Ranchi : डेढ़ साल बाद रघुवर दास प्रदेश बीजेपी में एक्टिव हो गये हैं. जमशेदपुर का मोह छोड़कर अधिकतर रांची में डेरा जमा रहे हैं. पार्टी की सभी बैठकों और कार्यक्रमों में बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं. संगठन में फिर से उनकी बढ़ती सक्रियता से कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों का एक खेमा परेशान है. परेशान वे पदाधिकारी और कार्यकर्ता भी हैं जिनपर रघुवर ने अपनी कृपा बरसाई है. अभी रघुवर पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं. वे पार्टी की बैठकों में अपनी राय रख सकते हैं, लेकिन वे राय देने के साथ-साथ प्रदेश नेतृत्व पर दबाव भी बना रहे हैं. दीपक प्रकाश उनसे कुछ कह भी नहीं पाते. दरअसल जब रघुवर पूरे फॉर्म में थे और बीजेपी कार्यकर्ताओं पर कृपा बरसा रहे थे. उसी दौरान दीपक प्रकाश प्रदेश महामंत्री से राज्यसभा सांसद और फिर प्रदेश अध्यक्ष बन गये. अब ऐसे में दीपक प्रकाश रघुवर को नसीहत दे नहीं सकते. इसलिए रघुवर को नसीहत देने के लिए केंद्रीय नेतृत्व को बीच-बीच में दखल देना पड़ता है.
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बीएल संतोष ने दी थी रघुवर को नसीहत
रघुवर और बाबूलाल मरांडी दोनों बीजेपी में, लेकिन दोनों के बीच 36 का आंकड़ा है. बाबूलाल के बीजेपी में आने के बाद रघुवर कुछ दिन मुंह फुलाये रहे. बाद में समय की नजाकत को देखते हुए फिर बाबूलाल के साथ मंच साझा करने लगे, लेकिन जब एक दिन कोर कमेटी की बैठक में नेता प्रतिपक्ष के मुद्दे पर बात उठी तो रघुवर दास के मन की बात बाहर आ गई. उन्होंने नीलकंठ सिंह मुंडा का नाम आगे किया. बाबूलाल की सदस्यता को लेकर चुनाव आयोग के निर्देश पर बैठक में लंबी बहस हुई. बैठक में मौजूद नेताओं ने यह बात दिल्ली तक पहुंचा दी. इसके बाद राष्ट्रीय महासचिव बीएल संतोष ने रघुवर को नसीहत दी कि किसी एक व्यक्ति के मुताबिक संगठन नहीं चलेगा, हमें संगठन के मुताबिक चलना होगा.
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इसलिए रघुवर नहीं जा सके राजनीतिक वनवास पर
आम तौर पर चुनाव में हारे हुए नेता पार्टी में दरकिनार हो जाते हैं. अर्जुन मुंडा जैसे दिग्गज नेता भी विधानसभा चुनाव हारने के बाद वनवास झेलना पड़ा था, लेकिन रघुवर दास वनवास में नहीं गये. चुनाव हारने के बाद भी झारखंड बीजेपी में मजबूत स्थिति में हैं. तेवर भी पहले ही वाले हैं. क्योंकि विधानसभा चुनाव से पहले ही उन्होंने इसकी तैयारी कर ली थी. रघुवर ने दीपक प्रकाश, संजय सेठ, समीर उरांव और महेश पोद्दार जैसे नेताओं को पार्लियामेंट भेज दिया. चुनाव जीतकर आये अधिकांश सांसद और विधायकों को रघुवर के रेकमेंडेशन पर टिकट मिला था. अब ऐसे में डर से, इच्छा से या फिर मजबूरी से बीजेपी के नेताओं को रघुवर की इज्जत तो करनी ही पड़ेगी.
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