Bokaro : सरकार की तरफ से कई तरह की सरकारी योजनायें चलायी जा रही हैं, लेकिन जागरूकता के अभाव में कई परिवार आज भी योजनाओं से अनजान हैं. लिहाजा जिन मासूमों के हाथों में कलम ,कॉपी होना चाहिए थी. उनके हाथों में कूड़ा उठाने की जिम्मेदारी है, वह इसलिए कि परिवार का भरण पोषण की जिम्मेदारी भी उनके कंधो पर है. इन परिवारों को दो जून की रोटी जुगाड़ करना काफी मुश्किल है. लिहाजा कूड़े के ढेर में रोटी तलाशने को मजबूर है ये लोग. कूड़े से प्लास्टिक चुनकर उसे बेंचकर कई परिवार अपना भरण पोषण करने को मजबूर हैं. यह परिवार सेक्टर 8 के गड़ाबसा झोपड़ी बस्ती के हैं. जो आज भी उदासीनता की जिंदगी जीने को मजबूर है.
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खड़ा हो रहा बेरोजगारों का फौज
इन परिवारों के मासूम बच्चे स्कूल का शक्कल नहीं देख रहे हैं, आने वाले दिनों में झारखंड में बेरोजगारों का बड़ा फौज खड़ा हो सकता हैं जो समाज के लिए चिंता का विषय है.
मंडरा रहा कई रोगों का खतरा
सेक्टर 11 के समीप कूड़ा डंप किया जाता है, और बगल में ही गरीबों की गड़ावसा बस्ती है. कूड़े में प्रत्येक दिन आग लगाये जाते है जिससे निकलने वाला गंदा धूआ बस्ती में फैला रहता है, ये धुंआ जानलेवा साबित हो रहा है. बस्ती में रहने वाले गरीब लोगों को श्वसन क्रिया और चर्म रोग का खतरा बढ़ता जा रहा है.
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उपेक्षित हैं दर्जनों परिवार
जो परिवार कचरे चुन रहे है वह परिवार सरकारी योजनाओं से वंचित हैं. इन परिवारों को राशनकार्ड, हेल्थकार्ड, जॉबकार्ड का लाभ नहीं मिलता हैं. जबकि सरकार बड़ी-बड़ी दावे करती हैं लेकिन दावे की हकीकत कुछ और हैं जो धरातल पर नहीं है.
गरीबी के बोझ तले दब रहे परिवार
गरीबी रेखा से नीचे के इस परिवार के सामने कई समस्याएं हैं, जब कूड़े से उनकी जरूरत पूरी नहीं होती हैं तो यह परिवार सूदखोरों के चंगुल में फंसता है, ऐसे में उनके कंधो पर परिवार चलाने व सूद चुकाने की जिम्मेदारी होती हैं जिससे परिवार और दलदल में फंसते नजर आतें हैं.
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