Kameshwar Prasad Shrivastava
कविता को मनुष्यता का पर्याय कहा जाता है. कविता का धरातल मानवीय करुणा का धरातल है. इस धरातल पर कवि जीवन का संपूर्ण देखता है और यह संपूर्णता आती है प्रेम से. युवा कवि प्रणव प्रियदर्शी का काव्य संग्रह ‘सब तुम्हारा’में प्रेम के विभिन्न रूपों को दर्शाया गया है. मिलन, विरह, दर्शन, अध्यात्म संग्रह के मुख्य बिंदु हैं. बहुचर्चित कवि व कहानीकार विमलेश त्रिपाठी ने पुस्तक के फ्लैप पर कवि प्रणव प्रियदर्शी को एक भावुक और संवेदनशील कवि कह कर संबोधित किया है और यह भी लिखा है कि कवि अपने शब्दों में किसी तरह की बनावट के साथ न आकर सहज रूप से सामने आता है.
पुस्तक के समर्पण की पंक्तियां – ‘जीवन के उन अहसासों को समर्पित जिनके वशीभूत हो कोई किसी को अपना बनाता है या किसी का हो जाता है’ – प्रेम की पराकाष्ठा प्रकट करती है. कवि ने अपने आत्मकथ्य में लिखा है – ‘प्रेम के स्वरूप और ढंग में बहुत बदलाव आया है. यह विकृति अधिक और संस्कृति कम बन रही है.’ कवि आहत है, दुखी है, चिंतित है प्रेम के आधुनिक स्वरूप को देखकर. पहली पुस्तक की पहली कविता ही कवि को साहित्यिक ऊंचाई पर बिठा देती है – ‘जो श्रद्धा के आंचल में/ स्नेह दीप बनकर/ चिर असीम सौंदर्य की पनाहों में/ रोशनी करता है/ उसका एक नाम प्रेम होता है. पुस्तक के नाम की शीर्षक कविता – ‘सब तुम्हारा’ – मेरी हर खुशी/तुम्हारे साथ जुड़ी/मेरा हर दर्द तुमसे ही आया/कहीं कुछ चमक कर/ अचानक खो जाता/ सब तुम्हारा.’इस प्रेम के बगैर जीवन में न संगीत है, न लय है, न राग है, बस तरह-तरह के खटराग हैं.
‘मेरा वजूद’ कविता देखिए
‘जब तुम कभी मेरी मासूमियत पर जोर से हंस पड़ती हो/मैं एक कविता बन जाता हूं. प्यार की एक बानगी ‘दूरी ठहर गई थी’में देखिए-‘मिलन ऐसा हो कि वक्त को भी ठहर जाना पड़े/ इसी इंतजार को लेकर इतनी घड़ी गुजर गयी थी.’
अंतिम कविता प्रेम ही हो जाएं में प्रणव कहते हैं- ‘प्रेम यात्रा है/ कीचड़ से कमल की तरफ/ प्रेम संक्रमण की अवस्था है/ इस पार संसार है/उस पार परमात्मा है.’ यह पंक्ति भारतीय संस्कृति के प्रेम को उजागर करती है. सभी कविताएं प्रेम के अलग-अलग रूप-रंग और स्थिति-परिस्थिति को व्यक्त करती है. कला और शिल्प की दृष्टि से इस पुस्तक की हर कविताएं अत्यंत मौलिक और संप्रेषणीय हैं. पाठकों को पढ़ने से लगेगा, इनकी कविताओं में उन्हीं के मनोभाव को व्यक्त किया गया है.
डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं.