स्कूलों को दुरुस्त करे सरकार, निजी स्कूल का क्रेज कम होगा :
रांची विश्वविद्यालय के सहायक प्राध्यापक डॉ. अटल पांडेय ने बताया कि सरकारी स्कूलों को सरकार को दुरुस्त करने की जरूरत है. ये ठीक नहीं होने के कारण ही प्राइवेट स्कूलों की मनमानी बढ़ती है. इसका सीधा दबाव बच्चों के अभिभावकों पर पड़ता है. आम लोगों को निजी अंग्रेजी स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने का क्रेज रहता है. वह इसलिए क्योंकि सरकारी स्कूलों की पढ़ाई व व्यवस्था काफी खराब है.
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निजी स्कूलों ने शिक्षा को बिजनेस बना दिया है
केंद्रीय विश्वविद्यालय झारखंड में टेक्निकल असिस्टेंट के पद पर कार्यरत राम निवास सुथार ने कहा कि पिछले कई सालों से प्राइवेट स्कूलों की फीस में काफी इजाफा हुआ है. इन स्कूलों ने शिक्षा को बिजनेस बना लिया है. शिक्षा विभाग को इनकी मनमानी पर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए. कोई सख्त कानून बनाया जाए. सख्त कानून के डर से ही निजी स्कूलों की मनमानी पर रोक लगाया जा सकता है.
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कमीशन के लिए रेफरेंस बुक भी चलाते हैं निजी स्कूल
परितोष कुमार चौधरी मारवाड़ी प्लस टू हाई स्कूल में शिक्षक के रूप में कार्यरत हैं. वे निजी स्कूलों में फीस बढ़ोतरी के मामले पर कहते हैं कि चुनी हुई जगह से किताबें-कॉपी खरीदना हास्यास्पद लगता है. कमीशन कमाने के लिए रेफरेंस बुक चलाने का चलन हो गया है. स्कूलों बच्चों के लिए एनसीईआरटी की पुस्तकें काफी कारगर हैं. ये किताबें आगे भी काम आती हैं. लेकिन सभी स्कूल अलग-अलग किताबें चला रहे हैं.
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स्कूल की जरूरतों के हिसाब से बढ़नी चाहिए फीस
केंद्रीय विश्वविद्यालय झारखंड में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ सुदर्शन यादव कहते हैं कि स्कूलों को फीस अपनी जरूरतों के हिसाब से बढ़ानी चाहिए. सरकार प्राइवेट स्कूलों के लिए एक नियम तय कर दे कि प्राइवेट स्कूल सालभर में कितनी फीस वृद्धि कर सकते हैं. क्योंकि सभी निजी स्कूलों में हर साल अलग-अलग फीस बढ़ती है. कोई समानता नहीं रहती है. ऐसा नहीं करने पर स्कूल पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए.
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स्कूलों को अभिभावकों का भी ध्यान रखना चाहिए
नॉर्थ ईस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी के पूर्व फैकेल्टी मेंबर विनीत कुमार सिन्हा ने कहा कि स्कूलों को फीस बढ़ाने से पहले अभिभावकों का भी ध्यान रखना चाहिए. कोरोना के बाद अभिभावकों की कमाई काफी कम हो गई है. सरकार को फीस मामले में अभिभावक और स्कूलों से चर्चा करके नियम बना देना चाहिए. सभी के राय-मशविरा लेकर कोई बड़ा फैसला ले चाहिए, तभी स्कूलों की ये मनमानी बंद होगी.
सरकार सजग रहे तो प्राइवेट स्कूल मनमानी नहीं कर सकते : सम्राट सिंह
मारवाड़ी स्कूल में पढ़ाने वाले सम्राट सिंह फीस बढ़ोतरी के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि सरकार अगर सजग रहे तो प्राइवेट स्कूलों की मनमानी नहीं कर सकते. आज जो प्राइवेट स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाने की भीड़ लगी हुई, यह सब सरकार की नाकामी अभी है. अगर सरकार अपने सरकारी स्कूलों पर अच्छे से ध्यान दें तो मुझे नहीं लगता कि कोई भी अभिभावक अपने बच्चों को इतनी मोटी रकम देकर प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने के लिए भेजेंगे. प्राइवेट स्कूल तो शिक्षा को व्यापार बना चुके हैं. उनसे किसी तरह की रियायत का उम्मीद करना बेवकूफी होगी. हम आप के माध्यम से सरकार को कहना चाहते हैं कि अभिभावकों पर ध्यान दें.
