- पलामू जोन में एक साल पहले ग्रामीणों के बीच बांटी गई थी पॉकेट डायरी
- पॉकेट डायरी का हुआ असर, धीरे-धीरे उखड़ने लगे नक्सलियों के पांव, अब समाप्ति की ओर
Sanjeet Yadav
Medininagar : कहावत है न कि एक मकान में आग लगाने के लिए एक माचिस की तिल्ली ही काफी है. उक्त कहावत पलामू जोन में नक्सलियों की समाप्ति पर फिट बैठ रहा है. जी हां एक पॉकेट डायरी ने पूरे नक्सलियों के गढ़ को समाप्त कर दिया. पलामू जोन में आज से एक साल पहले लोगों के बीच पुलिस ने पॉकेट डायरी का वितरण किया था. इसकी शुरुआत लातेहार जिले से की गई थी. यह पॉकेट डायरी जंगली क्षेत्र में रहनेवाले हरेक घर के सदस्य के पास पहुंचा दिया गया. उस वक्त नक्सलियों को क्या मालूम था कि एक पॉकेट डायरी उनलोगों के लिए काल बन जाएगी.
बता दें कि कुछ साल पहले तक पलामू, लातेहार और गढ़वा के कुछ इलाके नक्सलियों के गढ़ माने जाते थे. वहां नक्सलियों का ही सिक्का चलता था. पलामू प्रमंडल में हमेशा नक्सलियों के टॉप कमांडर रहते थे. उनके लिए यह सुरक्षित ठिकाना माना जाता था. पुलिस बीच-बीच में कई अभियान चलायी, मगर सफलता हाथ तो नहीं लगती थी, उल्टे सुरक्षाबलों को ही नुकसान पहुंचता था. लेकिन धीरे-धीरे समय बदलता गया और पुलिस ने अपनी रणनीति भी बदली. पुलिस ग्रामीणों के दिलों में अपनी पैठ बनानी शुरू की. ग्रामीणों को भरोसा दिलाना शुरू किया कि पुलिस हमेशा आपकी सहायता के लिए तैयार है, बस आप पुलिस का सहयोग करें. पुलिस की यह रणनीति पलामू प्रमंडल में काम भी आई. जिसका परिणाम हुआ कि पलामू प्रमंडल से नक्सली आज समाप्ति की कगार पर पहुंच गये हैं.
क्या है पॉकेट डायरी, शुभम संदेश की टीम ने की पड़ताल
जब पॉकेट डायरी शुभम संदेश और लगातार डॉट इन की टीम के हाथ लगी तो टीम ने उसकी पड़ताल की. जिसमें कई बातें सामने आयी. नक्सल प्रभावित गांव के लोगों ने बताया कि पुलिस ने पॉकेट डायरी अभियान को गुप्त रखा था. पुलिस ने अपने खबरीलाल के माध्यम से पॉकेट डायरी को सुदूर क्षेत्र में निवास करने वाले लोगों के घरों तक पहुंचायी. लोगों को समझाया गया कि यह पॉकेट डायरी देखने में तो आम डायरी की तरह ही है, मगर इसकी बहुत सारी खासियत है. इसे हमेशा अपने पास रखें. मुसीबत के समय यह आपके काम आयेगी.
ग्रामीणों को पसंद आयी पुलिस की अपील
पुलिस ने ग्रामीणों से अपील करते हुये कहा कि आप हमेशा यह डायरी पॉकेट में ही रखें. आपको कभी भी कोई दिक्कत हो तो तुरंत सीनियर अधिकारी से भी आप बात कर सकते हैं. और अपनी समस्या सीनियर अधिकारी को बता सकते हैं. इस डायरी में आईजी, एसपी से लेकर जिले के सभी एसडीपीओ और थाना प्रभारी का नंबर है. पुलिस के खबरीलाल ने गांव-गांव जाकर इस डायरी की विशेषता लोगों को बतायी.
बताया कि उग्रवादी गांवों से जबरदस्ती बच्चों/नवयुवकों/लड़कियों को दस्ता में शामिल करने के लिए ले जाते हैं. ये अपने फायदे के लिए आपके बच्चों का इस्तेमाल करते हैं. उनके कई तरह के अपराध कराते हैं. किसी भी परिस्थिति में बच्चों/नवयुवकों/लड़कियों को उग्रवादी दस्ते में शामिल नहीं होने दें. अगर उग्रवादी जबरदस्ती किसी को ले जाने का प्रयास करते हैं तो तुरंत इसकी सूचना पुलिस को दें, ताकि पुलिस आपकी सहायता कर सके. पुलिस की यह अपील लोगों को पसंद आयी. धीरे-धीरे सुदूर गांव में भी पुलिस की पैठ बनती गई और हर अभियान में अब पुलिस को सफलता मिलती गई. नक्सलियों के गढ़ में भी पुलिस ने उन्हें मात देना शुरू कर दिया और अब नक्सली समाप्ति की ओर हैं.
पलामू प्रमंडल को नक्सल मुक्त करने में पलामू आईजी का रहा अहम रोल
पलामू जोन से नक्सलियों के पांव उखाड़ने में पलामू आईजी और लातेहार के पूर्व एसपी प्रशांत कुमार का अहम रोल रहा. सूत्र बताते हैं कि आज से कुछ साल पहले पलामू डीआईजी के रूप में राजकुमार लकड़ा ने पदभार ग्रहण किया था. पदभार ग्रहण करने के बाद उन्होंने नक्सलियों की समाप्ति को लेकर लातेहार के पूर्व एसपी प्रशांत कुमार के साथ मिलकर एक रणनीति बनाई. जिसमें पॉकेट डायरी का कॉन्सेप्ट लाया गया. राजकुमार लकड़ा ने पॉकेट डायरी पर जोर दिया. आज वही पॉकेट डायरी नक्सलियों के लिए काल बन गई.
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