Bokaro : विविधताओं से भरे झारखंड को यहां की विविध परंपराएं उसे और विशिष्ट बनाती हैं. कभी ये रोमांचित करता है, कभी अचंभित भी. बोकारो जिले के बेरमो विधानसभा क्षेत्र के घुटिया टांडा बस्ती के समीप दामोदर नदी के किनारे पौराणिक और ऐतिहासिक देवी मां का मंदिर अवस्थित है. मकर संक्रांति के दिन यहां मेला लगता है. मेले के तीसरे दिन देवी मां को मानव रक्त का भोग अर्पित करने की पुरानी परंपरा है. इसके लिए यहां सालों से मकर संक्रांति के तीसरे दिन मुर्गा उड़ान आयोजित किया जाता है.
क्या है परंपरा
दरअसल श्रद्धालुओं के भीड़ के बीच मुर्गा को उड़ाया जाता है. फिर मुर्गे को लूटने के लिए लोगों में छीनाझपटी और खींचतान मचती है. इस दौरान लोगों को खरोंचे लगती है, वो जख़्मी भी होते हैं. जमीन पर जख्मी लोगों का जो रक्त गिरता है, उसे ही देवी मां को अर्पित भोग माना जाता है. श्रद्धालुओं का मानना है कि मुर्गा उड़ान की इकलौती परंपरा देश में सिर्फ यहीं निभाई जाती है.
क्या है मान्यता
लोगों का मानना है कि हज़ारों साल पहले इसी धर्म स्थल पर एक कन्या प्रकट होती थी, जिसे लोग नदी में स्नान कराते थे. उसके बाद कन्या का श्रृंगार कर रात को मंदिर में छोड़ दिया जाता था. अगले ही दिन वह कन्या वहां से अंतर्ध्यान हो जाती थी और उस स्थान पर खून के छींटे देखे जाते थे. ऐसी मान्यता है कि कभी यहां नरबलि दी जाती थी. पूर्वजों के इस परंपरा को कायम रखते हुए लोगों ने समय के साथ बदलाव किया और मुर्गा उड़ान की परंपरा शुरु की. हर साल मकर संक्रांति पर मुर्गा उड़ान की परंपरा में शामिल होने और इसे देखने हज़ारों लोग पहुंचते हैं.
मन्नत पूरी होने पर लाल मुर्गा लेकर पहुंचते हैं लोग
मकर संक्रांति पर देवी मां को नए चावल के पकवान चढ़ाकर पूजा प्रारंभ की जाती है. मन्नत पूरी होने वाले लोग या लाल मुर्गा लेकर देवी मां के मंदिर पहुंचते हैं. उस लाल मुर्गे को हजारों ग्रामीण व वहां पहुंचे श्रद्धालुओं की भीड़ के बीच छोड़ दिया जाता है. जिसे पूरी भीड़ उस मुर्गे को लूटने के लिए छीना झपटी करती हैं. भक्त रविकांत सिंह और स्थानीय ग्रामीण संतोष कुमार महतो ने कहा कि कई पीढ़ियों से ये परंपरा चली आ रही है. यह यहां के लोगों की आस्था से भी जुड़ी हुई है.
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