सरकार प्राइवेट स्कूलों के खिलाफ कोई कड़े कदम नहीं उठाती : रजत आनंद
केंद्रीय विश्वविद्यालय झारखंड में शोध कर रहे रजत आनंद ने कहा कि स्कूल अपनी जरूरतों की हिसाब से फीस बढ़ाती है तो अभिभावक भी खुशी-खुशी फीस दे देंगे. लेकिन स्कूलों द्वारा हर साल बिना कोई कारण बताए हुए फीस में बहुत ज्यादा बढ़ा दी जाती है. इसके कारण अभिभावक को काफी परेशान होना पड़ता है. सरकार भी हर बार अभिभावकों की मदद करने का वादा करती है, लेकिन आप देखेंगे कि सरकार प्राइवेट स्कूलों के खिलाफ कोई कड़े कदम नहीं उठाती. सरकार और प्राइवेट स्कूल दोनों शिक्षा को व्यवसाय बना चुके हैं. मैं आपके माध्यम से मांग करता हूं कि सरकार स्कूलों की फीस वृद्धि पर कानून बनाएं.
धनबाद :
बढ़ती फीस से अभिभावक परेशान, स्कूलों को संसाधन का रोना
प्राइवेट स्कूलों में एलकेजी में एडमिशन चल रहा है. एडमिशन के नाम पर अभिभावकों से मोटी रकम एनुअल फीस के नाम पर ली जा रही है. मंथली ट्यूशन फीस और स्कूल फीस भी बढ़ा दी गयी है. बच्चों को स्कूलों से ही किताब-कॉपी खरीदने की बाध्यता भी है. स्कूल ड्रेस से लेकर किताब-कॉपी की खरीदारी से अभिभावक परेशान हैं. इसके अलावा हर साल किताब व ड्रेस भी बदल दी जा रही है. माता-पिता परेशान हैं, मगर स्कूल प्रबंधन से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि सार्थक फीस रखना जरूरी है. स्कूल के पास संसाधन नहीं हैं. सरकार उनकी मदद करती नहीं है. कोरोना काल में भी विद्यालयों को मुसीबत से गुजरना पड़ा है.
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स्कूली व्यवस्था बनाए रखने के लिए सार्थक फीस अनिवार्य
जेके सिन्हा मेमोरियल इंटरनेशनल स्कूल के प्राचार्य डॉ बी जगदीश राव कहते हैं कि दवा से लेकर रोटी, कपड़ा और मकान की कीमत बढ़ रही हैं. ऐसी स्थिति में बच्चों की फीस का बढ़ना निश्चित अभिभावकों के लिए परेशानी का कारण बनता है. परंतु मध्यम एवं छोटे विद्यालय जो किसी तरह से कोविड की महामारी से लड़कर खुद को जिंदा रखते हुए सभी शिक्षकों एवं कर्मचारियों के परिवार को जीवित रखने की कोशिश कर रहें हैं, उनके लिए फीस का बढ़ाना लाजिमी हो जाता हैं. सही और सार्थक फीस के अभाव में मध्यम एवं छोटे विद्यालय जिनके पास करोड़ों का बैंक बैलेंस नहीं हैं, उन्हें शिक्षकों एवं कर्मचारियों को एक सही वेतन, सही समय पर देने में भी परेशानी होती है. हम एनुअल फीस उगाही का विरोध करते हैं लेकिन नियम संगत फीस वृद्धि का समर्थन करते हैं.
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हर साल स्कूलों की बढ़ती एनुअल फीस बनती जा रही है नासूर
शिक्षाविद संजय कुमार बताते हैं कि निजी विद्यालयों द्वारा प्रतिवर्ष एडमिशन और एनुअल फीस के नाम पर मोटी रकम की वसूली अभिभावकों के लिए नासूर बनती जा रही है. प्रतिवर्ष विद्यालय की ड्रेस, किताब बदलकर पैसे की उगाही करना एक विडंबना है. इस बदलाव से बच्चों के शिक्षा प्राप्त करने की क्षमता से कोई संबंध नहीं है. एक बार विद्यालय में प्रवेश होने के बाद एडमिशन और एनुअल फी देने की बाध्यता से अभिभावक को मुक्त करना समय की मांग है.
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लॉकडाउन से आर्थिक स्थिति खराब, अब स्कूलों की फीस पड़ रही भारी
शिक्षाविद् अंकिता ने बताया कि कोरोना काल में लॉकडाउन ने आम जनता के इनकम पर बड़ा प्रभाव डाला है. लोगों का परिवार चलाना मुश्किल हो गया है. ऐसे में निजी स्कूलों की वर्तमान फीस ही उन पर भारी पड़ रही है. फीस बढ़ोतरी की संभावनाओं से अभिभावक परेशान है. इन सभी परेशानी की जड़ में शिक्षा के मंदिर को व्यवसाय से जोड़ना है. यह समाज और आम लोगों के लिए परेशानी का सबब है. जिला प्रशासन व सरकार को फीस वृद्धि के लिए बनाए गए नियम का पालन कड़ाई से करना चाहिए.
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इस साल भी फीस बढ़ी तो अभिभावकों पर पड़ेगा आर्थिक बोझ
पूर्व प्राध्यापक व अभिभावक नेहा साव का कहना है कि इस वर्ष अभी तक स्कूलों ने फीस बढ़ोतरी को लेकर खुलासा नहीं किया है. लेकिन अखबारों से जानकारी मिली है कि इस वर्ष लगभग सभी विद्यालयों ने फीस बढ़ाने के लिए कमर कस ली है. यदि फीस बढ़ाने के साथ ही सिलेबस चेंज होने के नाम पर किताबें बदल दी गयी तो अभिभावकों पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ पड़ना तय है. प्रत्येक वर्ष बच्चों का स्कूल ड्रेस छोटा हो जाता है या फिर स्कूलों द्वारा ड्रेस ही बदल दिया जाता है. अभिभावक परेशान रहते हैं.
