Dinesh Pandey
Bokaro : शिक्षा के बिना जीवन में सफलता पाना नामुमकिन है. आज के दौर में शिक्षा का महत्व और इसकी जरूरत हर कोई जानता है. लेकिन एक दौर वह भी था जब अज्ञानता वश गरीबों में शिक्षा का स्तर काफी नीचे था. उस वक्त लगभग 27 साल पहले राजमिस्त्री का काम करने वाला सातवीं पास परशुराम राम ने मन में ठान लिया कि हर गरीब तबके और असहायों के बच्चों को शिक्षित करेंगे. वह भी निशुल्क. आज हम बताने जा रहे हैं 68 वर्षीय सातवीं कक्षा पास राजमिस्त्री परशुराम के बारे में जो बस्ती और झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले गरीब बच्चों को निशुल्क शिक्षा दे रहे हैं.
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27 साल पहले खोला था स्कूल
वह समाज में ज्ञान का प्रकाश फैलाने का काम कर रहे हैं. आज से लगभग 27 साल पहले बोकारो के सेक्टर 12 में झोपड़ी नुमा स्कूल बिरसा मुंडा निशुल्क विद्यालय की स्थापना की थी. जिसमें गरीबों के बच्चे निशुल्क पढ़ते हैं. परशुराम के द्वारा इस कार्य को करने के पीछे वह बताते हैं कि उनके माता पिता अत्यंत ही गरीब थे और मजदूरी करते थे. वह इतना कमा नहीं पाते थे कि अपने बच्चे को पढ़ा सके. किसी तरह परशुराम ने अपनी सातवीं की पढ़ाई पूरी की. जिसके बाद वह राजमिस्त्री का काम करने लगा.
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एक घटना ने किया स्कूल खोलने पर मजबूर
एक दिन काम के दौरान एक महिला मजदूर काम के बीच में रोककर रोते बिलखते अपने बच्चे को स्तनपान कराने लगी, तभी ठेकेदार वहां आया और उस महिला को फटकार लगाई और स्तनपान कर रहे बच्चे को मां से अलग कर दिया. फिर कहा काम नहीं रुकना चाहिए. तभी परशुराम ने यह देखा और मन में ठान ली कि हर गरीब के बच्चे को अच्छी शिक्षा दूंगा ताकि पढ़ लिख कर वह अच्छा काम करें. तभी से उसने राजमिस्त्री का काम छोड़कर अपनी सारी जमा पूंजी विद्यालय खोलने में लगा दी. शुरुआत में ही उन्होंने 17 बच्चों को शिक्षा दिलाने का काम शुरू कर दिया और अब तक लगभग 4500 बच्चे यहां से निशुल्क शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं.
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शिक्षक और शिक्षिकाएं सेवा भाव से योगदान दे रहे हैं
इतना ही नहीं यहां बच्चों को पढ़ाने के लिए जो शिक्षक, शिक्षिकाएं हैं वे भी अपनी सेवा भाव से निशुल्क योगदान दे रहे हैं.बिना वेतन लिए ही बच्चों को पढ़ाने के लिए अपना पूरा समय समर्पित कर अपने सामाजिक दायित्व का निर्वाह कर रहे हैं. परशुराम ने अपना पूरा जीवन बच्चों को निशुल्क शिक्षा देने में लगा दिया. उन्हें 2006 में जनकल्याण सामाजिक संस्था के नाम से मान्यता भी मिल गयी. परशुराम बताते हैं कि बच्चों को पढ़ाने के लिए कॉपी-किताब कपड़े व स्कूल में बैठने के लिए टेबल आदि लोगों के सहयोग से तथा कुछ सामाजिक संगठनों के द्वारा मदद का सहयोग समय-समय पर मिलता रहता है. लेकिन बच्चे आज भी झोपड़ी नुमा विद्यालय में पढ़ रहे हैं.
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सरकारी मदद का अभाव
अगर सरकार कुछ मदद करती है तो जो सुविधाओं का अभाव है, उसको दूर करते हुए शिक्षा के स्तर को और बेहतर बनाया जा सकता है.आपको बता दें कि परशुराम हमेशा बच्चों की पढ़ाई को लेकर अपने विद्यालय की निगरानी में रहते हैं और खाली समय मिलने पर वह फावड़ा लेकर खेतों में भी चल पड़ते हैं. साथ ही आसपास के जितने भी झुग्गी झोपड़ी बस्तियां हैं, जहां ठेला चालक, रिक्शा चालक, दैनिक मजदूरी करने वाले लोग रहते हैं, उन्हें शिक्षा को लेकर जागरूक भी करते हैं. साथ ही बच्चों को स्कूल में भेजने के लिए प्रेरित भी करते हैं. वहां आसपास के लोग भी परशुराम के काम से काफी प्रभावित हैं और खुशी मन से अपने बच्चों को उनके विद्यालय भेजकर शिक्षा दिला रहे हैं.
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