Jaipur : संसद कानून बनाता है और सुप्रीम कोर्ट उसे रद्द कर देता है. क्या संसद द्वारा बनाया गया कानून तभी कानून माना जायेगा जब उस पर कोर्ट की मुहर लगेगी? जयपुर में आयोजित विधानसभा स्पीकर्स के राष्ट्रीय सम्मेलन में बुधवार को उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने संसद के कामों में सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप पर नाराजगी जताते हुए यह बात कही. उपराष्ट्रपति के साथ ही लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने भी अदालती हस्तक्षेप पर नाराजगी जाहिर की.
Rajasthan | There should be mutual respect between legislature & judiciary in order to strengthen democracy. The judiciary should also stay within its boundaries. Campaigns should be run to make people actively participate in making laws in the country: Lok Sabha Speaker Om Birla pic.twitter.com/tYfWBmFztv
— ANI MP/CG/Rajasthan (@ANI_MP_CG_RJ) January 11, 2023
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न्यायपालिका भी मर्यादा का पालन करें
इस संबंध में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने सलाह देते हुए कहा कि न्यायपालिका भी मर्यादा का पालन करें. न्यायपालिका से उम्मीद की जाती है कि जो उनको संवैधानिक अधिकार दिया है, उसका उपयोग करें. साथ ही अपनी शक्तियों का संतुलन भी बनायें. इस क्रम में कहा कि हमारे सदनों के अध्यक्ष भी यही चाहते हैं.
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संसद संविधान संशोधन कर सकती है, इसके बेसिक स्ट्रक्चर को नहीं
सम्मेलन में उपराष्ट्रपति धनखड़ ने पुरानी बात याद करते हुए कहा कि 1973 में बहुत गलत परंपरा चालू हुई. केशवानंद भारती केस में सुप्रीम कोर्ट ने बेसिक स्ट्रक्चर का आइडिया दिया कि संसद संविधान संशोधन कर सकती है, लेकिन इसके बेसिक स्ट्रक्चर को नहीं. कोर्ट को सम्मान के साथ कहना चाहता हूं कि इससे मैं सहमत नहीं. हाउस बदलाव कर सकता है. क्या संसद यह अनुमति दे सकता है कि उसके फैसले को कोई और संस्था रिव्यू करे?
श्री धनखड़ ने कहा कि जब मैंने राज्यसभा के सभापति का चार्ज लिया तब कहा था कि न तो कार्यपालिका कानून को देख सकती है, न कोर्ट हस्तक्षेप कर सकता है. संसद के बनाये कानून को किसी आधार पर कोई संस्था अमान्य करती है तो प्रजातंत्र के लिए ठीक नहीं होगा. यह कहना मुश्किल होगा कि हम लोकतांत्रिक देश हैं.
विधानसभाओं में जो माहौल दिख रहा है वह बहुत निराशाजनक है.
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के अनुसार आज संसद और विधानसभाओं में जो माहौल दिख रहा है वह बहुत निराशाजनक है. कहा कि हमारे चुने हुए जनप्रतिनिधियों का बर्ताव संसद और विधानसभा सदनों में लगातार गिरता जा रहा है. इस निराशाजनक माहौल का समाधान निकाला जाना चाहिए. इसके अलावा कोई विकल्प नहीं है. संसद और विधानसभा सदनों में जनप्रतिनिधियों के अशोभनीय बर्ताव से जनता नाराज है. गले नहीं उतरता कि संविधान की शपथ लेने वाले जनप्रतिनिधि ऐसे आचरण करते हैं. लोग सोचते हैं कि हमारे चुनकर भेजे हुए जनप्रतिनिधि रास्ता दिखायेंगे.
ज्यूडिशियरी हमारे कामों में हस्तक्षेप कर रही है
कार्यक्रम में मौजूद राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि कई बार न्यायपालिका से मतभेद होते हैं. ज्यूडिशियरी हमारे कामों में हस्तक्षेप कर रही है. इंदिरा गांधी ने जब प्रिवी पर्स खत्म किया था, तो इसे ज्यूडिशियरी ने रद्द कर दिया था. बाद में बैंकों के राष्ट्रीयकरण से लेकर उनके सब फैसलों के पक्ष में जजमेंट आये. गहलोत ने कहा कि 40 साल से मैंने भी देखा है. कई बार हाउस नहीं चलता. 10-10 दिन गतिरोध चलते हैं. फिर भी पक्ष और विपक्ष मिलकर भूमिका निभाते हैं.
संसदीय लोकतंत्र के सामने कई चुनौतियां हैं
राजस्थान विधानसभा के स्पीकर डॉ. सीपी जोशी ने कहा कि आज संसदीय लोकतंत्र के सामने कई चुनौतियां हैं. आज कार्यपालिका की तानाशाही है. विधानसभा सदनों की बैठकें ही कम हो रही हैं तो सरकार को जवाबदेह कौन बनायेगा. विधानसभा स्पीकर हेल्पलेस हैं. विधानसभा के स्पीकर केवल रेफरी हैं. स्पीकर विधानसभा नहीं बुला सकते हैं. यह काम सरकार करती है. दुर्भाग्य यह है कि हम केवल हाउस चलाते हैं. बाकी कोई पावर नहीं हैं. स्पीकर हेल्पलेस है.