London : ब्रिटिश सरकार ने शनिवार को संसद में कहा कि कृषि सुधार भारत का अंदरूनी मामला है. बता दें कि ब्रिटेन के कई सांसद किसान आंदोलन को लेकर ब्रिटिश सरकार से भारत पर दबाव बनाने का आग्रह कर रहे थे. इस मुद्दे को ब्रिटिश संसद में भी उठाया जा चुका है. लेकिन किसान आंदोलन को लेकर ब्रिटिश सांसदों की गोलबंदी बोरिस जॉनसन सरकार पर हावी नहीं हो पायी.
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भारतीय अधिकारियों के लिए कृषि सुधार एक घरेलू नीति का मुद्दा है
खबरों के अनुसार ब्रिटिश विदेश कार्यालय में एशिया मामलों के मंत्री निगेल एडम्स ने ब्रिटिश संसद में एक लिखित प्रश्न के जवाब में कहा कि हम भारत में और यहां ब्रिटेन में इन चिंताओं से अवगत हैं कि ये सुधार कृषक समुदाय को कैसे प्रभावित कर सकते हैं. कहा कि भारतीय अधिकारियों के लिए कृषि सुधार एक घरेलू नीति का मुद्दा है.
26 जनवरी को किसानों के विरोध प्रदर्शनों के बारे में ब्रिटिश सरकार के आकलन के बारे में उन्होंने कहा कि कानूनी रूप से जमा होने और एक दृष्टिकोण प्रदर्शित करने का अधिकार सभी लोकतंत्रों के लिए सामान्य है. लेकिन यदि विरोध प्रदर्शन ने कानूनी सीमाओं की वैधता को पार किया तो सरकारें भी कानून और व्यवस्था लागू करने की शक्ति रखती हैं.
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ब्रिटिश सरकार का रूख भारत सरकार के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाने पर ज्यादा है
जान लें कि पूर्व में भी ब्रिटिश सरकार से किसान आंदोलन को लेकर सवाल किये जा चुके हैं. लेकिन, हर बार उन्होंने इसे भारत का अंदरूनी मामला बताते हुए खुद को अलग करने की कोशिश की है. माना जा रहा है कि ब्रिटिश सरकार का रूख भारत सरकार के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाये रखने को लेकर ज्यादा है. भारत ने भी सम्मान दिखाते हुए इस बार गणतंत्र दिवस पर प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन को मुख्य अतिथि बनाया था. लेकिन ब्रिटेन में कोरोना के बढ़ते मामलों के कारण ब्रिटिश पीएम बोरिस जॉनसन अपना दौरा रद्द कर दिया था.
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किसान आंदोलन को लेकर 36 ब्रिटिश सांसदों ने लिखा था पत्र
लेबर पार्टी के सांसद तनमनजीत सिंह धेसी के नेतृत्व में 36 ब्रिटिश सांसदों ने किसान आंदोलन के समर्थन में राष्ट्रमंडल सचिव डोमिनिक राब को चिट्ठी लिखी थी. इस चिट्ठी में सांसदों ने किसान कानून के विरोध में भारत पर दबाव बनाने की मांग की गयी थी. सांसदों के गुट ने डोमिनिक रॉब से पंजाब के सिख किसानों के समर्थन विदेश और राष्ट्रमंडल कार्यालकों के जरिए भारत सरकार से बातचीत करने को कहा था.