Jyoti prakash
बिहार में नीतीश कुमार से लोगों का गुस्सा मुख्य रूप से बेरोजगारी, शिक्षा, रिश्वत और स्वास्थ्य सुविधा से है. 2019 में लोकसभा में भाजपा गठबंधन को 40 में से 39 सीट देने वाले बिहार में एक सबसे बड़ा तबका वो है, जिसे बीजेपी से प्रेम है, लेकिन नीतीश से बेहद खफा है. जब केंद्र से लेकर राज्य तक मोदी के साथ नीतीश सरकार चला रहे हैं तो मुद्दों को लेकर इस वर्ग का केवल नीतीश से गुस्सा ही इस गुस्से की वास्तविकता पर सवाल खड़े करता है. यह गुस्सा सचमुच में मुद्दों को लेकर है या चेहरे को लेकर?
खासकर यदि बेरोजगारी को लेकर बिहारवासियों द्वारा “नीतीश तेरी खैर नहीं और मोदी से परहेज़ नहीं” का स्लोगन चलाया जा रहा है तो असल में बेरोजगारी को लेकर उनकी गंभीरता केवल और केवल ढकोसला है, झूठा है.
कोई बतलाये कि बिहार के लोग सरकारी नौकरी के लिए केंद्र की वैकेंसी पर ज्यादा निर्भर हैं या राज्य की. केंद्रीय कर्मचारियों की कुल संख्या करीब 35 लाख से अधिक हैं. केवल रेलवे में 13 लाख से अधिक हैं. 100 से अधिक पीएसयू हैं. हालांकि उनका कोई एकत्रित आंकड़ा नहीं है. लेकिन लाखों की संख्या में कर्मचारी हैं उनमें. पूरे बैंकिंग सेक्टर में 13.5 लाख से अधिक कर्मचारी हैं. इन सभी जगहों पर सबसे बड़ी संख्या में पदों पर बिहार के लोग ही है.
आज इन नौकरियों का मोदी सरकार ने क्या हाल किया है. रेलवे का निजीकरण, बैंकों का मर्ज किया जाना और माइनस वाली इकोनॉमी ने इन क्षेत्रों के रोजगार सृजन की क्षमता को तहस-नहस कर चुका है. कुछ वर्ष पूर्व ही 45 वर्ष की सबसे बड़ी बेरोजगारी थी देश में. आज कोरोना काल के समय क्या बचा है.
स्वास्थ्य और शिक्षा को लेकर ही केंद्र का बिहार में क्या योगदान है. वर्ष 2015-16 में मोदी सरकार द्वारा घोषित एक भी एम्स आज तक बनकर तैयार नहीं हुआ. बिहार में चालू एम्स भी वाजपेयी सरकार द्वारा वर्ष 2004 में ही दिया गया था.
नीतीश कुमार ने मोदी से पटना यूनिवर्सिटी को सेंट्रल यूनिवर्सिटी का दर्जा मांगा था. क्या मिला उसको? बिहार के लिए 1.25 लाख करोड़ के पैकेज की बोली लगवाई थी मोदी ने. क्या मिला बिहार को? जब केंद्र से लेकर राज्य तक मोदी-नीतीश की जोड़ी बिहार की सेवा में लगी है तो अकेले नीतीश के खिलाफ गुस्सा क्या मुद्दों को लेकर है बिहार में?
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.