- जिन्होंने मेहनत कर पार्टी खड़ी की, उन्हें ही कर दिया गया दरकिनार
- इंपोर्टेड नेताओं को लाने से कई विधायकों-सांसदों का करियर हो गया तबाह
- जेएमएम को तोड़कर लाये गये नेताओं पर बीजेपी ने जताया सबसे ज्यादा भरोसा
Satya Sharan Mishra
Ranchi : कहने को तो भाजपा खुद को कैडर आधारित पार्टी बताती है. सदस्यों की संख्या के हिसाब से यह दुनिया का सबसे बड़ा दल है, लेकिन झारखड बीजेपी आयातित नेताओं के भरोसे चल रही है. हाल के वर्षों में बड़ी संख्या में इंपोर्टेड नेताओं को लाकर विचारधारा से जुड़े पुराने और कद्दावर नेताओं को दरकिनार किया गया है. ऐसे नेता अब तो बीजेपी को टिकट कटवा पार्टी तक कहने लगे हैं. मधुपुर में 2 बार बीजेपी से विधायक रहे राज पलिवार का टिकट काटकर बीजेपी ने उन्हें ठिकाने लगा दिया है. उनकी जगह 2 दिन पहले आजसू से इंपोर्ट किये गये गंगा नारायण सिंह को उपचुनाव लड़वाया जा रहा है.
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43 सिटिंग विधायकों में से 13 का टिकट काट दिया था
यह पहली बार नहीं है. इससे पहले 2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने अपने 43 सिटिंग विधायकों में से 13 का टिकट काट दिया था. वहीं लोकसभा चुनाव में कई बार लोकसभा चुनाव जीत चुके रामटहल चौधरी, रविंद्र राय और रवींद्र पांडेय को ठिकाने लगा दिया गया. रांची लोकसभा सीट से रामटहल चौधरी का टिकट काटकर जेवीएम से भाजपा में लौटे संजय सेठ को दिया गया. वहीं कोडरमा में रविंद्र राय का टिकट काटकर आरजेडी से बीजेपी में इंपोर्ट की गयी अन्नपूर्णा देवी को थमा दिया गया. गिरिडीह लोकसभा सीट पर कई टर्म कब्जा रखने वाले रवींद्र पांडेय की सीट ही बीजेपी ने सहयोगी आजसू को दे दी.
मुंडा, मरांडी समेत फर्स्ट लाइन के अधिकांश नेता इंपोर्टेड
बीजेपी को अपने नेताओं से ज्यादा आयातित नेताओं पर भरोसा है. शायद यही वजह है कि मौजूदा समय में बीजेपी की फर्स्ट लाइन में खड़े अधिकांश नेता दूसरे दलों से आयातित हैं. पूर्व मुख्यमंत्री और मोदी सरकार में जनजातीय कल्याण मंत्री अर्जुन मुंडा कई साल तक जेएमएम में रहे. फिर 2000 में बीजेपी में आये और चुनाव जीतने के बाद 3 साल के अंदर मुख्यमंत्री भी बन गये. 2014 में मोदी लहर के बावजूद वे विधानसभा चुनाव हार गये, लेकिन पार्टी का उनपर भरोसा कम नहीं हुआ. खूंटी से 8 बार लोकसभा चुनाव जीत चुके कड़िया मुंडा का टिकट काटकर 2019 में अर्जुन मुंडा को मैदान में उतारा गया. बीजेपी ने पूरी ताकत लगा दी, तब जाकर अर्जुन मुंडा वहां जीत पाये. इसके बाद मुंडा राज्य से सीधे केंद्र पहुंच गये. केंद्र में मंत्री पद की जिम्मेदारी मिल गयी.
सुनील सोरेन को भी जेएमएम से ला कर गुरुजी को हरवाया
दुमका में शिबू सोरेन को शिकस्त देकर चुनाव जीतने वाले सांसद सुनील सोरेन भी जेएमएम से आये हैं. 1984 से दुमका सीट से लगातार लोकसभा चुनाव जीत रहे शिबू सोरेन को दो बार 1998 और 1999 में बीजेपी के उम्मीदवार बाबूलाल मरांडी ने शिकस्त दी. संथाल में बीजेपी के पास बालूलाल के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं था, जो गुरुजी को मात दे सके. बाबूलाल बीजेपी से अलग हो चुके थे. इसके बाद 2005 में जेएमएम से बगावत कर बीजेपी में आये सुनील सोरेन ही बीजेपी के पास एकमात्र विकल्प थे. बीजेपी ने शिष्य को गुरु से चुनाव लड़वा दिया और इस सीट पर आखिरकार कब्जा जमा लिया.
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जेवीएम तोड़कर लाये गये नेताओं को खूब मिला सम्मान
2014 के विधानसभा चुनाव के बाद बीजेपी ने जेवीएम से आयात किये गये नेताओं पर सबसे ज्यादा भरोसा दिखाया. रणधीर सिंह और अमर बाउरी को बीजेपी ने सम्मान के साथ मंत्री पद भी दिया. दोनों को 2019 के विधानसभा चुनाव में सारठ और चंदनकियारी से बीजेपी का टिकट भी मिला. दोनों चुनाव भी जीते. और विधानसभा में बीजेपी की आवाज बनकर उभर रहे हैं. जेवीएम से बीजेपी में आये नवीन जायसवाल, आलोक चौरसिया और जानकी यादव पर भी बीजेपी खूब मेहरबान रही, लेकिन जानकी यादव को टिकट देकर बीजेपी को फायदा नहीं हुआ. बीजेपी ने बरकट्ठा में अमित यादव की जगह जानकी को टिकट देकर अपना नुकसान करा लिया.
