Dr. Pramod Pathak
इजराइल फिलिस्तीन युद्ध कहां जाकर रुकेगा यह कहना तो फिलहाल मुश्किल है लेकिन इतना निश्चित है कि युद्ध से इस मसले का समाधान नहीं होने वाला. युद्ध से वैसे भी किसी मसले का समाधान नहीं होता, लेकिन इतना जानने के बाद भी समझने की फुर्सत किसी को नहीं है. दरअसल इसका कारण बड़ा सीधा है. हम अभी भी सभ्य नहीं हो पाए हैं और मानव समाज कहलाने के काबिल नहीं है. पाषाण युग से तो हम निकल गए, लेकिन पाषाण युग हमारे अंदर से अब भी नहीं निकल सका है. रॉबर्ट ब्राउनिंग ने कहा था कि प्रगति जीवन का सिद्धांत है, इंसान अब भी इंसान नहीं बन पाया. कब इंसान इंसान बनेगा, बनेगा भी या नहीं, यह कहना मुश्किल है. वैसे यह कथन आज के वैश्विक परिदृश्य पर काफी सटीक टिप्पणी करता है. भले ही भौगोलिक राजनीतिक दृष्टिकोण से आज की इस परिस्थिति को लोग पश्चिम एशिया और यूरोप की अस्थिरता मानें, लेकिन यह है तो वैश्विक अस्थिरता और यह पूरी दुनिया के लिए संकट का संकेत है. पूरी इंसानियत के लिए अस्थिरता. एक ओर तो रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते ही दुनिया पर संकट के बादल मंडरा रहे थे कि यह नया युद्ध शुरू हो गया. पिछले कोई 19 महीने से चल रहे रूस-यूक्रेन की लड़ाई में विश्व तो पहले ही दो खेमे में बंटा दिखाई दे रहा था.
इस युद्ध की पृष्ठभूमि भी पुरानी है और कब तक चलेगा युद्ध यह भी कहना मुश्किल है. लड़ाई तो प्रत्यक्ष में रूस और यूक्रेन के बीच है लेकिन युद्ध में कई खिलाड़ी अप्रत्यक्ष रूप से दोनों देशों के साथ गोलबंद खड़े हैं. यह एक प्रकार की वैश्विक खेमाबंदी है. कुछ देश भले ही तटस्थ दिखना चाहते हैं मगर कहीं ना कहीं से शामिल हैं. इसी तरह इजराइल और फिलिस्तीन के बीच का युद्ध भी है. अब इस युद्ध का तात्कालिक कारण जो भी हो, लेकिन इसकी पृष्ठभूमि भी पुरानी है और इस युद्ध में भी दुनिया दो खेमों में बंटी दिखाई दे रही है. इजराइल फिलिस्तीन का यह विवाद विश्व इतिहास का शायद सबसे लंबा अनसुलझा विवाद है और यह दोनों युद्ध वैश्वीकरण के सिद्धांत की पोल खोल रहे हैं. यह लड़ाई भी जल्दी खत्म होने वाली नहीं है. तो आखिर हम क्या निष्कर्ष निकालें. दो-दो विश्व युद्ध की तबाही की यादें अभी भी बहुत पुरानी नहीं हुई होंगी और उसके पहले भी कई बड़े युद्ध दुनिया में लड़े गए हैं, जिनके दुष्परिणाम इतिहास में दर्ज हैं. मानव इतिहास युद्ध का इतिहास है, लेकिन मनुष्य ने इन तमाम जानकारी होने के बावजूद कोई सबक नहीं सीखा. यह सभी जानते हैं कि युद्ध से विनाश के अलावा कुछ हासिल नहीं होता, लेकिन लोग इस सच्चाई को बहुत देर में समझते हैं. यही वजह है कि मनुष्य युद्ध करने से बाज नहीं आता. आखिर ऐसा क्यों होता है? इसका उत्तर हमें महाभारत के यक्ष-युधिष्ठिर संवाद में मिल सकता है. जब अज्ञातवास में पांडव जीवन गुजार रहे थे, तबकी घटना है.
