Basant Munda
Ranchi : आदिवासी समाज में अखड़ा का बहुत महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है, लेकिन आधुनिकता के दौर में युवा वर्ग अपनी परंपरा को भूलता जा रहा और अखड़ा को कम महत्व मिलने लगा है. इसी का परिणाम है कि परंपरागत नृत्य स्थल अखरा सिमटता जा रहा है. आदिवासी समाज में नृत्य करने के लिए उपयुक्त स्थान अखरा कहा जाता है, लेकिन इसका महत्व केवल नाच-गान तक ही सीमित नहीं होता, बल्कि सभा, पंचायती, किसी विवाद के निपटारे के लिए अखरा का उपयोग आदि काल से ही होता रहा है.
अखरा की भूमि पूरे गांव का अधिकार
आदि काल से ही ऐसी व्यवस्था बनी हुई है कि अखरा की भूमि पूरे गांव का अधिकार माना जाता है. आदिवासी परंपरा के अनुसार इस भूमि को किसी दूसरे समुदाय, जाति-धर्म अथवा सरकारी कार्यों के लिए हस्तांतरण नहीं किया जा सकता. प्रत्येक गांव का एक अपना अखरा होता है, जिसमें पूरे गांव के लोग नृत्य करते रहे हैं. लेकिन आधुनिकता की चकाचौंध दुनिया में लोग अपनी सभ्यता व संस्कृति को भूलते जा रहे हैं और अखरा उपेक्षा का शिकार होते जा रहे हैं. इसका ताजा उदाहरण रांची के लोवाडीह मौजा का अखरा है. लोवाडीह मौजा में दो पाहन हैं. एक खदी कुजूर, दूसरा महादेव कुजूर हैं.
चार डिसमिल में अखरा बनकर सिमट गया है
पाहन खदी कुजूर ने बताया कि यहां उरांव समाज के लगभग 300 परिवार निवास करते हैं, लेकिन निर्धारित नियम के अनुसार गांव में तीन सालों पर होनेवाला पाहन का चुनाव नहीं हो पा रहा है. इसका कारण यह है कि अधिकांश लोगों ने धर्म परिवर्तन कर लिया है. बड़े पैमाने पर धर्म परिर्वतन के बाद गांव में सरना धर्म के सिर्फ 90 परिवार हैं. वे ही मिलजुलकर करम पूजा कर लेते हैं. धार्मिक जमीन लगभग खत्म होने के कगार पर पहुंच गई है. भू-माफिया की मिलीभगत से धार्मिक जमीन भी बेच दी जा रही है. जैसे डाली कतारी , पहनई लगभग यहां खत्म होने के कगार पर हैं. कभी कभार लोग गांव के अखरा में बैठक करते हैं. चार डिसमिल में अखरा बनकर सिमट गया है. बगल में अखरा की जमीन में धुमकुड़िया बना दिया गया है.
लोवाडीह मौजा में दो अखरा हैं
अखरा के अंदर आने और जाने के लिए रास्ता निकाला गया है. गांव में किसी व्यक्ति की मौत होती है, तो उसके शव को तीन बार अखरा में घुमाकर श्मशान घाट ले जाया जाता है. समाज की धार्मिक कोटवारी जमीन, महतोई जमीन, पईनभोरा जमीन लगभग बेच दी गई है. पाहन महादेव कुजूर ने बताया कि लोवाडीह मौजा में दो अखरा हैं. एक में करम पूजा होती है और दूसरा दूसरे लोगों के कब्जे में है. अखरा में केवल करम पूजा होती है. कभी- कभी सरहुल निकट पहुंचने पर अखरा में बैठक की जाती है.
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