कई इंपोर्टेड नेता उतरे उम्मीद पर खरे
जेएमएम से बीजेपी में लाये गये जयप्रकाश भाई पटेल तथा नवजवान संघर्ष मोर्चा से लाये गये भानू प्रताप शाही को भी बीजेपी ने खूब सम्मान दिया. दोनों बीजेपी की आकांक्षाओं पर खरे भी उतरे. पांकी विधानसभा सीट में बीजेपी के पास कोई चेहरा नहीं था. तब बीजेपी ने वहां के जेएमएम प्रत्याशी को ही आयात कर लिया. कुशवाहा शशिभूषण मेहता बीजेपी से चुनाव लड़े और जीत गये. इस तरह जिस सीट पर आरजेडी और कांग्रेस का कब्जा हुआ करता था उसे बीजेपी ने छीन लिया.
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आयातित नेताओं ने बीजेपी को निराश भी किया
आयात किये गये नेताओं से हर बार बीजेपी को फायदा नहीं मिला. 2019 के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस से बीजेपी में आये सुखदेव भगत लोहरदगा में कांग्रेस से ही चुनाव हार गये. जेएमएम से बीजेपी आये कुणाल षाडंगी भी जेएमएम के प्रत्याशी से ही चुनाव हारे. वहीं जेवीएम से बीजेपी लाये गये प्रकाश राम को भी लातेहार में मुंह की खानी पड़ी
सरयू का टिकट कटा तो रघुवर को धूल चटा दी
पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने अपने जिन विधायकों का टिकट काटा था, उनमें कई ऐसे थे जिन्होंने बीजेपी को अपने विधानसभा क्षेत्र में मजबूत किया था. इसका खामियाजा भी बीजेपी को भुगतना पड़ा. जमशेदपुर पश्चिम से दो बार विधायक रहे सरयू राय टिकट कटने के बाद मुख्यमंत्री रघुवर दास के खिलाफ जमशेदपुर पूर्वी से निर्दलीय चुनाव लड़ गये और आखिरकार उन्होंने पांच बार से लगातार विधाक रहे रघुवर को धूल चटा दी. सिमडेगा से 2 बार विधायक और एक बार मंत्री रहीं विमला प्रधान का टिकट काटना भी बीजेपी को भारी पड़ा. यह सीट कांग्रेस ले गई. गुमला और मांडर भी भी बीजेपी को अपने सिटिंग विधाययकों का टिकट काटना महंगा पड़ा. बोरियो से 2005 और 2014 में जेएममए को हराने वाले ताला मरांडी को दरकिनार करने का भी खामियाजा बीजेपी को भुगतना पड़ा. वहां फिर से जेएमएम ने कब्जा जमा लिया.
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जेएमएम से विद्युत वरण, आरजेडी से लाये गये हैं चंद्रवंशी
जमशेदपुर के सांसद विद्युत वरण महतो भी जेएमएम से बीजेपी लाये गये हैं. 2014 से पहले वे जेएमएम के सिपाही हुआ करते थे. वहीं विश्रामपुर के विधायक रामचंद्र चंद्रवंशी 1995 से 2014 तक आरजेडी के साथ थे. इस दौरान वे 2 बार विधायक और एक बार मंत्री भी बने थे. फिर 2014 में बीजेपी ने उन्हें आयात कर लिया. बीजेपी में आने के बाद चुनाव जीते और सम्मान के साथ मंत्री पद दे दिया गया.
सीपी सिंह और नीलकंठ पर बीजेपी को नहीं रहा भरोसा!
बीजेपी में आयात किये गये नेताओं की लिस्ट बहुत लंबी है. बाबूलाल मरांडी भी इन्हीं में से हैं. भले ही वे पहले बीजेपी में थे, लेकिन करीब 8 साल वे पार्टी से दूर रहे. अब उन्हें फिर से इंपोर्ट कर बीजेपी विधायक दल का नेता बना दिया गया. विधानसभा में बीजेपी के कई सीनियर लीडर हैं, जो विधायक दल का नेता और नेता प्रतिपक्ष बनने की अर्हता रखते हैं, लेकिन पार्टी को उनसे ज्यादा बाहर से लाये नेताओं पर भरोसा है. सवाल यह है कि क्या वरिष्ठ नेता सीपी सिंह और नीलकंठ सिंह मुंडा पर भी बीजेपी को भरोसा नहीं है.
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क्या सरयू या फिर रविंद्र राय वाला तेवर अपनायेंगे पलिवार?
ये तो पुरानी बातें हैं. नयी बात यह है कि बीजेपी ने मधुपुर में राज पलिवार को दरकिनार कर गंगा नारायण सिंह को उम्मीदवार बनाया है. डर है कि कहीं बीजेपी का यह सियासी दांव उलटा न पड़े जाये. राज पलिवार का क्या स्टैंड होगा, यह अबतक क्लीयर नहीं हो सका है. वे रविंद्र राय वाला तेवर अपनाते हैं या सरयू राय वाला, देखना दिलचस्प होगा. अगर सरयू राय वाले तेवर में आये तो बीजेपी को नुकसान हो सकता है.
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