Nirsa: निरसा (Nirsa) पिता की हत्या हो गई, हत्या के आरोप में मां जेल चली गई. अब दो बच्चों का क्या होगा. यह सवाल प्रशासन और पूरे समाज को परेशान कर रहा है. 7 वर्षीय आयुष एवं 5 वर्षीय आदर्श की परवरिश कौन करेगा. बेनागोड़िया, निरसा के भोलानाथ मंडल की हत्या विगत 3 अप्रैल सोमवार को हो गई. हत्या का आरोप पत्नी लखी मंडल और उसके प्रेमी पवन मंडल पर लगाया गया है. कहा जा रहा है कि दोनों ने गला दबा कर भोलानाथ की हत्या कर दी, ताकि दोनों प्रेमी-प्रेमिका बगैर किसी रोक-टोक गुलछर्रे उड़ा सकें. प्रेमी बेनागोड़िया निवासी सागर मंडल का पुत्र है.
बच्चों की दोनों फुआ भी आर्थिक रूप से संपन्न नहीं
भोलानाथ गोविंदपुर की एक मिठाई दुकान में काम करता था. वह पत्नी और दो बच्चों के साथ विलेज रोड स्थित छोटा बांध के समीप मंतोष घोष के मकान में किराये पर रहता था. पुलिस ने उसी रात लखी मंडल को गिरफ्तार किया व दूसरे दिन मंगलवार को जेल भेज दिया. इस गिरफ्तारी के साथ ही आयुष व आदर्श अचानक अनाथ हो गए. बच्चों के दादा-दादी का निधन वर्षों पूर्व हो चुका है. भोलानाथ तीन बहनों में अकेला भाई था. एक बहन की मृत्यु हो चुकी है. दो बहनें आर्थिक रूप से इतनी संपन्न नहीं हैं कि इन दो बच्चों की परवरिश कर सके.
पुलिस ने चचेरे चाचा को समझा-बुझा कर सौंपा जिम्मा
लखी मंडल को जेल भेजने के बाद बच्चों को लेकर पुलिस भी चिंतित हो गई. गोविंदपुर पुलिस बच्चों को लेकर मृत भोलानाथ के चचेरे भाई जगन्नाथ मंडल के पास बेनागोड़िया पहुंची. परंतु उसने भी दोनों बच्चों के पालन-पोषण में असमर्थता जताई. उसने कहा कि ड्राइवरी कर वह मुश्किल से अपना घर चला पा रहा है. उसके भी दो बेटे जीत मंडल (13) व मितन मंडल (9) हैं. ऊपर से इन दो बच्चों का बोझ कैसे उठा पाएंगे. पुलिस ने समझा-बुझाकर व बीच-बीच में कुछ आर्थिक मदद करते रहने का भरोसा दिलाकर दोनों बच्चों का जिम्मानामा जगन्नाथ को सौंप दिया. भोलानाथ भी गरीबी में ही जीवन गुजार रहा था. रहने के लिए उसे इंदिरा आवास मिला था, जिसका अब तक प्लास्टर भी नहीं हुआ है. खिड़की वगैरह भी नहीं लगी है.
भंवर में फंसा आयुष व आदर्श का भविष्य
ऐसी परिस्थिति में आयुष एवं आदर्श का भविष्य कैसा होगा. यह यक्ष प्रश्न सिर पर है. उत्तर भविष्य की मुट्ठी में बंद है. ऐसी ही घटना प्रखंड के महुबनी-2 पंचायत अंतर्गत चकचिरूबाद में 7-8 वर्ष पूर्व घटी थी. वज्रपात से एक आदिवासी दंपति की मौत हो गई थी. तब उसकी एक पुत्री व एक पुत्र की परवरिश को लेकर ऐसी ही परिस्थिति उत्पन्न हो गई थी. प्रशासनिक प्रयास से दोनों की परवरिश का जिम्मानामा उसी गांव के एक व्यक्ति को दिया गया था. उसके एवज में गोविंदपुर के तत्कालीन बीडीओ संजीव कुमार की ओर से उस परिवार को राशन-पानी आदि समेत कई अन्य सुविधाएं नियमित प्रदान की जा रही थी. बाद में दोनों बच्चों को पढ़ाने-लिखाने के बदले घर का कामकाज व चौका-बर्तन करते पाया गया. अब इन बच्चों का भी भविष्य प्रशासनिक महकमा के साथ ही जनप्रतिनिधियों एवं सामाजिक संगठनों की इच्छाशक्ति पर टिक गया है.
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