Ranchi : रिम्स में पांच वर्षों के बाद शनिवार को पुराने दोस्तों की मुलाकात हुई. रिम्स ऑडिटोरियम में आयोजित 1971-72 बैच का गोल्डेन जुबली सह पुनर्मिलन समारोह में रिम्स के पूर्ववर्ती छात्र-छात्राओं ने अपनी पुरानी यादें ताजा की. अपने अनुभव एक-दूसरे से साझा किया. खूब ठहाके भी लगे. पुरानी बातों को याद करते हुए कहा- रिम्स में एक साल ऐसा था, जब 120 रुपये में एक महीने का खर्चा निकल जाता था. 90 रुपये में तीन माह का मेस, 25 रुपये हॉस्टल चार्ज और इसके अलावा पांच रुपये में अन्य खर्च शामिल होता था. अब जैसे-जैसे महंगाई बढ़ी है, रिम्स में व्यवस्था भी पहले से बदली है. लेकिन पढ़ाई में पहले की तुलना में कोई अंतर नहीं आया है. तब भी क्वालिटी एजुकेशन थी, आज भी वहीं है.
मुख्य अतिथि रिटायर्ड प्रोफेसर एसके पांडे मौजूद थे
सुबह में कार्यक्रम की शुरुआत होते ही दोस्त कार्यक्रम स्थल पर पहुंचने लगे. डाक्टरों ने कहा कि आज की शाम दोस्तों के नाम होगी. इस अवसर पर मेडिकल में डिग्री पाने वाले विभिन्न विभागों के गोल्ड मेडलिस्टों को मेडल और ट्राफी देकर सम्मानित किया गया. इस गोल्डेन जुबली कार्यक्रम में 1971-72 बैच के अलावा 1960 से 2000 तक के पुराने विद्यार्थी भी मौजूद थे. कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि रिटायर्ड प्रोफेसर एसके पांडे मौजूद थे. 1969 बैच के डॉक्टरों ने कहा कि 1969 में आरएमसीएच हुआ करता था. उस वक्त काफी कुछ नहीं था, पर अब रिम्स बनने के बाद बहुत कुछ बदल गया. डॉक्टरों ने कहा कि 1969 के दशक में चाचा पराठा भंडार काफी फेमस हुआ करता था, जहां हम सभी दोस्त सुबह का नास्ता और मस्ती किया करते थे.
हर दिन रिम्स की तरक्की हुई है : थ्रोलोचंद सिंह
पैथोलोजिस्ट डाॅ. थ्रोलोचंद सिंह ने बताया कि कई दोस्तों का साथ स्कूल के समय से दोस्ती है. अब दोस्ती के 50 साल से अधिक हो गये हैं. दोस्ती मजबूत हुई है. मैं रिम्स से ही रिटायर्ड हुआ हूं. रिम्स का हर दिन तरक्की हुआ है. तकनीकी रूप से अब डॉक्टर काफी अच्छे क्वीलिटी के पढ़ाई कर रिम्स से निकल रहे हैं. हालांकि अब पहले जैसा डाक्टरों में अपनापन नहीं रहा है, जो अपनापन पहले हुआ करता था. अभी नये डॉक्टरों में पेसेंश की काफी कमी आयी है. फोन पर दोस्तों से बात होती है, दो वर्ष बाद कोविड के बाद मिलना हुआ है.
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