Sarvamitra Surajan
42 साल पुरानी पार्टी भाजपा को यह इल्म हुआ कि वह देश की सबसे बड़ी और सबसे ताकतवर राजनैतिक पार्टी बन गई है. 138 साल पुरानी कांग्रेस पार्टी को लगातार दो बार हराने के बाद उसका अपनी ताकत पर गुमान और अधिक बढ़ गया. इल्म की इब्तिदा थी, तो हंगामा भी होना ही था. भाजपा ने यह शोर मचाना शुरू कर दिया कि वह देश को कांग्रेस मुक्त बना देगी. चुनावों में मिलती एक के बाद दूसरी जीत के बाद यह शोर और बढ़ता गया. इधर कांग्रेस को भी इल्म था कि उसका जनाधार सिमट रहा है, उसकी राजनीतिक सोच को भारतीय जनता का एक बड़ा वर्ग अपने अनुकूल नहीं मान रहा है. चुनाव जीतने के जो पैंतरे भाजपा अपना रही है, उनमें कांग्रेस पिछड़ रही है. कांग्रेस के भीतर दरारें थीं, जो बढ़ती जा रही हैं और इन दरारों के आर-पार राजनैतिक लिप्सा, महत्वाकांक्षाएं, सत्तालोलुपता रिस रही है. लेकिन कांग्रेस ने राजनीति की एक सदी से अधिक की लंबी यात्रा देखी है. उसके राजनैतिक इल्म की इंतिहा ही थी कि कांग्रेस अपने भीतर और बाहर हो रही इस उथल-पुथल को खामोशी से देख रही थी.
लगभग ढाई दशक तक कांग्रेस को संभालने वाली सोनिया गांधी ने कांग्रेस के इस बुरे समय में बड़े धैर्य के साथ काम लिया. अपनी पार्टी, अपने परिवार, अपने बेटे-बेटी पर विरोधियों के निम्न स्तरीय हमलों को वे खामोशी से बर्दाश्त करती रहीं. कांग्रेस की राजनीति में कम से कम 50 बरस का वक्त उन्होंने प्रत्यक्ष और परोक्ष तौर पर बिताया है. तो वे जानती हैं कि हर बात का जवाब नहीं दिया जाता और हर सही वक्त पर दिए गए जवाब का असर दूर तक होता है. आपातकाल के बाद भी देश में ऐसा दौर आया था, जब कांग्रेस के खिलाफ तमाम विरोधियों ने गठबंधन कर लिया था. हालांकि राजनीति में इतनी शिष्टता बाकी थी कि तब गैरकांग्रेसवाद की बात होती थी, कांग्रेसमुक्त होने की नहीं. इंदिरा गांधी के विरोधियों ने यह मान लिया था कि अब देश की जनता उन्हें स्वीकार नहीं करेगी. लेकिन इंदिरा विरोधियों की उम्मीदों पर पानी फिर गया, जब वे फिर से चुनावों में जीत कर सत्ता में लौटीं. सोनिया गांधी को राजनीतिक दीक्षा इंदिरा गांधी से ही मिली है. और अब इसी में राहुल गांधी, प्रियंका गांधी भी दीक्षित हो चुके हैं.
देश में पिछले आठ बरसों से फिर से कांग्रेस विरोधी वातावरण तैयार किया जा रहा है. देश की संवैधानिक संस्थाओं के साथ-साथ शैक्षणिक, सांस्कृतिक, सामाजिक संस्थानों और सबसे बढ़कर मीडिया को कांग्रेस विरोध के लिए तैयार कर लिया गया है. अपने खिलाफ बनाई जा रही इन रणनीतियों को खामोशी से देखते हुए राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा निकालने का फैसला किया. राहुल गांधी ने अपने लिए एक नया रास्ता चुन लिया है, जिस पर चलने में कदम-कदम पर बाधाएं आएंगी और हौसला कायम रखने के लिए एकमेव अवलंब दृढ़ इच्छाशक्ति का ही होगा. राहुल गांधी को बिना समय गंवाए देश की पदयात्रा पर निकल पड़ना चाहिए. राहुल और प्रियंका के साथ अगर कन्हैया जैसे युवा जुड़ पाते हैं तो यह एक उत्साहवर्द्धक बात होगी. इस अभियान में भाकपा, माकपा, राजद, द्रमुक, राकांपा आदि भी साथ दें तो अच्छा होगा.
राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा पर पहले ही निकलना चाहते थे, किंतु कोरोना की वजह से हालात बदल गए. बहरहाल, अब 108 दिन, 10 राज्यों और लगभग 28 सौ किमी की दूरी तय कर भारत जोड़ो यात्रा दिल्ली पहुंच गई है. और यहां 9 दिनों के विश्राम के बाद फिर 3 जनवरी से गाजियाबाद से श्रीनगर के लिए कूच करेगी. इस यात्रा में राहुल गांधी ने शुरू से डरो मत का संदेश देशवासियों को दिया. हर मौसम में, हर हाल में पैदल चलते हुए उन्होंने बता दिया कि वे किसी भी मुसीबत के आगे झुकने, थमने या डरने वाले नहीं हैं. एक सच्चे नेता की तरह उन्होंने अपने शब्दों को व्यवहार में उतार कर दिखाया.
बिना किसी लाग-लपेट के राहुल गांधी ने कहा कि ये नरेंद्र मोदी की सरकार नहीं है, अंबानी और अडाणी की सरकार है. उन्होंने कहा कि मीडिया में 24 घंटे हिंदू-मुसलमान चलाया जा रहा है, जबकि यह हकीकत नहीं है. राहुल ने कहा कि जब कोई आपकी जेब काटता है, तो वह सबसे पहले आपका ध्यान भटकाता है. अभी यही किया जा रहा है. देश की जनता को मौजूदा हालात की विसंगतियां सीधे-सीधे शब्दों में राहुल गांधी ने समझा दीं. इस भाषण में आज चाहे जितनी मीन-मेख निकाल ली जाए, देश के इतिहास में यह एक अभूतपूर्व भाषण के तौर पर दर्ज होगा.
राहुल ने जो बातें कहीं, उसके उदाहरण भी तुरंत ही देखने मिल गए. भोपाल से भाजपा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर का विवादित भाषण पिछले दो-तीन दिन चर्चा में रहा, जिसमें वे घर में तेज चाकू रखने की नसीहत दे रही थीं. इस बीच कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने भारत जोड़ो यात्रा के उत्तरप्रदेश पहुंचने की बात पर राम की खड़ाऊं का जिक्र कर दिया. फिर भाजपा ने इसे ही मुद्दा बना लिया कि कांग्रेस नेता चाटुकारिता में राहुल गांधी की तुलना हमारे आराध्य राम से कर रहे हैं. मीडिया ऐसे मुद्दों पर बहसें कराती रही और इस बीच दूध के दाम फिर से बढ़ गए. शीतकालीन सत्र तो पहले ही स्थगित हो गया था, और अब तवांग मुद्दे पर सरकार के रुख पर फिर खामोशी है.
शिक्षामंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा है कि बसंत पंचमी से इतिहास का संशोधित संस्करण पढ़ाया जाएगा.
ये संशोधन कैसे होगा, कौन संशोधन करेगा, इस बारे में सवाल करने की जहमत मौजूदा मीडिया शायद ही उठाए. अगले डेढ़-दो साल इसी तरह की गतिविधियां चलती रहेंगी और फिर आम चुनाव आ जाएंगे. अच्छे दिनों के वादे, राष्ट्रवाद की चाशनी में घोलकर फिर से जनता को पिलाए जाएंगे. हालांकि तब तक भारत जोड़ो यात्रा के जरिए राहुल गांधी प्रेम और भाईचारे का संदेश देने में कितना सफल हो पाएंगे, ये देखना होगा. अभी तो ऐसा लग रहा है कि लोग उनकी बात समझ रहे हैं. इसलिए लोगों के साथ-साथ दूसरे दलों के नेता उनके साथ चलने तैयार हो रहे हैं. कांग्रेस का धैर्य रंग लाता दिख रहा है.
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.