- विरोध करने वाली तत्कालीन जिप सदस्य ने खोला राज
- निजी हाथ में आरोग्यम अस्पताल को भवन सौंपने की पहले से लिखी गई थी पटकथा
Ranchi: आरोग्यम स्कैम में एक और बड़े मामले का खुलासा हुआ है. तत्कालीन जिला परिषद सदस्य प्रियंका कुमारी ने इसका राज खोला है. उन्होंने बताया कि तब जिला परिषद के कई सदस्यों को प्रलोभन दिया गया था. बोर्ड की बैठक में जब प्रियंका कुमारी ने जिला परिषद की ओर से आरोग्यम अस्पताल को सौंपे गए दूसरे भवन के मामले में विरोध जताया था, तो सभी को प्रलोभन दिया गया था. जिला परिषद सदस्यों से कहा गया था कि अगर आरोग्यम को वह भवन दिए जाने के सहमति पत्र पर सभी हस्ताक्षर कर देंगे, तो उनके क्षेत्र के लिए आठ-आठ चापाकल लगाने की योजना दी जाएगी. इस बात से कई जिला परिषद सदस्य प्रभावित हो गए थे. प्रियंका कुमारी ने बताया कि चुनिंदे जिला परिषद सदस्यों ने भवन सौंपे जाने का विरोध किया था, जिसमें वह भी शामिल थीं. ऐसे में यह साफ प्रतीत होता है कि जिला परिषद ने आरोग्यम को दूसरे भवन सौंपने के लिए पहले से ही पटकथा लिखी थी और उसे मूर्तरूप भी दिया गया. प्रियंका कुमारी ने यह भी बताया कि तब दशहरा का समय था और जिला परिषद सदस्यों के घर-घर जाकर भवन सौंपे जाने के मामले में सहमति पत्र पर हस्ताक्षर कराए गए थे.
अनाज वितरण के नाम पर हुआ खेल
कटकमसांडी के तत्कालीन जिला परिषद सदस्य विजय सिंह भोक्ता ने बताया कि आरोग्यम को दूसरा भवन सौंपे जाने के मामले में कोविड काल में खूब खेल हुआ. इसी बहुउद्देशीय भवन में 40 लोगों को दुकानें दी जानी थीं. उन्होंने बताया कि कोविड काल में अभियंता सीबी सिंह ने घर-घर जाकर जिला परिषद सदस्यों से हस्ताक्षर लिया था. साथ ही यह कहा गया था कि आठ चापाकल योजना के अलावा क्षेत्र में जरूरतमंदों के बीच बांटने के लिए फूड पैकेट भी दिए जाएंगे. जब कई सदस्यों को हस्ताक्षर करते देखा, तो सहमति पत्र पर उन्होंने भी हस्ताक्षर कर दिया. हालांकि उन्हें न चापाकल की योजना दी गई और न कोविड काल में जरूरतमंदों के बीच बांटने के लिए फूड पैकेट दिए गए. कुछ जगहों पर योजनाएं और फूड पैकेट दिए गए थे.
तत्कालीन डीडीसी और अभियंता ने निभाई थी भूमिका
कटकमसांडी के तत्कालीन जिला परिषद सदस्य विजय सिंह भोक्ता ने बताया कि इस मामले में तत्कालीन डीडीसी सह मुख्य कार्यपालक अभियंता जाधव विजया नारायण राव और अभियंता सीबी सिंह ने अहम भूमिका निभाई थी. उस वक्त कोविड काल में फूड पैकेट वितरण का जिम्मा भी डीडीसी ही देख रही थीं.