हजारीबाग
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प्राइवेट स्कूलों की दुकानदारी पर रोक लगनी चाहिए
हुरहुरू निवासी रमेश हेम्ब्रम कहते हैं कि प्राइवेट स्कूलों की दुकानदारी पर रोक लगाने की जरूरत है. एलकेजी में नामांकन फीस के नाम पर प्राइवेट स्कूल काफी पैसे लेते हैं. साथ ही स्कूल के बताई दुकान से ही यूनिफॉर्म और पुस्तकें लेने की बाध्यता भी है. यह बाध्यता खत्म होनी चाहिए. अगर ऐसा नहीं हुआ, तो मध्यमवर्गीय परिवार के बच्चे प्राइवेट स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ा भी नहीं सकेंगे.
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प्राइवेट स्कूलों में फीस निर्धारित करने की है जरूरत
बड़ा बाजार निवासी पूजा छाबड़ा कहती हैं कि प्राइवेट स्कूलों में फीस निर्धारित करने की जरूरत है. प्राइवेट स्कूलों की भारी-भरकम फीस भरना सबके लिए आसान नहीं है. ऊपर से स्कूल से ही किताब और यूनिफॉर्म खरीदने का फरमान. उसमें में अनाप-शनाप दाम लगाए जाते हैं. प्राइवेट स्कूल के मनमानेपन पर रोक लगाने के लिए सरकार को अथॉरिटी बनाने की जरूरत है.
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राज्य सरकार और प्रशासन को संज्ञान लेना चाहिए
जैन धर्मशाला मार्ग निवासी प्रदीप पाटोदी कहते हैं कि प्राइवेट स्कूल में बच्चों के नामांकन के नाम पर हर साल फीस बढ़ा दी जाती है. हर साल फीस बढ़ाने से हमलोगों की परेशानी बढ़ रही है. कदम-कदम पर फीस, यूनिफॉर्म और पुस्तकों के नाम पर मोटी रकम वसूली जाती है. इस पर राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन को संज्ञान लेना चाहिए.
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प्राइवेट स्कूलों पर कार्रवाई करने की जरूरत
को-ऑपरेटिव कॉलोनी निवासी रामकिशोर मुर्मू कहते हैं कि प्राइवेट स्कूलों पर कार्रवाई करने की जरूरत है. एडमिशन चार्ज एक बार ही होना चाहिए. बार-बार फीस बढ़ाने से मध्यमवर्गीय परिवार पर बोझ बढ़ता है. उनके घर का बजट प्रभावित होता है. सरकार को फीस निर्धारित करना चाहिए ताकि बेहतर तरीके से अभिभावक अपने बच्चों को अच्छे विद्यालयों में शिक्षा दिला सकें.
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प्राइवेट स्कूलों की फीस पर लगाम कसने की जरूरत
व्याख्याता डॉ प्रमोद प्रसाद कहते हैं कि प्राइवेट स्कूलों की फीस पर लगाम कसने की जरूरत है. बच्चों की फीस, यूनिफॉर्म और किताबों में रियायत होनी चाहिए. इतने अधिक पैसे प्राइवेट स्कूल वाले ले लेते हैं कि घर चलना मुश्किल हो जाता है. घर में कई बच्चे हैं. भारी-भरकम फीस की वजह से प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाना समस्या बन गई है. फीस संतुलित होना चाहिए ताकि बच्चे पढ़ें भी और अभिभावक भी परेशान नहीं हों.
क्या कहते हैं स्कूल के डायरेक्टर
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उनके स्कूल में कम फीस पर दी जाती है शिक्षा
प्रतिष्ठित स्कूलों में शुमार सर माउंट स्कूल के डायरेक्टर ज्ञानेश्वर कुमार कहते हैं कि उनके स्कूल में कभी अभिभावकों पर फीस का ज्यादा बोझ नहीं डाला जाता है. उनके स्कूल में कम फीस पर बच्चों को शिक्षा दी जाती है. जिन अभिभावकों को परेशानी है, उनकी आर्थिक स्थिति को देखते हुए फीस में छूट भी दी जाती है. स्कूल कोई बिजनेस नहीं, यह शिक्षा का मंदिर है. अभिभावकों से हमेशा बातचीत की जाती है. स्कूल की समस्याओं पर भी आपसी सहमति बनाई जाती है. किसी अभिभावक को स्कूल की फीस अथवा कार्यशैली से कोई शिकायत का मौका नहीं दिया जाता है. वे बच्चों के लिए जहां से चाहें किताब और यूनिफॉर्म खरीद सकते हैं, उन्हें पूरी तरह से छूट दी गई है.
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