Saurav Singh
Ranchi : झारखंड पुलिस का कथित फर्जीवाड़ा और लापरवाही लगातार उजागर हो रहा है. राज्य में जहां एक तरफ पुलिस जनता की रक्षा करने की बात कहती है. वहीं दूसरी ओर पुलिस कुछ मामले में अपनी झूठी वाहवाही लूटने के लिए साजिश के तहत निर्दोषों को जेल भेज देती है. पुलिस के गलत अनुसंधान के कारण राज्य में दस लोगों को निर्दोष होकर भी जेल में रहना पड़ा. राज्य में इस तरह के कई ऐसे मामले सामने आये हैं, जिसकी वजह से पुलिस अपनी ही कार्यप्रणाली को लेकर सवालों से घिर गयी है. (पढ़ें, अभिषेक को सीबीआई ने तलब किया, तो ममता भड़की, कहा निरंकुश सरकार के एजेंसी राज ने हमारे काम को चुनौतीपूर्ण बना दिया है)
पुलिस की लापरवाही से 19 महीने जेल में रहा बेकसूर सूरज
रांची सिविल कोर्ट ने सूरज कुमार सोनी को हत्या के आरोप में बीते 18 मई को बरी कर दिया. नगड़ी थाना से जुड़े कांड संख्या 157/21 में सूरज कुमार को विमल कुमार महतो की हत्या का आरोपी बनाया गया था. करीब 19 महीने तक सूरज को उस जुर्म के लिए जेल में रहना पड़ा, जो उसने किया ही नहीं था. रांची सिविल कोर्ट के अपर न्यायायुक्त 15 दिनेश कुमार की कोर्ट में इस केस का ट्रायल हुआ. अभियोजन पक्ष की ओर से 11 गवाह पेश किये गये. उन गवाहों ने कहा कि पुलिस अधिकारियों ने जिसे को गिरफ्तार किया था, उस युवक ने विमल महतो की हत्या नहीं की है. नौ सितंबर 2021 को विमल महतो नाम के व्यक्ति की हत्या कर दी गयी थी. इस मामले में नगड़ी थाना की पुलिस ने बीते 12 अक्टूबर 2021 को कल्लू उर्फ सूरज सोनी के बदले दूसरे युवक सूरज सोनी और एक अन्य युवक को जेल भेज दिया था.
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मानव तस्करी के झूठे आरोप में 6 माह तक जेल में रही महिला
22 जून 2017 में रेल पुलिस ने अपनी जांच में जिस महिला को मानव तस्करी का दोषी पाया था. उस महिला को रेलवे न्यायालय ने क्लीन चिट दे दिया था. रेलवे न्यायालय ने यह पाया था कि महिला पर लगाया गया मानव तस्करी का आरोप झूठा है. जिलानी लुगुन नाम की महिला सिमडेगा जिले की रहनेवाली है. जिलानी लुगुन मानव को तस्करी करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया थी. लेकिन जिलानी लुगुन पर जिस बच्ची की तस्करी का आरोप लगा था, उसी बच्ची ने धारा 164 के तहत कोर्ट में जिलानी लुगुन के पक्ष में बयान दे दिया था. जिसके बाद कोर्ट ने जिलानी लुगुन को क्लीन चिट दे दिया था. बिना कुछ किये जिलानी लुगुन महिला को छह माह तक जेल में रहना पड़ा था.
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इंतजार अली को एक अधिकारी की प्रोन्नति के लिए फंसाया गया था
20 अगस्त 2015 को रांची हिंदपीढ़ी के डॉक्टर इंतजार अली को झूठे केस में फंसाया गया था. यह साजिश एक अधिकारी की प्रोन्नति के लिए रची गयी थी. इस राज का खुलासा गिरफ्तार दीपू खान ने किया, जो पुलिस का मुखबिर था. दीपू ने पुलिस को बताया था कि उसने खुद विस्फोटक प्लांट किया था. उसने बताया था कि सुरक्षा एजेंसी से जुड़े एक अधिकारी को प्रोन्नति दिलाने के उद्देश्य से विस्फोटक बरामदगी की साजिश रची गयी थी. इस मामले में इंतजार अली को 56 दिनों तक जेल में भी रहना पड़ा था. बता दें कि दीपू खान पश्चिम बंगाल के रानीगंज का रहने वाला था.
निर्दोष होने के बाद भी पांच साल जेल में रहा जीतन मरांडी
गिरिडीह पुलिस ने जीतन मरांडी को नक्सली बताकर गिरफ्तार किया था. पुलिस का आरोप था कि जीतन मरांडी 26 अक्टूबर 2007 को हुए चिलखारी नरसंहार का मास्टरमाइंड है. इस मामले में पुलिस ने जिन छह लोगों को चश्मदीद बताकर अदालत में 164 के तहत बयान दिलाया था, हाई कोर्ट ने उनकी गवाही को स्वीकार नहीं किया था. पुलिस अनुसंधान का सबसे कमजोर पक्ष यह था कि प्राथमिकी दर्ज कराने वाले नुनूलाल मरांडी के सरकारी अंगरक्षक पूरन किस्कू ने अदालत में किसी भी नामजद आरोपी को नहीं पहचाना. पुलिस एक भी स्थानीय गवाह पेश नहीं कर सकी. पुलिस ने जो गवाह पेश किये थे, वे घटना स्थल से करीब तीस से चालीस किमी. दूर थे. चश्मदीद नुनूलाल की गवाही नहीं होना भी मुकदमें का कमजोर पक्ष रहा. पुलिस ने अपनी एक भूल को छिपाने के लिए जो गलती की, वह मुकदमें पर भारी पड़ी. हार्डकोर नक्सली जीतन मरांडी के नाम पर भूलवश दूसरे जीतन मरांडी (जो झारखंड एवेन के सचिव थे) को पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. बाद में जब असली जीतन मरांडी पकड़ाया, तो उसे भी जेल भेज दिया गया. पुलिस चार्जशीट में दो जीतन मरांडी की संलिप्तता बतायी गयी. जबकि चश्मदीद गवाहों ने एक ही जीतन मरांडी की संलिप्तता की बात अदालत को बतायी. इन तमाम सवालों को आरोपी के वकीलों ने हाई कोर्ट में उठाया. जिसका कोई काट अभियोजन पक्ष के पास नहीं था. जिसे देखते हुए अदालत ने पांच साल बाद जीतन मरांडी को बरी किया.
ईसीएल कर्मी चिरंजित घोष को भेजा गया था जेल
25 अगस्त, 2019 को धनबाद के निरसा में पुलिस ने एक सेवरले गाड़ी से 39.300 किलो गांजा बरामद किया था. इस मामले में धनबाद पुलिस ने ईसीएल कर्मी चिरंजित घोष को गांजा तस्कर बताते हुए आरोपी बनाया था. धनबाद पुलिस ने इस मामले में चिरंजीत को गिरफ्तार कर जेल भी भेज दिया था. चिरंजीत के जेल भेजे जाने के बाद उसकी पत्नी ने तत्कालीन डीजीपी केएन चौबे समेत राज्य पुलिस के अन्य अधिकारियों से मुलाकात कर इंसाफ की गुहार लगायी थी. तब मुख्यालय स्तर से मामले की जांच कराये जाने के बाद यह साबित हुआ था कि चिरंजीत को गलत तरीके से फंसा कर जेल भेजा गया. पुलिस की पोल खुलने के बाद कोर्ट में तथ्यों की भूल बताते हुए चिरंजीत को 25 दिन बाद रिहा कराया था.
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