NewDelhi : केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि समलैंगिक विवाह को मान्यता देने का अनुरोध करने वाली याचिकाएं शहरी संभ्रांतवादी विचारों को प्रतिबिंबित करती हैं. कहा कि विवाह को मान्यता देना अनिवार्य रूप से एक विधायी कार्य है, जिस पर अदालतों को फैसला करने से बचना चाहिए. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ देश में समलैंगिक विवाह को कानूनी रूप से वैध ठहराये जाने का अनुरोध करने वाली याचिकाओं पर मंगलवार, 18 अप्रैल को सुनवाई करेगी.
Centre informs Supreme Court that the petitions seeking legal recognition of same-sex marriage merely reflect urban elitist views and cannot be compared with the appropriate legislature which reflects the views and voices of a far wider spectrum and expands across the country.
— ANI (@ANI) April 17, 2023
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फैसला देश पर व्यापक प्रभाव डालेगा
CJI डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति एस के कौल, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट, न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ इन याचिकाओं पर सुनवाई शुरू करेगी. उच्चतम न्यायालय ने इन याचिकाओं को 13 मार्च को पांच न्यायाधीशों की इस संविधान पीठ के पास भेज दिया था और कहा था कि यह मुद्दा बुनियादी महत्व’ का है. इस मामले की सुनवाई और फैसला देश पर व्यापक प्रभाव डालेगा, क्योंकि आम नागरिक और राजनीतिक दल इस विषय पर अलग-अलग विचार रखते हैं.
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धार्मिक संप्रदायों के विचारों को ध्यान में रखना होगा
केंद्र ने याचिकाओं के विचारणीय होने पर सवाल करते हुए कहा कि इस अदालत के सामने जो (याचिकाएं) पेश की गयी है, वह सामाजिक स्वीकृति के उद्देश्य से मात्र शहरी संभ्रांतवादी विचार है. केंद्र सरकार के अनुसार सक्षम विधायिका को सभी ग्रामीण, अर्द्ध-ग्रामीण और शहरी आबादी के व्यापक विचारों और धार्मिक संप्रदायों के विचारों को ध्यान में रखना होगा. यह भी कहा कि पर्सनल लॉ के साथ-साथ विवाह के क्षेत्र को नियंत्रित करने वाले रीति-रिवाजों और इसके अन्य कानूनों पर पड़ने वाले अपरिहार्य व्यापक प्रभावों को भी ध्यान में रखना होगा.
विवाह एक सामाजिक-वैधानिक संस्था है
बता दें कि केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह की कानूनी वैधता का अनुरोध करने वाली याचिकाओं के एक समूह के जवाब में दायर शपथपत्र में यह प्रतिवेदन दिया. शपथ पत्र में कहा गया है कि विवाह एक सामाजिक-वैधानिक संस्था है, जिसे भारत के संविधान के अनुच्छेद 246 के तहत एक अधिनियम के माध्यम से केवल सक्षम विधायिका द्वारा बनाया जा सकता है, मान्यता दी जा सकती है, कानूनी वैधता प्रदान की जा सकती है और विनियमित किया जा सकता है.
इन मुद्दों को निर्वाचित जन प्रतिनिधियों के विवेक पर छोड़ दिया जाये
केंद्र ने कहा, विनम्र अनुरोध है कि इस याचिका में उठाये गये मुद्दों को निर्वाचित जन प्रतिनिधियों के विवेक पर छोड़ दिया जाये, क्योंकि ये प्रतिनिधि ही लोकतांत्रिक रूप से व्यवहार्य और ऐसे वैध स्रोत हैं, जिनके माध्यम से किसी नये सामाजिक संस्थान का गठन किया जा सकता है/उसे मान्यता दी जा सकती है और/या उसे लेकर समझ में कोई बदलाव किया जा सकता है.