जल की तलाश में निकले अपने चार भाइयों को ढूंढने युधिष्ठिर निकले तो उनका सामना सरोवर की रखवाली कर रहे यक्ष से होता है, जो उन्हें कुछ प्रश्नों का उत्तर देने की शर्त रखता है. उसी के दौरान यक्ष ने युधिष्ठिर से पूछा था कि दुनिया में सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है? युधिष्ठिर का उत्तर था कि सबसे बड़ा आश्चर्य यही है की हर व्यक्ति देखता है कि दुनिया में लोग मर रहे हैं, लेकिन वह सोचता है कि उसे मृत्यु नहीं आएगी. यही उत्तर आज के युद्धों की गुत्थी सुलझाने में कारगर होगी. दरअसल अनश्वर होने का भ्रम मनुष्य में अहं पैदा करता है. यही अहं उसे युद्ध की ओर धकेलता है. यह अहं ही मनुष्य के मस्तिष्क को विकृत करता है और यही विकृति युद्ध का कारण है. दरअसल युद्ध के कारण भले ही बहुत से गिनाये जा सकते हैं, लेकिन बुनियादी कारण एक ही है-मानसिक विकृति. इसीलिए कहा गया है दुनिया की बड़ी से बड़ी लड़ाई मनुष्य के मस्तिष्क में पैदा होती है और यह आज की बात नहीं है. महाभारत काल या उससे पहले भी युद्ध के पीछे यही कारण था. इसीलिए अमेरिकी दार्शनिक और राजनेता फ्रांसिस बेकन ने कहा था कि यदि हम किसी समस्या की जड़ में जाएंगे तो पाएंगे कि उसका कारण एक ही है–मनुष्य.
अभी हाल ही में हमने दशहरा मनाया. पूरे देश में जोर-शोर से रावण को जलाया गया, लेकिन साल दर साल जलने के बाद रावण फिर भी जिंदा है, क्योंकि रावण तो मनके अन्दर है. अहंकार की दुर्भावना मनुष्य के मन में है. यही अहंकार तो युद्ध और फिर विनाश की ओर ले जाता है. कहानी है कि रावण का वध करने के बाद लंका विजय कर जब राम अयोध्या पहुंचते हैं तो लोग उनसे पूछते हैं कि आपने रावण को कैसे मारा. तब राम उत्तर देते हैं कि रावण को मैंने नहीं, बल्कि ‘मैं’ यानी उसके अहंकार ने मारा. यही मैं या अहंकार युद्ध और उससे उपजे विनाश का कारण है. आज गाजा पट्टी की लड़ाई, जिसमें कहीं न कहीं से दुनिया के कई देश शामिल हैं, महज 365 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल की लड़ाई है, जिसमें 20 लाख से अधिक लोग रहते हैं. इस लड़ाई में जितना नुकसान हुआ है और जितना आगे होगा, वह इस पूरे क्षेत्रफल की कीमत से कई गुना ज्यादा होगा. मगर ये लोग नहीं समझ रहे. अहंकार यही करता है.
आदमी की बुद्धि कुंद कर देता है और उसे अंधा बना देता है.विनाश काले विपरीत बुद्धि. वैसे तो इस पूरी लड़ाई में सामने सिर्फ दो समूह दिख रहे हैं, लेकिन कहीं न कहीं से बहुत से लोग निहित स्वार्थवश इसमें शामिल हैं. काफी हद तक लड़ाई के जिम्मेदार भी वे ही हैं. यदि बात की तह में जाया जाए तो रूस-यूक्रेन युद्ध पर भी यही बात लागू होती है. मनुष्य आज भी वही जंगली स्वभाव लिए इस आधुनिक दुनिया में विचरण कर रहा है और अपने विनाश की कहानी लिख रहा है. ईर्ष्या, राग, द्वेष, अहंकार और मूर्खता यही विश्व की वर्तमान और इतिहास की तमाम लड़ाइयों का कारण है. जब तक यह नकारात्मक भावनाएं हमें प्रभावित करती रहेंगी, तब तक युद्ध होते रहेंगे.
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.