Sonia jashmin
Ranchi : बेटी पढ़ाओं, बेटी बचाव अभियान की शुरुआत 22 जनवरी 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हरियाणा के पानीपत में की थी. योजना का मुख्य उद्देश्य लड़कियों को शिक्षित करना है. पीएम ने योजना की शुरूआत करते हुए कहा था कि हमारे देश की बेटी अगर अशिक्षित रह जाती है तो देश का विकास करना काफी मुश्किल होगा . इसलिए उन्होने बेटी पढ़ाओं और बेटी बचावों योजना की शुरूआत की है.
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एक बेटी दो परिवारों को शिक्षित करती है
देश के सभी राज्य सरकार अपने क्षेत्र के बेटियों के विकास पर विशेष ध्यान देते हैं. पूरे देश की ये कोशिश है कि देश में कोई भी बेटी अशिक्षित न रह जाये. ऐसा माना जाता है कि अगर एक बेटी शिक्षित होती है तो वो दो परिवारों को शिक्षित करती है.मगर कोरोना की वजह से लगभग 10 महिनों से स्कूल और कॉलेज बंद पड़े हैं. इसका सबसे ज्यादा असर बेटियों पर देखने को मिलता है, जहां सभी स्कूल ऑनलाइन क्लास चला रहे है. बेटियों तक शिक्षा नहीं पहुंच पा रही है.इसमें योजना से जुडी लड़कियों का काफी नुकसान हो रहा है. क्यों कि उनके पास न तो मोबाइल है और न ही इंटरनेट की कोई व्यवस्था है. ऐसे में लड़कियों का एक पूरा साल बर्बाद होता दिख रहा है. इस सत्र की पढ़ायी नहीं हो पाने से उन्हे आगे की पढ़ायी में दिक्कत होगी. सरकार को इस विषय में सोचने की जरूरत है.
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लड़कियों की पढ़ायी में विशेष ध्यान देने की जरूरत- अरती कुजुर
कोविड़-19 की वजह से लड़कियों की पढ़ायी पूरी तरह से रूक गयी. जिसे लड़कियों को यह डर भी सता रहा है कि उनकी शादी जल्द कर दी जायेगी. जिसकी वजह से उनका पूरा जीवन खराब हो जायेगा. राज्य में अभी भी कम आयु में लड़कियों की शादी कर दी जाती है ऐसा राज्य के उन हिस्सों में देखने को मिलता है जो शिक्षित दर से काफी पिछडे होते है. लड़कियों कि पढ़ायी में आ रही बाधा के लिए राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की पूर्व अध्यक्ष अरती कुजुर ने चिंता जतायी है. उन्होने कहा कि कोरोना के बाद लड़कियों की पढ़ायी पर अलग से ध्यान देने की जरूरत है, नही तो इसके शीघ्र ही निगेटिव परिणाम देखने को मिलेंगे.
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लॉकडाइन के बाद ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ के आंकड़े
एक सर्वे के मुताबिक कोरोना का सबसे ज्यादा असर स्कूली लड़कियों की पढ़ाई पर पड़ा है. सेकेंडरी स्कूल में लगभग 20 मिलियन लड़कियां पढ़ रही है जो अब कभी स्कूल नहीं लौट सकती है. Right To Education Forum ने सेंटर फॉर बजट एंड पॉलिसी स्टडीज और Champions for Girls Education के साथ मिलकर देश के 5 राज्यों में ये स्टडी की है . जिसके नतीजे काफी खराब हैं. ‘
मैपिंग द इंपैक्ट ऑफ कोविड-19’ नाम से हुई ये स्टडी 26 नवंबर को रिलीज की गयी है. आर्थिक तौर पर कमज़ोर तबके के परिवारों से बातचीत के दौरान लगभग 70% लोगों ने माना कि उनके पास खाने को भी पर्याप्त संसाधन नहीं है. ऐसे हालातों में पढ़ाई और उसमें भी लड़कियों की पढ़ाई सबसे कैसे हो पायेगी.
शोधकर्ताओं ने दिखा कि किशोरावस्था की लगभग 37% लड़कियां इस बात पर निश्चित नहीं कि वे कभी स्कूल भी जा पायेगी. लड़कों की तुलना में दोगुनी लड़कियां कुल मिलाकर 4 साल से भी कम समय तक स्कूल जा पाती हैं. Right To Education के तहत 6 से 14 साल तक की आयु के बच्चों के लिए 1 से 8 कक्षा तक की निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था है. स्कूल के इन 8 सालों में से लड़कियां 4 साल भी पूरे नहीं कर पाती हैं.
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