Adityapur (Sanjeev Mehta) : झारखंड निर्माण के बाद बांग्ला भाषा का अस्तित्व खतरे में है. बहुभाषी कवि सम्मेलन में हिस्सा लेने आदित्यपुर आए एक बांग्ला साहित्यकार सुनील कुमार डे ने अपनी भाषाई पीड़ा बताई. उन्होंने बताया कि हलुदपुकुर रेल स्टेशन से बंग्ला भाषा में लिखा स्टेशन का नाम गायब हो गया है. उन्होंने कहा कि झारखंड में कौन सा अपराध बंगला से हुआ है कि उसका वध किया जा रहा है. वे बोले बड़े ही दुःख के साथ सूचित करना पड़ रहा है कि जिस झारखंड राज्य में 42% लोगों की मातृ भाषा बंगला है उस बंगला का आज वध हो रहा है. प्राइमरी से लेकर उच्च विद्यालय तक हर क्लास में, हर विद्यालय में बंगला की पढ़ाई होती थी. अधिकतर बंगला मीडियम स्कूल हुआ करता था. बिहार से झारखंड बनने के पश्चात बंगला भाषा झारखंड में राजनीति का शिकार हो गया है. धीरे धीरे बंगला भाषा की पढ़ाई बंद हो गई.
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बंगला मीडियम के स्कूल हिंदी मीडियम में परिवर्तित हो गए
अंत में सारे बंगला मीडियम के स्कूल हिंदी मीडियम में परिवर्तित हो गया. उदाहरण के तौर पर मेरे आंखों के सामने नुआग्राम प्राइमरी स्कूल, जुड़ी मध्य विद्यालय, हलुदपुकुर मध्य विद्यालय, गिरी भारती उच्च विद्यालय हलुदपुकुर आदि. सबसे आश्चर्य की घटना तब देखने को मिली जब हलुदपुकुर रेल स्टेशन से बंग्ला को एक साल पहले गायब कर दी गई. स्वाधीनता के पहले हलुदपुकुर रेल स्टेशन की स्थापना हुई थी. तब से स्टेशन आफिस में बंगला में हलुदपुकुर लिखा हुआ था. एक साल पहले स्टेशन का सुंदरीकरण की गई. उसी समय बंगला का वध कर दिया गया.
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1932 का खतियान बंग्ला भाषा में ही है
बंगला को हटाकर हिंदी ,अंग्रेजी और ओड़िया में हलुदपुकुर लिखा गया. हलुदपुकुर बंगला शब्द है और यह पूर्वी सिंहभूम पूरा बंग्ला भाषी क्षेत्र है, इसमें ओड़िया में लिखने का कोई तुक नही है, अगर लिखा भी तो बंग्ला को हटाने का क्या ओचित्य है. क्या यह 42%, बंगला भाषियों का अपमान और उपेक्षा नहीं कि गई. आजकल हिंदी अथवा अंग्रेजी भाषा सब कोई समझते हैं, अतः हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषा में लिखने का क्या दरकार था. अगर लिखा भी गया तो बंग्ला में लिख देता तो क्या महाभारत अशुद्ध हो जाता. रेल विभाग और पोटका के माननीय विधायक, सांसद और अन्य जनप्रतिनिधियों से निवेदन है की जन भावनाओं को सम्मान देते हुए अविलंब हलुदपुकुर रेल स्टेशन में बंग्ला भाषा में स्टेशन का नाम लिखने की कृपा की जाय. आज जब झारखंड में 1932 की खतियान की बात हो रही है तब सभी को जानकारी होनी चाहिए कि 1932 का खतियान बंग्ला भाषा में ही है.
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