Jamshedpur : आषाढ़ मास को आदिवासी समाज खेतीबाड़ी के दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण मानता है. इसी उद्देश्य से इस माह जगह-जगह आषाढ़ पूजा का आयोजन किया जाता है. मंगलवार को करनडीह दिशोम जाहेरगढ़ में आषाढ़ पूजा धूम-धाम के साथ सम्पन्न हुई.
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पूजा के बाद ही कुदाली से मेढ़ों को काटा जाता है
आदिवासियों के इस परंपरिक पूजा की ऐसी मान्यता है कि बरसात के दिन खेतों में काम करने के दौरान सांप-बिच्छू तथा विभिन्न तरह के कीड़े-मकोड़े निकलते हैं, जिससे बचने के लिए ही आषाड़िया पुजा की जाती है. आदिवासी समाज में आषाड़िया पुजा के बाद ही खेतों में कुदाली से मेढ़ों को काटा जाता है. मेढ़ों से घांस काटना सुरक्षित माना जाता है. इस अवसर पर जाहेरथान कमिटि के अध्यक्ष सीआर माझी, गणेश टुडू, बुढान माझी, कुशल हांसदा, रविन्द्र नाथ मुर्मू, बीरप्रताप मुर्मू,नायके बाबा दिपक सोरेन, बाबूराम सोरेन, समरेन्द्र मार्डी,जगत सोरेन,माझिया सोरेन,अजय मुर्मू,सुराई टुडू, उपेन्द्र मुर्मू, रामचन्द्र मुर्मू,दशरथ टुडू,दिपक हांसदा, बिनय हांसदा, महत्मा हांसदा, निशोन हेम्बरोम, करण सोरेन, प्रधान सोरेन आदि कमिटी के सदस्य और ग्रामवासी मौजूद थे.