Bokaro: मनरेगा योजना के तहत न केवल विकास का काम होता है, बल्कि इसके तहत रोजगार की गारंटी भी होती है. सरकार ने रोजगार गारंटी के तहत मजदूरों को इस योजना से 100 दिनों का काम देने का वादा किया था. लेकिन बोकारो में यह पूरा नहीं हो पा रहा है. बोकारो में मनरेगा योजना के कार्य की गति काफी धीमी है. ऐसे में लोगों को रोजगार नहीं मिल पा रहा है. ना ही योजनाओं का लाभ समाज के अंतिम पायदान पर खड़े लोगों तक पहुंच रहा है.
बता दें कि वित्तीय वर्ष 2022-23 में जिले में मनरेगा के तहत 1336 योजनाओं की शुरुआत की गई थी. 8 महीने बीत जाने के बाद महज 16 कार्य ही पूरा किया जा सका है. ऐसे में इस वित्तीय वर्ष में कार्य पूरा कर पाना काफी मुश्किल लगता है. वहीं पिछले वर्ष की बात करें तो 2019 से लेकर इस चालू वित्तीय वर्ष तक बोकारो मनरेगा के कार्य को संपन्न कराने में अंतिम पांचवें नंबर पर रहा है. लेकिन सवाल यह है कि इस कार्य के निष्पादन में हो रहे विलंब का जिम्मेदार कौन है? यह तो प्रशासन भी तय नहीं कर पाया है.
लिहाजा कछुए के गति से चल रहे मनरेगा के कार्य से न केवल विकास बाधित हुआ है, बल्कि लोगों को मिलने वाला रोजगार भी मुहैया नहीं हो पाया है. जिला प्रशासन की लापरवाही के कारण सरकारी योजनाओं के कार्यान्वयन कार्य प्रभावित हो रहे हैं. बता दें कि बोकारो जिला में वित्तीय वर्ष 2019 से लेकर अब तक 165772 योजनाओं की शुरुआत की गई है. इनके विरुद्ध एक लाख 14942 ही काम ही पूरे हो पाए हैं. ऐसे में विकास की गति काफी धीमी हो गई है. लेकिन कार्रवाई करने की बजाय जिला प्रशासन रिपोर्ट भेजने में लगा है. वित्तीय वर्ष 2022 में अब तक मात्र 1.12 प्रतिशत ही जिला प्रशासन उपलब्धि हासिल कर पाया है.
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जिस तरीके से विकास की गति होनी चाहिए वैसा बोकारो में नहीं दिख रहा है. लिहाजा राज्य में बोकारो अंतिम पांचवें पायदान पर खड़ा है. इसका खुलासा राज्य सरकार को विभाग द्वारा भेजे गए रिपोर्ट से हुआ है. मालूम हो कि मनरेगा योजना से तालाब की खुदाई, कच्ची सड़क, आहर की सफाई, नालियों के निर्माण और उसके मरम्मत कार्य के नियमावली के अनुरूप निर्धारित रेसियो के अनुरूप कराया जाता है. यदि जॉब कार्डधारियों की मानें तो समयानुसार मजदूरी भुगतान नहीं करने के कारण मजदूर काम करने से कतरा रहे हैं.
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