मुख्य बातें
– सात जिले में पीपीपी मोड पर संचालित है डायलिसिस सेवा.
– सिविल सर्जन ने कहा, एस्केग संजीविनी पर करेंगे एफआईआर.
– हाई कोर्ट का है आदेश, इमरजेंसी सेवा को बंद नहीं कर सकते.
Saurav Shukla
Ranchi : झारखंड के 16 जिलों के सदर अस्पताल में पीपीपी मोड पर डायलिसिस की सेवा दी जाती है. किडनी मरीजों के लिए यह वरदान से कम नहीं है. लेकिन दुखद खबर यह है कि सातों जिले में डायलिसिस सेवा बंद है. किडनी के मरीज तीन दिनों से इधर-उधर भटक रहे हैं. इस योजना का संचालन प्रधानमंत्री नेशनल डायलिसिस प्रोग्राम के तहत होता है. डायलिसिस करने का जिम्मा एस्केग संजीवनी प्राइवेट लिमिटेड के पास है. कंपनी का पक्ष है कि बकाए पैसे का भुगतान नहीं होने के कारण सात जिले के सदर अस्पताल में डायलिसिस सेवा बंद करना पड़ा है.
कंपनी के मैनेजर संदीप चक्रवर्ती ने बताया
– सातों जिलों के सिविल सर्जन से बकाए पैसे की भुगतान की मांग कर चुके हैं.
– हमारे पास 31 अक्टूबर तक के कंज्यूमेबल्स आइटम उपलब्ध थे.
– उधारी बढ़ने के कारण सप्लायर ने कंज्यूमेबल्स देने से इंकार कर दिया.
– चार नवंबर तक बकाए का भुगतान कर दिया जाएगा. पर, नहीं हुआ.
– कंज्यूमेबल आइटम नहीं रहने के कारण छह नवंबर से डायलिसिस सेवा बंद है.
डायलिसिस इमरजेंसी सेवा है, बंद नहीं कर सकतेः सिविल सर्जन
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इस पूरे मामले में हमने रांची के सिविल सर्जन डॉ प्रभात कुमार से बात की. उन्होंने कहा, कंपनी डायलिसिस की सेवा बंद नहीं कर सकती. कंपनी समय पर बिल जमा नहीं करती है, जिस कारण भुगतान नहीं किया जा रहा है. अगस्त-सितंबर माह का बिल मिला है. पैसे का भुगतान कर दिया जाएगा. सीएस ने कहा डायलिसिस एक इमरजेंसी सेवा है. किसी भी परिस्थिति में सेवा को बंद नहीं करना है. हम एजेंसी के ऊपर एफआईआर दर्ज करवाएंगे.
इनका दर्द कौन समझेगा!
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– रांची के निजामनगर, छोटा तालाब निवासी मोहम्मद मुस्तफा अंसारी के बेटे इलताफ हुसैन ने बताया कि मंगलवार को मरीज को लेकर डायलिसिस के लिए सदर अस्पताल गए थे. डायलिसिस नहीं हुआ. बुधवार को भी आए हैं, डायलिसिस नहीं हो रहा है. गैरजिम्मेदाराना तरीके से इमरजेंसी सेवा को बंद कर देने से मरीज की जान पर बन आयी है. क्या करें समझ में नहीं आ रहा.
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– गुमला की घूरा नाग पिछले 8 महीने से सदर अस्पताल के डायलिसिस यूनिट में डायलिसिस करवाते हैं. उनकी पत्नी सरस्वती देवी ने बताया कि डायलिसिस नहीं होने की वजह से घूरा की उल्टियां बंद नहीं हो रही है. उन्हें भूख नहीं लग रही है. आर्थिक रूप से कमजोर हैं. अब समझ में नहीं आ रहा है कि आगे कहां जाएं.
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– बरियातू निवासी रामनरेश पासवान ने बताया कि सदर अस्पताल में बीते तीन दिनों से डायलिसिस केंद्र बंद है. इस कारण प्राइवेट सेंटर का रुख करना पड़ा. हमें प्रति डायलिसिस 2500 रुपए खर्च करने पड़ते हैं. इतनी हैसियत नहीं है. क्या करें समझ में नहीं आ रहा.
किस अस्पताल का कितना बकाया
लोहरदगा – 2220458
गिरिडीह – 3944434
चतरा – 1637934
रांची – 5867611
लातेहार – 2188890
सरायकेला – 657272
खूंटी – 126630
जबरन सेंटर को खुलवाकर करवाया गया डायलिसिस
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एस्केग संजीविनी के मैनेजर संदीप ने कहा कि हमारे रांची डायलिसिस सेंटर में जबरन तालाबंदी की गई. ताला लगाने वाले व्यक्ति खुद को एनएचएम का कर्मी बता रहा था. जब पहचान पत्र मांगा गया, तब उस व्यक्ति ने अपना आधिकारिक पहचान पत्र नहीं दिखाया. वहीं प्रशासन ने जबरन सेंटर को खुलवाकर एक व्यक्ति का डायलिसिस भी करवाया.
700 से 800 बार होती है रांची सेंटर में डायलिसिस
सदर अस्पताल के डायलिसिस सेंटर में 700 से 800 बार महीने में डायलिसिस होती है. औसतन एक मरीज को सप्ताह में दो से तीन बार डायलिसिस की जरूरत पड़ती है. बता दें कि इस केंद्र में 46 किडनी के पीड़ित मरीज अपना डायलिसिस करवाते हैं.