NewDelhi : सुप्रीम कोर्ट में आज रविवार को केंद्र सरकार ने हलफनामा दायर कर समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का विरोध किया. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को सेम सेक्स मैरिज को मान्यता देने के संदर्भ में दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई होगी. इससे पूर्व केंद्र सरकार ने हलफनामा दायर कर अपनी मंशा साफ कर दी है.
Centre in SC opposes plea seeking legal recognition of same-sex marriage, says it can’t be compared with Indian family unit
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— ANI Digital (@ani_digital) March 12, 2023
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कोर्ट में 56 पेज का हलफनामा दाखिल किया
न्यूज एजेंसी के अनुसार केंद्र ने आज कोर्ट में 56 पेज का हलफनामा दाखिल किया है, जिसमें कहा गया है कि सेम सेक्स मैरिज भारतीय परंपरा के अनुरूप नहीं है. यह पति-पत्नी और उनसे पैदा हुए बच्चों के कॉन्सेप्ट से मेल नहीं खाती. इससे पूर्व सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दिल्ली समेत अलग-अलग हाईकोर्ट में दाखिल सभी याचिकाओं की सुनवाई एक साथ करने का फैसला किया था. जान लें कि कोर्ट ने 6 जनवरी को इस मुद्दे से जुड़ी सभी याचिकाएं अपने पास ट्रांसफर कर ली थीं. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी. पारदीवाला की बेंच सोमवार को इस मामले की सुनवाई करेगी.
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मेरिट के आधार पर याचिका खारिज करना सही
सरकार ने अपने हलफनामे में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने अपने कई फैसलों में व्यक्तिगत स्वतंत्रता की व्याख्या स्पष्ट की है. इन फैसलों के आधार पर भी इस याचिका को खारिज किया जाना चाहिए, क्योंकि उसमें सुनवाई करने लायक कोई तथ्य नहीं है. मेरिट के आधार पर भी उसे खारिज किया जाना उचित होगा.
समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं दी जा सकती
कहा गया कि कानून के अनुसार भी समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं दी जा सकती, क्योंकि उसमें पति और पत्नी की परिभाषा जैविक तौर पर दी गयी है. उसी के अनुसार दोनों के कानूनी अधिकार भी हैं. समलैंगिक विवाह में विवाद की स्थिति में पति और पत्नी को कैसे अलग-अलग माना जा सकेगा?केंद्र सरकार ने कहा है कि विवाह की परिभाषा अपोजिट सेक्स के दो लोगों का मिलन है. इसे विवादित प्रावधानों के जरिए खराब नहीं किया जाना चाहिए.
समलैंगिक यौन संबंध अपराध की श्रेणी से बाहर किया गया
2018 में आपसी सहमति से किये गये समलैंगिक यौन संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर करने का फैसला सुनाने वाले हाईकोर्ट की बेंच में जस्टिस चन्द्रचूड़ भी शामिल थे. जस्टिस चन्द्रचूड़ ने पिछले साल नवंबर में केन्द्र को इस संबंध में नोटिस जारी किया था और याचिकाओं के संबंध में सॉलिसिटर जनरल आर वेंकटरमणी की मदद मांगी थी. इस क्रम में SC की पांच-सदस्यीय बेंच ने 6 सितंबर 2018 को सर्वसम्मति से ऐतिहासिक फैसला सुनाया था. सुप्रीम कोर्ट ने देश में वयस्कों के बीच आपसी सहमति से निजी स्थान पर बनाये जाने वाले समलैंगिक या विपरीत लिंग के लोगों के बीच यौन संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था.