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सामाजिक संगठनों ने पूछा- आदिवासी, दलित, पिछड़ों की आवाज उठाने वाले संगठनों पर संदेह जताने का क्या है आधार
Ranchi : विभिन्न जन संगठनों के प्रतिनिधिमंडल ने राज्य पुलिस के स्पेशल ब्रांच के आईजी प्रभात कुमार से मुलाक़ात की. प्रतिनिधिमंडल डीजीपी से मिलने की मांग पर अड़े थे. डीजीपी ने आईजी को प्रतिनिधिमंडल से मिलने के लिए नियुक्त किया था. प्रतिनिधिमंडल ने पुलिस महानिदेशक को संबोधित एक मांग पत्र सौंपा, जिसमें मामले का पूर्ण विवरण है.
20 सितंबर 2023 को शुभम संदेश अखबार व लगातार न्यूज़ पोर्टल में ’64 संगठनों की होगी जांच, प्रतिबंधित भाकपा माओवादी से संबंध होने का संदेह’शीर्षक के साथ खबर छपी थी. इस खबर के अनुसार 64 संगठनों की सूची बनाई गयी है, जिनपर भाकपा (माओवादी) से तथाकथित संबंध होने का संदेह जताया गया है. झारखंड पुलिस की ओर से स्पेशल ब्रांच को इन 64 संगठनों की जांच करने का आदेश दिया गया है.
इससे सूची में शामिल कई जन संगठन (जो पत्र के हस्ताक्षरी हैं) अचंभित और व्यथित हैं. संगठन के प्रतिनिधियों का कहना है कि ये लोग लगातार राज्य के आदिवासी, दलित, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों व वंचितों के संवैधानिक अधिकारों के लिए संघर्ष करते रहे हैं. जल, जंगल, ज़मीन पर अधिकार, विस्थापन के विरुद्ध, सांप्रदायिक सौहार्द, सांप्रदायिक हिंसा के विरुद्ध, सामाजिक-आर्थिक अधिकार दिलाने की मांग हो या मनरेगा, खाद्य सुरक्षा, पेंशन आदि, प्रवासी मजदूर,किसानों के अधिकार, आदिवासी स्वशासन व्यवस्था, मानवाधिकार उल्लंघन व हिंसा जैसे लिंचिंग, फर्जी मामले दर्ज़ होना, फ़र्जी अकाउंटर आदि कोई भी समस्या हो, संगठन के लोग हमेशा पीड़ितों के साथ खड़ा रहते हैं. इसके लिए संगठनों द्वारा लगातार मुद्दों को सार्वजनिक करना, बयान जारी करना, प्रशासनिक व पुलिस पदाधिकारियों से मिलना, मुख्यमंत्री व अन्य मंत्रियों से वार्ता करने जैसे कार्य किए जाते रहे हैं. इन संगठनों द्वारा हमेशा संवैधानिक दायरे में शांतिपूर्ण व लोकतांत्रिक संघर्ष किया जाता रहा है. इन संगठनों द्वारा उठाए गए कई मुद्दों पर कई मंत्रियों व मुख्यमंत्री ने खुद संज्ञान लिया है. फिर भी ऐसे संगठनों पर भाकपा माओवादी के साथ सांठगांठ का संदेह जताना दुर्भाग्यपूर्ण है.
लिस्ट तैयार करने का क्या है आधार
विभिन्न संगठन के प्रतिनिधियों ने कहा कि भाकपा (माओवादी) से जुड़े होने का आरोप लगाना राज्य के आदिवासी, दलित, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों और वंचितों के जन अधिकारों की अवधारणा पर ही सवाल करने के बराबर है. ऐसा प्रतीत होता है कि राज्य पुलिस नहीं चाहती कि लोग अधिकारों के लिए संवैधानिक संघर्ष करें एवं अधिकारों के उल्लंघनों के विरुद्ध शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक विरोध दर्ज़ करें. लोकतांत्रिक अधिकारों पर लगातार संघर्ष कर रहे लोगों व संगठनों में दमन का माहौल पैदा करने की मंशा झलकती है. यह लोकतंत्र को सीमित करने की दिशा में कदम प्रतीत होता है. यह पुलिस की मंशा पर गंभीर सवाल खड़े करती है. बिना किसी सबूत के ऐसे सभी संगठनों पर भकपा (माओवादी) का अग्रसंगठन होने का संदेह करना अत्यंत चिंतनीय है. प्रतिनिधियों ने पूछा है कि इस सूची को बनाने का तथ्याधार क्या है.
अखबार में प्रकाशित खबर की पुष्टि की मांग
सभी संगठनों ने समूहिक रूप से पुलिस महानिदेशक से मांग की है कि अखबार में छपी इस खबर की पुष्टि की जाए. अगर राज्य पुलिस द्वारा ऐसी सूची बनाई गयी है व जन अधिकारों पर संवैधानिक दायरे में शांतिपूर्वक रूप से संघर्षरत जन संगठनों पर इस प्रकार का आरोप लगाया जा रहा है, तो तुरंत राज्य पुलिस इस सूची को खारिज करें. संबंधित स्थानीय पुलिस पदाधिकारियों को सूचित करें एवं लोकतंत्र को बहाल करने में अपनी भूमिका निभाएं. आईजी ने कहा कि इससे संबंधित स्पष्टीकरण एक सप्ताह में प्रकाशित किया जाएगा. पत्र की प्रतिलिपि मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव व गृह सचिव को भी सौंपा गया है.
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