Patna: बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर आए तमाम एग्जिट पोल की मानें तो महागठबंधन को सत्ता मिलने वाली है और 15 साल बाद नीतीश सरकार की विदाई लगभग तय है. अगर 10 नवंबर को वोटों की गिनती के बाद वास्तविक रिजल्ट एग्जिट पोल के अनुरूप ही आते हैं, तो इसमें लोकजनशक्ति पार्टी (एलजेपी) के प्रमुख चिराग पासवान की भूमिका को सबसे महत्वपूर्ण कहा जा सकता है.
चिराग ने अपने देवंगत पिता रामविलास पासवान का सपना किया पूरा
रामविलास पासवान 2005 से ही कोशिश में थे कि वह नीतीश कुमार को सत्ता से दूर करें. 2005 के मार्च में हुए चुनाव के बाद रामविलास पासवान ने 29 सीटें आने पर नीतीश कुमार को सपोर्ट करने से मना कर दिया था. इसके बाद कोई ऐसा मौका ही नहीं आया जब रामविलास पासवान नीतीश को किसी प्रकार से डैमेज कर पायें. 2010 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार को रोकने के लिए रामविलास पासवान ने लालू यादव से हाथ मिलाया था, लेकिन वह अपने मंसूबे में सफल नहीं हो पाए थे. इसके बाद 2015 के विधानसभा चुनाव में भी नीतीश कुमार को रोकने के लिए रामविलास पासवान ने बीजेपी के साथ मिलकर जोर लगाया था लेकिन वहां भी नाकामी हाथ लगी थी. ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि चिराग ने अपने देवंगत पिता का सपना पूरा किया है.
इसे भी पढ़ें- झारखंड उपचुनाव का परिणाम कल, दुमका और बेरमो में है कांटे की टक्कर
नीतीश के सामने मोदी और लालू जैसे राजनेताओं की भी नहीं गली दाल
पिछले दो दशकी की राजनीति पर गौर करें तो नीतीश कुमार बिहार की पॉलिटिक्स के वे योद्धा हैं जिनके बिना कोई भी सत्ता का स्वाद नहीं चख पाया है। 2014 के लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी की लहर में प्रचंड बहुमत हासिल करने वाली बीजेपी भी 2015 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार के सामने हार गया थी। बिहार की सत्ता में बने रहने के लिए बीजेपी को दोबारा से नीतीश का साथ लेना पड़ा। जिस नीतीश कुमार के सामने मोदी और लालू जैसे राजनेताओं की दाल नहीं गल पायी, अनुमानों में उन्हें चिराग पासवान धराशायी करते दिख रहे हैं। चिराग पासवान शुरू से ही कहते रहे हैं कि उनका मकसद नीतीश कुमार को सत्ता से दूर करना है, जिसमें में वह सफल होते दिख रहे हैं। हालांकि ये तमाम बातें एग्जिट पोल को आधार बनाकर कही जा रही है, फाइनल और वास्तविक रिजल्ट 10 नवंबर को आएंगे जिसके बाद ही स्थिति ताफ साफ हो पायेगी.