झामुमो के वरिष्ठ नेता सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा
- जंगल पर आश्रित लोगों को कॉरपोरेट पर निर्भर बनाने की तैयारी में है भाजपा
- नया कानून में ग्राम सभा की अनुमति सहित राज्य सरकार के अधिकार को बनाया केवल औपचारिकता
- नए कानून में झामुमो ने गिनायी सात विसंगतियां
- मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी पीएम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखा है पत्र
Ranchi : झारखंड में सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) ने केंद्र की मोदी सरकार पर जनजातीय समुदाय के अधिकारों का अतिक्रमण करने का आरोप लगाया है. इसके लिए पार्टी ने हाल के दिनों में लाए वन संरक्षण नियम 2022 (फॉरेस्ट कंजर्वेशन रूल – 2022) को आधार बनाया है. पार्टी के वरिष्ठ नेता सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा है कि यह रूल अगर संसद से पारित होकर कानून बनता है, तो झारखंड के आदिवासी- मूलवासी जो जंगल पर पूरी तरह से आश्रित हैं, सहित देश के 20 करोड़ लोग सीधे-सीधे इससे प्रभावित होंगे. झामुमो मांग करता है कि इन 20 करोड़ लोगों को केंद्र सरकार एक साथ इच्छामुत्यु की अनुमति भी दे दे. सुप्रियो ने कहा कि पहले के वन अधिकार कानून 2006 में जंगल से जुड़ी हर बातों पर ग्राम सभा की अनुमति लेनी पड़ती थी. लेकिन नए कानून में ग्राम सभा की अनुमति सहित राज्यों पर जंगल के अधिकार को केवल औपचारिकता बना दिया गया है. झामुमो नेता ने नए वन संरक्षण कानून के आने के बाद सात तरह के प्रभाव पर ध्यान केंद्रित किया है.
हेमंत सोरेन ने भी पीएम को लिखा है पत्र
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर वन संरक्षण नियम 2022 के बारे में अपनी आपत्तियां जतायी थी. उन्होंने इसमें बदलाव लाने का आग्रह किया था. हेमंत सोरेन ने देश के वनों में रहने वाले आदिवासी समुदायों के अधिकारों की रक्षा करने संबंधी व्यवस्थाओं की बातें की थी.
एयरपोर्ट, ट्रैन, बैंक बेचने वाले लोग प्रकृति को भी बेचने की तैयारी में
सुप्रियो ने कहा कि झारखंड के लगभग 32 जनजातीय सहित 18 मूलवासी जंगल पर आश्रित है. केंद्र की भाजपा सरकार जंगल पर आश्रित इन लोगों को कॉरपोरेट घरानों पर निर्भर बनाने का काम कर रही है. उन्होंने कहा कि जंगल प्राकृतिक है. इसे बनाया नहीं जा सकता. साफ है कि एयरपोर्ट, ट्रैन, बैंक बेचने वाले लोगों ने प्रकृति को भी बेचने की तैयारी कर ली है.
झामुमो ने गिनायी सात विसंगतियां
- इकोलॉजिकल इंपैक्ट – नए वन संरक्षण कानून में इसका कोई जिक्र नहीं है.
- जूलोलॉजिकल इंपैक्ट – इसका भी कोई जिक्र नहीं है. जंगल के अंदर रहने वाले जीव-जंतु पर कानून का क्या प्रभाव पड़ेगा, इसका कोई जिक्र नही है. सिमटते जंगल से झारखंड हमेशा से हाथी, लोमड़ी के आंतक से प्रभावित रहा है.
- सामाजिक इंपैक्ट – नए कानून में इसकी कोई समीक्षा नहीं की गयी है.
- धार्मिक इंपैक्ट – झारखंड के जनजातीय समाज के लोगों का जंगल के पेड़-पौधों से धार्मिक जुड़ाव भी रहा है. नए कानून में पेड़ कटाने के बाद धार्मिक स्तर पर क्या प्रभाव पड़ेगा, इसका का कोई जिक्र नहीं है.
- आर्थिक इंपैक्ट – झारखंड के लोग जंगल पर आर्थिक रूप से पूरी तरह से आश्रित है. साल, महुआ सहित जलावन की लकड़ी जनजातीय समाज के रोजगार का साधन है. नए वन संरक्षित कानून में इसका कोई जिक्र नहीं है.
- टोपोलॉजिकल इंपैक्ट – नए वन अधिकार कानून से धरती पर क्या प्रभाव पड़ेगा, इसका कोई जिक्र नहीं है.
- डेमोग्राफी इंपैक्ट – नए वन संरक्षित कानून का जनसांख्यिक पर क्या प्रभाव पड़ेगा, इसका भी कोई जिक्र नहीं है.
अन्य राज्यों के साथ व्यापक विमर्श करेगा झामुमो
सुप्रियो ने कहा है कि यह मुद्दा केवल झारखंड का नहीं बल्कि जनजातीय और जंगल बहुल वाले राज्यों (छत्तीसगढ, पश्चिम बंगाल, ओड़िशा, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र) से जुड़ा है. झामुमो आगामी दिनों में इस मुद्दे पर एक व्यापक विचार-विमर्श करने का काम करेगा.
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