रांची : बिहार सरकार में मंत्री रहे बंदी उरांव का निधन. सोमवार देर रात ली अंतिम सांस. इनका जन्म 16 जनवरी 1931 में गुमला के पुसो गांव में हुआ था. पूर्व शिक्षा मंत्री सह बंदी उरांव की बहू गीता श्री उरांव ने लगातार डॉट इन का बताया कि उनका अंतिम संस्कार गुमला के पैतृक गांव में बुधवार को किया जायेगा.
इन्होने अपनी सारी जीवन झारखंडी जनमानस के हित में लगी दी थी. वो राजनीतिक जीवन में कुछ ऐसे काम किये हैं जो कि संवैधानिक प्रावधान के रूप में पूरे देश में लागू है. 1980 में गिरिडीह जिले के एसपी के पद पर रहते हुए बंदी उरांव ने नौकरी से त्यागपत्र देकर कार्तिक उरांव के प्रेरणा से अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की. पेसा कानून को लेकर इन्होंने लंबा संघर्ष किया है और यह मानते हैं कि झारखंड का विकास तभी हो सकता है.
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एसपी की नौकरी छोड़ राजनीति में आये थे बंदी
बंदी उरांव ने अपने जीवन के बारे में बताया था कि उनका जन्म. 16 जनवरी 1931 को गुमला जिले के दतिया गांव में हुआ था. उन्होंने रांची जिला स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा 1947 में प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की. उन्होंने कहा कि मुझसे पहले ग्रामीण क्षेत्र के विद्यार्थियों में कार्तिक उरांव प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण होने वाले विद्यार्थी थे. कार्तिक उरांव गुमला जिला के ग्रामीण क्षेत्र के मेधावी छात्र थे, जिन्होंने प्रथम श्रेणी से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की.
इसके बाद उन्होंने पटना साइंस कॉलेज से पढ़ाई पूरी की और इंजीनियरिंग कर के विदेश चले गये. कार्तिक उरांव चाहते थे कि मैं भी उनकी तरह इंजीनियर बनूं, लेकिन मैं बिहार लोक सेवा आयोग की परीक्षा पास कर पुलिस सेवा में गया. 1980 में मैं गिरिडीह जिला में एसपी बना. नौकरी में रहते हुए त्यागपत्र देकर कार्तिक उरांव के कहने पर राजनीति में आया. इसके बाद सिसई विधानसभा क्षेत्र से लगातार विधायक रहा, लेकिन मेरे लिए जीवन की सबसे बड़ी खुशी तब हुआ जब लोक सभा में पंचायत विस्तार अधिनियम 1996 में पास हुआ.
नेता और अधिकारी पेसा कानून के बारे में नहीं जानते
बंदी उरांव ने बताया था कि भूरिया कमिटी के द्वारा पंचायत राज्य विस्तार अधिनियम तैयार किया गया. इस कानून को बनाने में स्व. बीडी शर्मा के साथ मिलकर हम सबने काम किया. आदिवासी पंरापरा और स्वशासन को कलमबद्ध करने का काम किया. जब कानून पास हो गया तो इसे लेकर गांव-गांव में पत्थरगड़ी की गयी, ताकि हमारी आने वाले पीढ़ी ग्रामसभा के शक्तियों को देखे, पढ़े और अपने जीवन में अत्मसात करे.
उन्होंने कहा था कि वर्तमान समय में प्रशासन द्वारा पत्थलगड़ी पर सवाल खड़ा करना गैर संवैधानिक है. राज्य के नेता और अधिकारी पेसा कानून नहीं जानते. अगर वह इसे पूरी तरह पढ़ कर समझ जाते तो आज राज्य का विकास होता. राज्य में कमीशनखोरी का मामला भी नहीं होता. राज्य में ग्रामसभा को अधिकार दिया जाता तो आज राज्य में विकास का दूसरा ही नजारा रहता.
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करप्शन तभी खत्म होगा जब पेसा कानून अक्षरशः लागू होगा
उन्होंने कहा था कि राज्य के विकास के लिए जरूरी है कि राज्य को करप्शन से मुक्ति मिले. जब तक करप्शन के कोर से राज्य को मुक्ति नहीं मिलेगी. तब तक न आदिवासियों का और न ही राज्य का विकास हो सकता है. ऐसी अवस्था में पेसा कानून को राज्य में पूरी तरह लागू करना चाहिए, तभी राज्य का विकास होगा.
अब तो सिर्फ चुनाव के वक्त राजनेता जाते हैं गांव
बंदी उरांव ने कहा था कि राज्य के राजनेता गांव नहीं जाते हैं. वह सिर्फ चुनाव में ही गांव जाते हैं, इसलिए उन्हें करप्शन कर धन जमा करना पड़ता है और चुनाव लड़ना पड़ता है. चुनाव में पैसे खर्च करने पड़ते हैं. मैं अपने समय में काफी कम संसाधनों से चुनाव लड़ता था और जीतता था. पैसे का बंदरबांट चुनाव में नहीं होता था. जनप्रतिनिधियों द्वारा किये गये कार्यों का आकलन करते हुए जनता वोट देती थी और इस वोट से लोग जीतते थे.
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