Shyam Kishore Choubey
हम चांद के दक्षिणी ध्रुव तक जा पहुंचे, जहां बाकी दुनिया नहीं जा सकी है. दूसरी ओर मिनी मुंबई कहे जानेवाले जमशेदपुर के विषय में 17 अप्रैल को एक खबर छपी कि धुआं कॉलोनी में पानी की किल्लत के कारण कोई पिता अपनी बेटी की शादी करने से परहेज करता है. झारखंड में धुआं कॉलोनियों की भरमार है. गर्मी की दस्तक के साथ पेयजल के लिए हाहाकार मचने लगता है. तीसरी ओर इस अप्रैल में सूर्य की तपिश से कहीं अधिक चुनावी तपिश तारी होने लगी है. 18वीं लोकसभा के लिए सात चरणों में चल रही चुनाव प्रक्रिया के तहत प्रथम चरण में 21 राज्यों के अंतर्गत 102 सीटों पर कल 19 अप्रैल को मतदान हो चुका. झारखंड जैसे कुछेक राज्यों में चुनाव आयोग अभी भी मतदाता जागरूकता अभियान चला रहा है, ताकि अधिक से अधिक मतदान हो सके.
इस अभियान का दूसरा पार्ट है, किसे चुनें, क्यों चुनें? यह जागरूकता खुद लानी होगी. अपने विधायक, सांसद से कोई यह अपेक्षा नहीं करता कि वे उसका भव्य महल बनवा दें, उसके लिए जमीन खरीद दें या उसके बच्चों को पढ़ा दें. उसकी इतनी ही इच्छा रहती है कि सरकार की ओर से अच्छे स्कूल, पास-पड़ोस में इलाज की सुविधा, पीने के लिए और यदि खेत-बाड़ी है तो सिंचाई के लिए पानी की व्यवस्था करवा दें. इसके बाद परिवहन, बाजार आदि की बारी आती है. प्रत्याशीगण बड़े-बड़े एजेंडे लेकर आते हैं, जैसा कि कांग्रेस, राजद, भाजपा आदि न्याय पत्र, परिवर्तन पत्र, संकल्प पत्र जैसे अलग-अलग नाम से एजेंडे जारी कर चुके हैं. पहले इसे घोषणा पत्र कहा जाता था. अब ब्रॉण्डिंग का जमाना है, इसलिए सभी लोकलुभावन नाम रख रहे हैं.
किसे वोट दें, क्यों दें जैसे सवालों का निदान ढूंढने के पहले प्रत्याशियों को जानना जरूरी है. झारखंड में एनडी एलायंस ने दुमका से खड़ा किये अपने सीटिंग सांसद को बैठाते हुए सभी 14 सीटों पर उम्मीदवार दे दिया है. इंडि एलायन्स ने रुक-रुक कर 12 सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा की है. एनडी एलायन्स ने 14 में तीन महिला उम्मीदवार दिया है तो इंडि एलायन्स ने चार महिला प्रत्याशियों की घोषणा की है. भाजपा ने अपने पांच सीटिंग सांसदों को घर बैठाकर छह नये प्रत्याशी दिये, जबकि इंडि एलायन्स द्वारा घोषित 12 प्रत्याशियों में दस को पहली बार मौका मिल रहा है. शेष दो सीटों पर वह किनको पेश करेगा, कहा नहीं जा सकता. इन 14 सीटों पर दोनों पक्षों की ओर से नौ विधायक उतारे गये हैं, जबकि सिंहभूम में दोनों ही ओर से महिला प्रत्याशी हैं. एक ओर से गीता कोड़ा सीटिंग सांसद हैं तो दूसरी ओर से विधायक जोबा मांझी हैं, जो ढाई महीने पहले तक मंत्री थीं. दोनों एक ही फोल्ड में थीं, लेकिन गीता कोड़ा के कांग्रेस छोड़कर भाजपा में चले जाने से आमने-सामने की स्थिति बन गई.
हजारीबाग में दोनों ओर के प्रत्याशी चुनाव की घोषणा के समय तक भाजपा में थे, लेकिन जेपी पटेल के कांग्रेस में चले जाने से मनीष जायसवाल से उनकी भिड़न्त हो रही है. इन 26 प्रत्याशियों में धनबाद से कांग्रेस की अनुपमा सिंह और पलामू से राजद की ममता भुइयां को संसदीय राजनीति का कोई अनुभव नहीं रहा है. ऐन चुनाव के समय ममता भाजपा छोड़ राजद में आई हैं. संसदीय चुनाव के लिहाज से नये-नवेले प्रत्याशियों की भरमार के कारण यह चुनाव दिलचस्प हो गया है. ऐसे में मतदाता प्रत्याशी को परख कर वोट करें तो बात कुछ और होगी. यदि वे पार्टी लाइन पर जाते हैं तो केवल चेहरे बदलेंगे, बाकी बदलाव की उम्मीद शायद ही होगी. कहने की बात नहीं कि क्षेत्र विशेष की जातीय संरचना को ध्यान में रखकर ही पार्टियों ने उम्मीदवार उतारा है. 14 में छह सीटें रिजर्व कैटेगरी की हैं, इसलिए उन सीटों की चुनावी राजनीति अलग किस्म की है. इन छह में से पांच सीटें जनजातीय उम्मीदवारों के लिए आरक्षित हैं, लेकिन उनमें भी उरांव बेल्ट, मुंडा बेल्ट, हो बेल्ट, संताल बेल्ट जैसी जातीय बहुलता को ही महत्व दिया है राजनीतिक दलों ने.
जैसे सार्वजनिक मंचों से जाति-पांति का खुलकर विरोध किया जाता है, लेकिन अवसर आते ही सारे समीकरण जाति और भाषा पर केंद्रित कर दिये जाते हैं, कुछ वैसी ही बात अपने क्षेत्र के प्रत्याशियों को परखने की है. यूं, अबतक कम से कम तीन प्रत्याशियों का आंतरिक या बाह्य रूप से विरोध सामने आ चुका है. उनको राजा मान लेने से बात नहीं बननेवाली. जिस तरह के उम्मीदवारों को इस बार मौका दिया गया है, उससे स्पष्ट है कि सभी दलों के पास प्रत्याशियों का टोटा था. चुनाव प्रचार के दौरान भाषणों और मीठी-मीठी बातों से मतदाताओं को ऊंचे ख्वाब दिखाये जाएंगे, लेकिन मतदाताओं का जो थोड़ा-बहुत रिश्ता रहेगा, वह अपने निर्वाचित जनप्रतिनिधि से ही रहेगा.
इसलिए उसको परखना जरूरी है कि वह क्षेत्र में आम नागरिक सुविधाओं की बहाली में क्या कर सकता है. 23-24 वर्ष के झारखंड में जन साधारण के लिए क्वालिटी स्कूलिंग, स्वास्थ्य, पेयजल सबसे बड़ी समस्या है. स्कूल और अस्पताल भवन तो हैं, लेकिन शिक्षक, डॉक्टर और पारा मेडिकल स्टाफ की घोर कमी है. इतनी छोटी सी आवश्यक आवश्यकता की पूर्ति की दिशा में प्रत्याशियों और उनका सहयोग कर रहे दलीय नेताओं ने क्या किया अबतक, इतना तो उनसे पूछा ही जाना चाहिए. यदि वे नाकाम रहे तो संसद में बैठकर कौन सा तीर मार लेंगे? वे चांद की ही बातें करते रहेंगे या जमीन की भी करेंगे, कम से कम यही पूछ लिया जाना चाहिए.
Disclaimer: ये लेखक के निजी विचार हैं.