22 जून से घटने लगेगी दिन की अवधि, शून्य डिग्री की तरफ दक्षिणी गोलार्द्ध की ओर होगा मुखातिब
अतिप्राचीन मानवों से जुड़ा है समर सोल्सटाइस की खगोलीय घटना : शुभाशीष दास
समर सोल्सटाइस के तीन-चार दिनों के बाद धरती हो जाती है उत्पादन के लायक, तभी किसान चलाते हैं हल
समरसोल्सटाइस के सूर्योदय का नजारा देखने के लिए इंग्लैंड के स्टोनहेंज में जुटते हैं दुनिया के लाखों खगोलप्रेमी
Amarnath Pathak
Hazaribagh : हमलोग उत्तरी गोलार्द्ध में रहते हैं और 21 जून को इधर के लिए सबसे बड़ा दिन होगा. दिन की अवधि 14 घंटे तीन मिनट की होगी. मेगालिथ इतिहास में यह खगोलीय घटना समर सोल्सटाइस के नाम से जाना जाता है. दरअसल सूर्य उस रात 8.27 बजे साढ़े 23 डिग्री कर्क रेखा पर होगा. फिर 22 जून से दिन छोटा होना शुरू हो जाएगा. सूर्य शून्य डिग्री की ओर दक्षिणी गोलार्द्ध की तरफ मुखातिब होगा.
22-23 सितंबर को दिन-रात की अवधि समान
22-23 सितंबर को दिन-रात की अवधि समान होगी. पृथ्वी की घूर्णन गति के कारण सूर्य की यह यात्रा साल भर में निरंतर बदलती रहती है. यह जानकारी देते हुए प्रसिद्ध मेगालिथ खोजकर्ता सह शोधकर्ता शुभाशीष दास ने ‘शुभम संदेश’ से खास बातचीत में बताया कि हजारीबाग और चतरा के कई ऐसे मेगालिथिक साइट्स हैं, जहां से समर सोल्सटाइस का खूबसूरत सूर्योदय दिखाई देता है. हजारीबाग के बड़कागांव पंकुरी बरवाडीह और नष्ट कर दिए गए ऐतिहासिक मेगालिथ स्थल चानो, चतरा के बाए बलबल और पत्थलगड्डा के ओबरा स्थित मेगालिथिक साइट्स से समरसोल्सटाइस के खूबसूरत सूर्योदय का नजारा देखा जा सकता है.
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आर्य के आगमन के पहले आदिवासी सूर्य और महापाषाणों से गणना करते थे
उन्होंने बताया कि समर सोल्सटाइस अतिप्राचीन मानवों के उन्नत खगोलीय और गणितीय गणना से जुड़ी घटना है. आर्य के आगमन के पहले आदिवासी सूर्य और महापाषाणों से गणना करते थे. यह अतिप्राचीन प्रजनन पंथ से जुड़ी घटना भी है. ऐसा माना जाता है कि समर सोल्सटाइस के तीन-चार दिनों के बाद धरती उत्पादन के लायक हो जाती है, तभी किसान उस पर हल चलाते हैं. हजारीबाग और चतरा के अधिकांश मेगालिथिक साइट्स का एलाइनमेंट समर सोल्सटाइस की दिशा में खड़े हैं. इसका जिक्र शुभाशीष दास ने अपनी लिखी पुस्तक ‘आर्कियो एस्ट्रोनॉमी ऑफ अ फ्यू मेगालिथिक साइट्स ऑफ झारखंड’ में भी की है. उन्होंने बताया कि समर सोल्सटाइस के खूबसूरत सूर्योदय का नजारा देखने के लिए इंग्लैंड के स्टोनहेंज में दुनियाभर के लाखों खगोलप्रेमी जुटते हैं.
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