हाथियों का उत्पात रोकने का वन विभाग का दावा असफल
Shekhar Shardendu
Bokaro : बोकारो जिला स्थित गोमिया प्रखंड के झुमरा पहाड़, लुगु पहाड़ से लेकर पेटरवार, कसमार एवं जरीडीह प्रखंड के पहाड़ी इलाकों में बसे गांव में दो दशकों से हाथियों का आतंक जारी है. हर साल इन चारों प्रखंडों में औसतन चार से पांच लोग हाथियों के हमले में जान गंवा बैठते हैं, वहीं घर, चहारदीवारी से लेकर फसलों की क्षति का तो आकलन करना संभव ही नहीं है.
25 फरवरी को एक हाथी ने जमकर उत्पात मचाया
25 फरवरी की सुबह गोमिया प्रखंड के कोदवाटांड़ एवं अन्य गांव में झुंड से बिछुड़े एक हाथी ने जमकर उत्पात मचाया और हमला कर एक बुजुर्ग समेत दो महिलाओं को मार डाला. इस घटना के बाद बोकारो जिले के ग्रामीण क्षेत्र में फिर हाथियों की दहशत कायम हो गयी है. अब अधिकतर गांवों में ग्रामीण रतजगा करते गुए भय के माहौल में रात गुजारने को विवश हैं.
दो हाथियों ने किसानों के खेतों में लहलहाती फसलों को बर्बाद कर दिया
दो दिन पूर्व ही कसमार प्रखंड एवं जरीडीह प्रखंड के कई गांवों में झुंड से बिछड़े दो हाथियों ने स्कूल की चहारदीवारी, घर से लेकर एमडीएम का अनाज एवं कई किसानों के खेतों में लहलहाती फसलों को बर्बाद कर दिया. हर साल पूस महीने के बाद बसंत ऋतु के आगमन से लेकर महुआ के मौसम में हाथियों का उत्पात जारी रहता है. इन चारों प्रखंडों में अब तक कई लोगों की मौत हाथियों के हमले में हो चुकी है. फसलों की बर्बादी के बाद क्षतिपूर्ति मुआवजे के नाम पर ग्रामीण विभागीय उपेक्षा के के शिकार होते रहे हैं.
हाथियों का उत्पात रोकने में वन विभाग असफल
बोकारो जिले में हाथियों का उत्पात को रोकने को लेकर वन विभाग हमेशा बड़े बड़े दावे तो करता रहा है, लेकिन उसका दावा हमेशा असफल साबित हुआ है. वन विभाग अक्सर तब उन गांवों में पहुंचता है, जब हाथियों का झुंड तबाही मचाकर वापस जंगल चला जाता है. वन विभाग के पास हाथी भागने की टीम भी है, लेकिन वो उतनी दक्ष नहीं है. विशेष परिस्थितियों में बोकारो वन विभाग को हाथी भगाने के लिए पश्चिम बंगाल की टीम की मदद लेनी पड़ती है. वन सुरक्षा समिति के नाम पर सिर्फ सरकारी पैसों की बंदरबांट ही होती रही है.
ग्रामीण क्षेत्रों में हर गांव में वन सुरक्षा समिति गठित है
कसमार, जरीडीह, गोमिया से लेकर पेटरवार के ग्रामीण क्षेत्रों में कई दशक से हर गांव में वन सुरक्षा समिति गठित है, लेकिन समितियां हाथियों के उत्पात को रोकने की दिशा में कारगर साबित नहीं है. वन विभाग हाथी प्रभावित गांवों में न तो टॉर्च, केरोसिन, मशाल से लेकर पटाखे व अन्य सामग्री मुहैया करा पा रही है, न ही वन विभाग के आला अधिकारियों को इसकी फिक्र है. नतीजतन हर बार घटना में मारे गये लोगों के पास संवेदना व्यक्त करने एवं मुआवजा राशि देने के लिए विभाग की टीम एवं जनप्रतिनिधियों की टीम पहुंचती है. ग्रामीणों को हाथियों के उत्पात से निजात दिलाने में विभाग से लेकर सरकारी अधिकारी एवं जनप्रतिनिधि दिलचस्पी नहीं लेते हैं.