Dhanbad : धनबाद (Dhanbad) झारखंड में 1932 खतियान लागू करने के सरकार के फैसले पर धनबाद के व्यवसायियों ने नाराजगी जताई है. व्यवसायियों के साथ कुछ अन्य लोगों का कहना है कि 1932 का खतियान लागू करने का फैसला वोट की राजनीति का उदहारण है. इस फैसले से आपसी संघर्ष की अग्नि प्रज्ज्वलित होगी, जिस पर राजनीति की रोटी सेंकना एक मात्र उद्देश्य है.
धनबाद जिला मारवाड़ी सम्मेलन के अध्यक्ष कृष्णा अग्रवाल ने इस फैसले को सरकार के लिए घातक बताया है. उन्होंने कहा कि यह निर्णय जनविरोधी व असंवैधानिक है. भारतीय संविधान में जाति, लिंग, भाषा,क्षेत्र एवं सम्प्रदाय के आधार पर भेद भाव नही करने का प्रावधान है. उन्होंने कहा कि निष्पक्ष सरकार राज्य के तमाम लोगों की चिंता करती है. झारखंड की साढ़े तीन करोड़ जनता के जान माल,व्यवसाय सहित मान सम्मान की रक्षा करने वाली सरकार ही अच्छी मानी है. किसी खास वर्ग के पक्ष में लिया गया निर्णय भविष्य के लिए घातक सिद्ध हो सकता है.
यहीं पले-बढ़े तो हम भी हैं झारखंडी: प्रभात सुरोलिया
व्यवसायी प्रभात सुरोलिया ने भी फैसले पर नाराजगी जताते हुए कहा कि उनकी कई पुश्तों ने धनबाद की धरती पर समय बिताया. यहीं पले, बढे, खेले-कूदे और खून पसीना बहाया. यहीं की संस्कृति में रच-बस गए. हम लोग भी पूरी तरह झारखंडी हैं. धनबाद में 1932 का सर्वे सेटेलमेंट् कहां से हुआ होगा. 1956 में तो मानभूम से अलग कर धनबाद को बिहार में शामिल किया गया. नीति यह बने कि जो ट्राइबल इलाका है, वहां खतियान लागू हो, वरना 2000 में जब झारखंड बना, उस वक्त जो यहां थे, वे सभी झारखंडी हैं.
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