New Delhi : सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दहेज प्रताड़ना से बचाव के लिए कानून में जोड़ी गई आईपीसी की धारा 498A का इस्तेमाल एक हथियार की तरह हो रहा है. यह हथियार पति और उसके रिश्तेदारों पर गुस्सा निकालने के लिए चलाया जाता है. शिकायतकर्ता महिला यह नहीं सोचती कि बेवजह मुकदमे में फंसे लोगों पर उसका क्या असर होगा. इस टिप्पणी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने बिहार की एक महिला की तरफ से ससुराल पक्ष के लोगों पर दर्ज कराये गये दहेज उत्पीड़न के मुकदमे को निरस्त कर दिया है. हालांकि, उसके पति पर मुकदमा चलता रहेगा.
ससुराल वालों पर लगाये गये आरोप सही नहीं लग रहे
मधुबनी की तरन्नुम का निकाह 2017 में पूर्णिया के मोहम्मद इकराम से हुआ था. शादी के कुछ ही महीनों बाद उसने पति और ससुराल वालों पर दहेज प्रताड़ना और मारपीट का आरोप लगाया. तब पूर्णिया के सब डिविज़नल मजिस्ट्रेट ने माना था कि ससुराल वालों पर लगाये गये आरोप सही नहीं लग रहे. उन्होंने मुकदमे से सभी रिश्तेदारों का नाम अलग कर दिया था. हालांकि, तब दोनों पक्षों का आपस में समझौता हो जाने से मामला बंद हो गया.
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पटना हाईकोर्ट ने मना कर दिया
2019 में तरन्नुम ने एक बार फिर अपने पति, सास, जेठ, जेठानी, भतीजी समेत 7 लोगों पर दहेज में कार मांगने और गर्भपात करवा देने की धमकी देने की एफआईआर दर्ज करवा दी. इस एफआईआर में उसने आईपीसी की धारा 498A (दहेज के लिए पति या उसके रिश्तेदारों की तरफ से बरती गई क्रूरता) के अलावा धारा 341 (घर मे बंद करना), 323 (चोट पहुंचाना), 354 (महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने की नीयत से बलप्रयोग) और 379 (चोरी) जैसी धाराएं भी लगायीं. सभी आरोपी एफआईआर रद्द करवाने के लिए पटना हाईकोर्ट पहुंचे. लेकिन हाईकोर्ट ने इससे मना कर दिया.
ससुराल वालों पर लगाये गये आरोप आधारहीन हैं
अब सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर और कृष्ण मुरारी की बेंच ने माना है कि महिला की तरफ से अपने ससुराल वालों पर लगाये गये आरोप आधारहीन हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि महिला ने एफआईआर में सबके बारे में कह दिया है कि उन्होंने उसे प्रताड़ित किया. किस व्यक्ति की क्या भूमिका थी? किसने उसके साथ क्या किया? ऐसी कोई जानकारी नहीं दी. महिला ने 2017 में की गई शिकायत में भी सबका नाम जोड़ दिया था. इस बार भी यही लग रहा है कि उसने बिना किसी आधार के सबके विरुद्ध एफआईआर लिखवा दी.
सुप्रीम कोर्ट के कई पुराने फैसलों का हवाला दिया
दो जजों की बेंच ने अर्णेश कुमार बनाम बिहार, प्रीति गुप्ता बनाम झारखंड, गीता मेहरोत्रा बनाम यूपी जैसे सुप्रीम कोर्ट के कई पुराने फैसलों का हवाला दिया है. उन्होंने कहा है कि कई मौकों पर सुप्रीम कोर्ट धारा 498A के दुरुपयोग पर चिंता जता चुका है. पति या ससुराल से नाराज़ पत्नी अक्सर उन्हें परेशान करने की नीयत से उनके खिलाफ केस दर्ज करवा देती है. जजों ने कहा है कि यह मामला भी ऐसा ही लग रहा है. इन टिप्पणियों के साथ सुप्रीम कोर्ट ने अपने पास अपील दाखिल करने वाली कहकशां कौसर (भतीजी), कमरुन निशा (सास), मुसरत बानो (जेठानी) और मोहम्मद इकबाल (जेठ) को राहत दे दी है. उनके ऊपर लगे आरोप निरस्त कर दिये गये हैं.
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