Lagatar Team : झारखंड प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रामेश्वर उरांव नहीं चाहते कि पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुखदेव भगत की कांग्रेस में वापसी हो. मीडिया रिपोर्टों के अनुसार मंगलवार को राज्यसभा सदस्य धीरज प्रसाद साहू के साथ नयी दिल्ली पहुंचे उरांव ने बाकायदा संगठन प्रभारी केसी वेणुगोपाल से मुलाकात कर भगत की वापसी का विरोध किया. उल्लेखनीय है कि गत विधानसभा चुनाव के समय कांग्रेस के तीन पूर्व प्रदेश अध्यक्षों, सरफराज अहमद, सुखदेव भगत और प्रदीप बलमुचू ने कांग्रेस छोड़कर दूसरे दलों से चुनाव लड़ा था. सरफराज अहमद झामुमो से, सुखदेव भगत भाजपा से और प्रदीप बलमुचू आजसू के टिकट पर चुनाव लड़े थे. सरफराज तो जीत गये, मगर बलमुचू और भगत चुनाव हार गये. चुनाव के बाद से ही दोनों पार्टी में वापसी के लिए प्रयास कर रहे हैं. उन्होंने बाकायदा भी आवेदन दिया है. उनके आवेदन को प्रदेश प्रभारी आरपीएन सिंह की मार्फत आलाकमान को भेजा जा चुका है.
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मर्जी के खिलाफ डॉ अजय की वापसी, बलमुचू पर आपत्ति नहीं
हालांकि डॉ उरांव के न चाहने के बावजूद पिछले लोकसभा चुनाव के बाद झारखंड कांग्रेस के कई नेताओं पर गंभीर आरोप लगाकर प्रदेश अध्यक्ष के पद और पार्टी से इस्तीफा देनेवाले डॉ अजय कुमार की घर वापसी हो चुकी है. प्रदीप बलमुचू की वापसी पर भी उरांव को आपत्ति नहीं है. क्योंकि वे सांसद धीरज साहू के करीबी बताये जाते हैं. उरांव की आपत्ति सुखदेव भगत की वापसी को लेकर है. सुखदेव भगत लोहरदगा के रहनेवाले हैं, जबकि डॉ रामेश्वर उरांव पलामू के निवासी हैं. राज्य प्रशासनिक सेवा से इस्तीफा देकर चुनाव लड़नेवाले भगत दो बार लोहरदगा सीट का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. पहली बार 2005 में और दूसरी बार 2015 के उपचुनाव में.
सुखदेव लोहरदगा सीट से प्रमुख दावेदार हो जायेंगे
स्थानीय होने के नाते सुखदेव भगत का लोहरदगा में अच्छा-खासा जनाधार है. जिला कांग्रेस संगठन में भी उनके काफी समर्थक हैं. हालांकि उनके भाजपा से चुनाव लडने के बाद कांग्रेस में उनके कई समर्थकों पर पार्टी विरोधी काम का आरोप लगाते हुए कार्रवाई भी की गयी थी. इसके बाद प्रदेश अध्यक्ष डॉ रामेश्वर उरांव पर आरोप भी लगे थे कि वे दुर्भावनावश ऐसा कर रहे हैं. कांग्रेस में यह बात भी सभी जानते हैं कि सुखदेव भगत ने भाजपा से चुनाव लड़ने का फैसला नहीं किया होता, तो डॉ उरांव को अपने लिए किसी और सीट की तलाश करनी पड़ती. सुखदेव के भाजपा में जाने के कारण डॉ रामेश्वर उरांव इस सीट से लड़े और जीत हासिल की. सुखदेव भगत की वापसी से आनेवाले समय में कांग्रेस के अंदर इस सीट से एक मजबूत दावेदार खड़ा हो जायेगा और कोई अपनी सीट के दूसरे दावेदार को क्यों लाना चाहेगा.
उरांव से समीकरण अच्छे इसलिए धीरज भी कर रहे विरोध
राज्यसभा सांसद धीरज साहू लोहरदगा के निवासी हैं. उनके परिवार का लोहरदगा और आसपास के इलाके में लंबे समय से गहरा प्रभाव और इज्जत है. उनके बड़े भाई शिवप्रसाद साहू 1980 और 1984 के लोकसभा चुनाव में रांची से कांग्रेस के टिकट पर सांसद चुने जा चुके हैं. क्षेत्र हो या पार्टी उनके समर्थकों की संख्या भरपूर है. फिलहाल डॉ रामेश्वर उरांव और धीरज साहू के बीच अच्छा समीकरण है. इस समीकरण के कारण साहू भी सुखदेव भगत की वापसी का विरोध कर रहे हैं.
लोहरदगा की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने की चाह
कांग्रेस के सूत्रों के अनुसार, डॉ रामेश्वर उरांव की संभवतः यह अंतिम चुनावी पारी है. लेकिन वह लोहरदगा की राजनीतिक जमीन को अपनी संतान को विरासत में देना चाहते हैं. उनके पुत्र रोहित प्रियदर्शी ने गत विधानसभा चुनाव में पिता को जीत दिलाने के लिए काफी मेहनत की थी. चुनाव के बाद से ही वह लगातार क्षेत्र में सक्रिय हैं. वह अपने सोशल मीडिया हैंडल पर इससे संबंधित पोस्ट भी डालते रहते हैं. डॉ उरांव की पुत्री निशा उरांव भारतीय राजस्व सेवा की अधिकारी हैं. पिता के मंत्री बनने के बाद झारखंड सरकार ने उनकी सेवा ली है. वर्तमान में वह कृषि निदेशक के पद पर पदस्थापित हैं. कांग्रेस सूत्रों के अनुसार वह भी राजनीति में दिलचस्पी रखती हैं. ऐसे में सुखदेव भगत की वापसी से डॉ उरांव की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने की योजना पर ग्रहण लग सकता है.
आलाकमान की मर्जी पर टिका भगत का भविष्य
वर्ष 2019 में लोकसभा चुनाव और झारखंड विधानसभा चुनाव के बीच कांग्रेस के 4 पूर्व प्रदेश अध्यक्षों ने पार्टी को टाटा-बायबाय कह दिया था. इनमें डॉ अजय कुमार आम आदमी पार्टी में गये और कुछ दिन पहले कांग्रेस में वापसी कर ली. अविभाजित बिहार में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहे सरफराज अहमद ने झामुमो का दामन थामा और चुनाव जीत कर विधायक बन गये. सुखदेव भगत और प्रदीप बलमुचू चुनाव हार गये. बलमुचू की वापसी तो तय है, लेकिन भगत का भविष्य डॉ रामेश्वर उरांव और धीरज साहू के विरोध और आलाकमान की मर्जी के बीच फंसा हुआ है.
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