दो पक्षों के बीच हुये संघर्ष में एक पक्ष के सात और दूसरे पक्ष के एक लोग मारे गए थे
35 साल बाद मिला 4 लोगों को मिला न्याय
Ashish Tagore
Latehar : लातेहार के चर्चित जालिम नरसंहार कांड में 4 नाबालिगों को न्याय तो मिला, मगर इतनी देर हो गई कि उनकी पूरी जवानी बीत गई. 14 और 16 साल की उम्र में हत्याकांड के आरोपी बने चारों नाबालिग 35 साल बाद बाइज्जत बरी हुए. सोमवार को प्रिंसिपल मजिस्ट्रेट, जेजे बोर्ड ने साक्ष्य के अभाव में सभी को बरी कर दिया. निर्दोष साबित होने के बाद चारों ने खुशी जाहिर करते हुए कहा कि उन्हें न्यायालय पर पूरा भरोसा था. 35 वर्षों के बाद उन्हें न्याय मिला है. वे इस मामले में नाहक फंसा दिए गए थे. अब शांति से अपने घर-परिवार के साथ रहेंगे. बाइज्जत बरी होने वालों में श्रीकांत सिंह, विजेंद्र सिंह, चंद्रदेव सिंह और अशोक सिंह शामिल हैं.
क्या है पूरा मामला
लातेहार के सदर थाना क्षेत्र के जालिम ग्राम में 23 मार्च 1988 को दो पक्षों के बीच झगड़ा हुआ था. देखते ही देखते इस झगड़े ने नरसंहार का रूप अख्तियार कर लिया. लातेहार थाने में (कांड संख्या 57/1988) कैलाश साव, पिता रामचंद्र साव ने अपने बयान में बताया था कि जालिम ग्राम निवासी नन्हकू गिरी का पुत्र उदय गिरी व सत्येंद्र साव के बीच झगड़ा हुआ था. इसके बाद सतेंद्र साव व उसके रिश्तेदारों ने पलियार टोला में आग लगा दी. पलियार टोले के लोगों ने सकेंद्र साव को पकड़ लिया. तब सकेंद्र साव के पक्ष में अर्जुन साव व विजुल साव दोनों भाइयों ने अपनी लाइसेंसी बंदूक दिखा कर उन्हें डराने धमकाने लगे. इसी बीच सूर्यदेव सिंह ने अर्जुन साव की बंदूक पकड़ ली. बंदूक लूट कर लोगों को मारना-पीटना शुरू किया. देखते ही देखते पलियार टोला रणभूमि में तब्दील हो गई. पलियार पक्ष से सत्यनारायण सिंह की हत्या हो गई. इसके विरोध में पलियार टोला के लोगों ने अर्जुन साव व विजुल साव (दोनों भाई ), नागेश्वर साव व भोला साव (दोनों भाई) संजय साव, शिव प्रसाद साव, मोहर व उसके बेटे रामविलास की पारंपरिक हथियारों से वार कर हत्या कर दी. दोनों ओर से लातेहार थाना में मामला दर्ज किया गया. सेशन कोर्ट में सत्रवाद 171/89 एवं 172 /89 के तहत मामले की सुनवाई की. सत्रवाद 171/ 1989 में कुल 40 लोगों को हत्या का दोषी पाया गया. फास्ट ट्रैक कोर्ट के तत्कालीन अपर सत्र न्यायाधीश राम बाबू गुप्ता की अदालत ने उन्हें उम्र कैद की सजा सुनाई.
इन्हें सुनाई गयी थी सजा
चंद्रिका सिंह, जगनारायण सिंह, जयराम सिंह, अनंत सिंह, विजेंद्र सिंह, मुंद्रिका सिंह, गोरा सिंह, सूर्यदेव सिंह, माधव सिंह, कुंजलाल सिंह, दशरथ सिंह, ननकू सिंह, सुरेंद्र सिंह, अशोक सिंह, शिव शंकर महतो, नंद बिहारी गिरि, जय शरण सिंह, राज मोहन सिंह, चंद्रदेव सिंह, विनेश्वर सिंह, गरजू सिंह, रामप्रसाद सिंह, प्रताप सिंह, प्रेम सिंह, उमाकांत सिंह, श्रीनाथ सिंह, नगर दयाल सिंह, जग लाल सिंह, गंगाधर सिंह, राजेंद्र सिंह, रामवृक्ष सिंह, शिवकुमार सिंह, शिशुपाल सिंह, कुलेश्वर सिंह, रामसुंदर सिंह, श्रीकांत सिंह, भूखनाथ सिंह, शिवमंगल सिंह, अंबिका सिंह व भुनेश्वर सिंह को सजा सुनाई गयी.
चार आरोपियों ने नाबालिग बताते हुए याचिका दायर की
सजा के एलान के वक्त श्रीकांत सिंह, चंद्रदेव सिंह, विजेंद्र कुमार सिंह एवं अशोक सिंह ने अपने को नाबालिग बताते हुए याचिका दाखिल कर दी. सजा के बिंदु पर एलान के पूर्व अदालत ने नाबालिगों की ओर से दाखिल याचिका को किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष हस्तांतरित कर दिया. शेष 36 आरोपियों को मंडल कारा भेज दिया गया. इसके बाद सत्र वाद 172/ 89 के आरोपियों को भी जेल भेज दिया गया. दोनों पक्षों को जेल में जाने के बाद झारखंड उच्च न्यायालय में एक संयुक्त सुलहनामा पेश किया गया. 16 सितंबर 2002 को सुलहनामा के आधार पर उच्च न्यायालय के आदेश पर दोनों पक्षों के आरोपियों को जेल से रिहा किया गया.
चारों आरोपी कोर्ट में नहीं हुए हाजिर
जुवेनाइल कोर्ट में लगातार अनुपस्थित रहने के बाद चारों किशोरों को बार-बार समन किया गया. बावजूद वे लोग उपस्थित नहीं हुए. तब जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के द्वारा 17 जनवरी 2018 को इनके विरुद्ध गैर जमानतीय अधिपत्र जारी किया गया था. इसके बाद पुलिस की दबिश के कारण इन चारों आरोपियों ने 10 जून 2022 को जेजे बोर्ड के प्रधान दंडाधिकारी मिथिलेश कुमार की अदालत में सरेंडर कर दिया. यहां इनकी जमानत की याचिका खारिज कर दी गई. इसके बाद इन चारों आरोपियों ने अपीलीय कोर्ट अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश प्रथम संजीव कुमार दास की अदालत में क्रिमिनल अपील 29 /2022 दाखिल कराया. एक महीना 18 दिनों की जेल के बाद उनकी जमानत स्वीकार की गई. इसके बाद जेजे बोर्ड में ट्रायल शुरू हुआ. स्पीडी ट्रायल करके इस केस में सोमवार को फैसला दे दिया गया.
क्या कहते हैं अधिवक्ता
इस मामले में किशोरों की पैरवी कर रहे अधिवक्ता सुनील कुमार ने कहा कि फैसला आने में इतना विलंब न्यायालय की वजह से नहीं बल्कि आरोपियों के न्यायालय में उपस्थित नहीं होने की वजह से हुई है. उन्होंने आगे बताया कि आरोपी किशोर मामले की सुनवाई के दौरान अदालत द्वारा दिए गए सशरीर उपिस्थत होने के आदेश के बावजूद कई बार हाजिर नहीं हुए, जिसकी वजह से मामले की सुनवाई में इतना लंबा समय लग गया.