• 48.20 लाख करोड़ के बजट में ब्याज चुकाने पर खर्च 11.63 लाख करोड़
Surjit Singh
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मंगलवार को वित्त वर्ष 2024-25 का बजट पेश किया. टीवी चैनलों, अखबारों व अन्य माध्यमों से आपने जान लिया बजट से किसको कितना फायदा, किसको कितना नुकसान, क्या सस्ता हुआ और क्या महंगा हुआ है? पर, बड़ा सच बजट के बड़े आंकड़ों में छिपा है, जिसे जानना जरूरी है. वह यह है कि सरकार कर्ज के बोझ तले दबी है और आम लोगों के लिए किये जाने वाले कामों पर खर्च करने के लिए पैसे का टोटा है. या यूं कहें सरकार के खजाने में हमारे-आपके लिए बहुत कुछ करने के लिए पैसे नहीं हैं. पुल, पुलिया, सड़क, अस्पताल, स्कूल जैसी संरचनाओं के निर्माण (पूंजीगत व्यय) पर खर्च के लिए बहुत कुछ नहीं है.
बजट ने हमें बताया है कि इस साल सरकार 48.20 लाख करोड़ रुपया खर्च करेगी. आपको जान कर आश्चर्य होगा कि इसका एक बहुत बड़ा हिस्सा सिर्फ कर्ज का ब्याज चुकाने पर खर्च होगा. कितना? 11.63 लाख करोड़. इतनी बड़ी राशि सिर्फ ब्याज चुकाने पर खर्च होंगे. इतनी बड़ी रकम देने से कर्ज की राशि में कोई कमी नहीं आयेगी. मूलधन जस के तस रहेंगे, तो आखिर कुल कर्ज है कितना? बजट में ही सरकार ने बताया है कि इस वित्त वर्ष में सरकार 16 लाख करोड़ रुपये कर्ज लेगी और इस साल की समाप्ति पर कर्ज की कुल राशि 181 लाख करोड़ हो जायेगी. मतलब, कुल जीडीपी का करीब 90 प्रतिशत कर्ज. देश का बजट से करीब चार गुणा कर्ज. अब अगर हम पूंजिगत व्यय की बात करें, तो वह ब्याज चुकाने पर होने वाले खर्च से कम हैं. सरकार पूंजिगत व्यय पर सिर्फ 11.11 लाख करोड़ रुपये खर्च करेगी.
बजट को समझने के लिए यह भी जानना जरुरी है कि यह जो 48.20 लाख करोड़ रुपये खर्च होंगे, वह आएंगे कहां से? बजट में इसे भी डिटेल में बताया गया है. कुल खर्च के आधे से अधिक 25.83 लाख करोड़ रुपये टैक्स से आएंगे. इसमें जीएसटी, काॅरपोरेट टैक्स, एक्साइज ड्यूटी, कस्टम ड्यूटी आदि शामिल हैं. इसमें सबसे बड़ा हिस्सा जीएसटी से मिलने वाले टैक्स का है. यानी सरकार को सबसे अधिक कमाई आम लोगों की जेब ढीली करके होगी. क्योंकि बजट में ही बताया गया है कि विदेशी कंपनियों के निवेश पर टैक्स पांच प्रतिशत कम (40 प्रतिशत से 35 प्रतिशत) कर दिया गया है. सोना और इलेक्ट्रोनिक पार्ट-पूर्जों पर इंपोर्ट ड्यूटी भी कम किया गया है. इस साल सरकार 16 लाख रुपये का कर्ज लेगी और 5.45 लाख करोड़ रुपया विनिवेश से आयेगा. विनिवेश, यानी 5.45 लाख करोड़ (कुल खर्च का करीब 11 प्रतिशत) रुपये सरकारी कंपनियों को बेच कर, सरकारी कंपनियों के शेयर बेच कर, सड़क, एयरपोर्ट, जमीन आदि को बेचकर लाया जायेगा.
आपने टीवी पर बहस सुना होगा, अखबारों में लेख और खबरें पढ़ी होंगी कि पिछले 10 सालों में देश पर कर्ज का बोझ तेजी से बढ़ा है. बजट ने हमें बता दिया है कि यह बोझ कितना बढ़ा है. हम कर्ज के आंकड़ों की बात करें, तो वर्ष 2014 में सरकार पर कुल कर्ज 55 लाख करोड़ रुपया का था और 2019 में 90 लाख करोड़ का था. इससे पहले वर्ष 2004 में 17 लाख करोड़ का कर्ज था और वर्ष 2009 में 31 लाख करोड़ का. हमारी स्थिति अब कर्ज लेकर घी पीने वाली भी नहीं रही है. कर्ज लेकर सिर्फ ब्याज चुकाने वाली स्थिति में हैं. कर्ज भी ले रहें हैं, टैक्स भी ज्यादा वसूल रहे हैं और हमारी जिंदगी संवारने के लिए खर्च भी कम हो रहा है.
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