Bokaro : जिले के धनघरी गांव में आशियाना बनाकर रह रहे ग्रामीणों को सरकार ने अतिक्रमणकारी घोषित कर बेघर कर दिया है. ग्रामीणों ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को आवेदन भेजकर मामले में हस्तक्षेप की मांग की है. 63 दिनों से ग्रामीण अनिश्चितकालीन धऱना दे रहे हैं. ग्रामीणों का कहना है कि 60 वर्षों से जमीन हमारी थी, आखिर हमलोग कैसे अतिक्रमणकारी हुए?
धनघरी गांव में रेलवे लाइन दोहरीकरण के लिए 26 सितंबर को जिला प्रशासन व रेलवे ने संयुक्त रूप से डोजरिंग कर 16 घरों को तोड़ दिया. रेलवे का दावा है कि जमीन रेलवे की है. जबकि ग्रामीणों का दावा है कि जमीन का मालिकाना हक हम लोगों के पास है. ग्रामीणों ने मुख्यमंत्री से पुनर्वास की मांग की है.
63 दिनों से धरना जारी
धनघरी गांव के बेघर हुए ग्रामीण 63 दिनों से ठंड में उसी जगह धरनारत हैं जिसकी डोजरिंग की गई. तीन महीने से ज्यादा वक्त गुजरने के बाद भी किसी जनप्रतिनिधि या सरकारी अधिकारी ग्रामीणों से बातचीत करने नहीं पहुंचे. ग्रामीणों में इसे लेकर आकोश है. ग्रामीण ने रांची में मुख्यमंत्री का आवास घरेने तथा जिला मुख्यालय के समक्ष धरना देने का निर्णय लिया है.
बड़े नेताओं ने भी बनाई दूरी
बेघर हुए ग्रामीणों की परेशानी दूर करने बड़े नेता भी सामने नहीं आ रहे हैं. ग्रामीणों की समस्याओं को लेकर राज्य के शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो ने बोकारो परिसदन में बैठक की थी. उन्होंने बैठक में कहा था कि कार्रवाई से पहले ग्रामीणों का पुनर्वास किया जाना चाहिए. बावजूद इसके घरों की डोजरिंग की गई.
तंबू तले गुजार रहे रात
ग्रामीण धरनास्थल पर तंबू लगाकर परिवार समेत धरना दे रहे हैं. सरकार लोगों को ठंड से बचाने के लिए जिला प्रशासन को निर्देश जारी कर चुकी है. बावजूद इसके धरनारत ग्रामीणों को ठंड से बचाने का उपाय जिला प्रशासन के अधिकारी नहीं कर रहे.
आत्मदाह करेंगे ग्रामीण
ग्रामीण कलामुद्दीन अंसारी ने बताया कि हमारे पूर्वजों ने रेलवे को जमीन देने की बात कही थी, लेकिन उसके बदले रैयतों को आज तक न मुआवजा मिला और न ही पुनर्वास किया गया. हमलोगों को सरप्लस जमीन भी उपलब्ध नहीं कराई गई. जबरन हमलोगों को जमीन से बेदखल कर विस्थापित कर दिया गया. आवेदन मुख्यमंत्री को भेजा गया है. इंसाफ नहीं मिलने पर सामूहिक रूप से आत्मदाह करूंगा. मुख्यमंत्री के बोकारो आगमन के समय हम लोगों ने ज्ञापन भी सौंपा था, लेकिन संज्ञान नहीं लिया गया. जमीन पर मालिकाना हक ग्रामीणों की है, जमीन ग्रामीणों को लौटाई जाए.
सोते वक्त घर तोड़ा
जरीना बीबी ने बताया कि सोते वक्त घर को तोड़ दिया गया. मेरा आशियाना उजड़ चुका है. बच्चों को लेकर खुले आसमान के नीचे धरना देने को विवश हूं.
जमीन पर मालिकाना हक ग्रामीणों की
सबेरा खातून ने बताया कि जमीन पर मालिकाना हक ग्रामीणों की है. घर तोड़कर हम लोगों को विस्थापित तो कर दिया गया, लेकिन पुनर्वास नहीं किया गया.
जमीन हड़पने की फिराक में रेलवे
घर से बेघर हुई जुलेखा सपरिवार धरना दे रही हैं. रेलवे ग्रामीणों की जमीन हड़पने की फिराक में है. घर तोड़े जाने पर विस्थापित हुई हूं. जमीन के एवज में न तो मुआवजा मिला और न ही पुनर्वास किया गया.
यह भी पढ़ें : बोकारो : 23 से 25 दिसंबर तक चलेगा पल्स पोलियो अभियान