अनंत कुमार
Bermo : झारखंड की संस्कृति और परंपरा भी अनोखी, अद्भुत और बहुच गहराई तक रची बसी है. जहां 21वीं सदी के मोबाइल क्रांति के चकाचौंध में ग्रामीण क्षेत्रों की पारंपरिक संस्कृति व खेलकूद विलुप्त होते जा रहे हैं, वहीं आज भी बोकारो जिला के कसमार प्रखंड में सौ साल से ज़्यादा पुरानी पारंपरिक खेल प्रतियोगिता उसी रूप में जीवित है. तीरंदाजी की इस पारंपरिक प्रतियोगिता में प्रकृति से अटूट जुड़ाव, धरती से लगाव और विरासत को सहेजने का भाव झलकता है.
इनाम में मिलता है खेत
मकर संक्रांति के दिन कसमार प्रखंड के मंजूरा पंचायत में तीरंदाजी की एक बेमिसाल प्रतियोगिता होती है. इसे स्थानीय लोग ‘बेझा बिंधा’ कहते हैं. तीरंदाजी की इस अनोखी प्रतिस्पर्धा में अचूक निशखाना लगाने वाले विजयी प्रतिभागी को नगद इनाम नहीं मिलता, बल्कि उसे एक साल के लिए खेती के लिए 20 डिसमिल दी जाती है.
पूरे साल किसान करते हैं अभ्यास
‘बेझा बिंधा’ प्रतियोगिता में आसपास के प्रतिभागी भाग लेते हैं. प्रतियोगिता को लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में काफी उत्साह रहता है. कई किसान प्रतिभागी सालों भर इस प्रतियोगिता में सफल होने के लिए अभ्यास करते हैं. इस वर्ष 15 जनवरी को मकर संक्रांति है, इसलिए रविवार को यह प्रतियोगिता होगी. पिछले वर्ष 14 जनवरी को ‘बेझा बिंधा’ आयोजित हुई थी.
परंपरा का इतिहास
मंजूरा पंचायत के स्व.रीतवरण महतो ने अंग्रेजों के समय ही ‘बेझा बिंधा’ की शुरुआत की थी. आज इस परंपरा के 100 साल से भी ज़्यादा हो गये हैं. आज स्व.रीतवरण महतो के वंशज इस प्रतियोगिता को आयोजित करवाते हैं. स्व.रीतवरण महतो के वंशज ही ‘बेझा बिंधा’ के विजेता को अपनी जमीन एक साल के लिए देते हैं.
‘बेझा बिंधा’ की विशेषता
प्रतियोगिता में केले के खंभा पर 101 डेग यानी 101 कदम की दूरी से तीर-धनुष से लैस ग्रामीण प्रतिभागी निशाना साधते हैं. जो प्रतिभागी सबसे पहले लक्ष्य को साधने में कामयाब हो जाते हैं, उन्हें ‘बेझा बिंधा’ विजेता घोषित किया जाता है. प्रतियोगिता से पहले परंपरा के अनुसार स्व.रीतवरण महतो के वंशज व ग्रामीण गेन्दखेला नामक स्थान से पूर्वजों की बनाई हुई सूती धागा का गेंद खेल कर आते हैं. गांव के ‘नया’ (पुजारी) पहला तीर चला कर ‘बेझा बिंधा’ की शुरुआत करते हैं. ‘नया’ के बाद गांव के ‘महतो’ (प्रधान) के वंशज तीर चलाते हैं. उसके बाद विधिवत प्रतियोगिता आयोजित की जाती है. केला के खंभा लाने एवं गाड़ने की जिम्मेवारी गांव के ‘गौड़ायत’ की होती है.
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